रामजन्मभूमि को कानूनी विवाद में ले जाने वाले मरहूम हाशिम अली की अंतिम इच्छा - प्रवीण गुगनानी

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विगत चार दिसंबर 2014 को रामजन्मभूमि विवाद की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुई | मुस्लिम पक्ष की ओर से पिछले लगभग पैसठ वर्ष से...



विगत चार दिसंबर 2014 को रामजन्मभूमि विवाद की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुई | मुस्लिम पक्ष की ओर से पिछले लगभग पैसठ वर्ष से पक्षकार रहे हाशिम अंसारी उस समय जीवित थे | उन्होंने 1949 में पहली बार इस मामले में मुकदमा दर्ज करवाया था | लेकिन 95 वर्षीय इस वृद्ध को भी अपने अंतिम समय में सत्य समझ में आ गया और वही उनकी जबान से बरबस निकल पड़ा था | उनके एक बयान ने सबको चोंका दिया था | जरा गौर कीजिए उनके इस बयान पर –

'रामलला तिरपाल में रह रहे हैं और उनके नाम की राजनीति करने वाले महलों में रह रहे हैं | लोग लड्डू खाएं और रामलला इलायची दाना, यह नहीं हो सकता. मैं अब रामलला को आजाद देखना चाहता हूं.' 

हाशिम के उक्त कथन से मुस्लिम पक्ष के उन कट्टरवादियों को झटका लगा था, जो मंदिर निर्माण में रोड़े डालनें के नाम पर ही अपनी राजनैतिक दुकानें चलाते रहें हैं | आदर्श स्थिति तो यही है कि दिवंगत हाशिम अंसारी के इस बयान के आलोक में देश का मुस्लिम समुदाय प्रेरणा ले और मुख्य धारा में आकर हिन्दू समाज का विश्वास जीतने की दिशा में ठोस कदम उठाए | आखिर 1528 से चल रहे इस संघर्ष को क्या अंतहीन होना चाहिए ? 

हाशिम ने जो कहा वही लगभग हर आम मुसलमान की आवाज है, किन्तु राजनेता नहीं चाहते कि यह विवाद समाप्त हो | यही कारण है कि ढ़ाई दशक पहले जिस विवादित बाबरी ढांचें का विध्वंस हुआ, उसके स्थान पर राम लला तो विराजित हैं, किन्तु आज तक 25 वर्षों के पश्चात भी वहां पक्का मंदिर नहीं बन पाया है और देश के एक सौ दस करोड़ हिन्दुओं के आराध्य, आदर्श और आशाओं के केंद्र रामलला एक तिरपाल से बनें टेंट में ही विराजें हुए हैं ! 

काश श्री राम जन्मभूमि के निर्माण का नया अध्याय हाशिम अली के उस बयान से ही प्रारम्भ हो | लेकिन दुर्भाग्य कि आज भी कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल जैसे लोग मामले को अंतहीन बनाए रखना चाहते हैं | फूट डालकर राज करने की पुरानी नीति आज भी जारी है !

जन्म भूमि प्रकरण के मुख्य तथ्य और तिथियाँ

जिस अयोध्या में यह समूचा विवाद केन्द्रित है वह अयोध्या प्रतापी सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी के रूप में इतिहास में चर्चित रही है. महाराजा सगर, भागीरथ और सत्यवादी हरिश्चंद्र की वंश परम्परा में दशरथ के पुत्र और भारत भूमि के आराध्य श्री राम का जन्म हुआ. विश्व प्रसिद्द स्विट्स्बर्ग एटलस में 8 वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक के अयोध्या के चित्र और उल्लेख हैं. आस्ट्रिया के ईसाई पादरी टाईफैन्थेलर ने 1740 से लेकर 1785 तक की अपनी भारत यात्रा के संस्मरणों में अवध के अपनें पचास पृष्ठीय वृतांत में विस्तार से लिखा है कि अयोध्या में एक बाबरी ढांचा है जिस स्थान की पूजा हिन्दू अपनें मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्म स्थान मानतें हुए श्रद्धापूर्वक करतें हैं.

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में छह दिसंबर यानी आज की तिथि बड़ी ही महत्वपूर्ण है. 22 साल पहले इसी दिन विवादित ढांचे को ढहा दिया गया था जिसका मुकदमा आज भी लंबित है. हाशिम अंसारी के बयान के नवीनतम घटना क्रम के बाद जरुरी है कि देश का हिन्दू समाज 1528 से लेकर 1949 तक के 76 युद्धों का स्मरण कर ले और 1949 यानि स्वतंत्रता के पश्चात के सभी संघर्षों का भी लेखा जोखा अपनें ह्रदय में अंकित कर ले. 

1528: अयोध्या में बाबर के सेनापति द्वारा उस स्थल पर मस्जिद का जबरिया निर्माण किया गया जहाँ इस देश के करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य श्री राम का जन्म हुआ था और वहां हिन्दुओं का मंदिर था. 

1885: कई सारे विवादों और झगड़ो के बाद मामला अदालत में पहुंचा. महंत रघुबर दास ने फैजाबाद न्यायालय में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की.

22 दिसंबर, 1949: बाबरी ढांचें में भगवान राम की मूर्ति प्रकट हुई. इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे. कलेक्टर फैजाबाद नें ढांचें में सलाखों वाला गेट लगवा कर प्रशासन का ताला डलवा दिया.

16 जनवरी, 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी. उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की.

5 दिसंबर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी ढांचें में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया.

17 दिसंबर, 1959: निर्मोही अखाड़ा द्वारा विवादित स्थल हस्तांतरित करने हेतु मुकदमा दायर.
8 अप्रेल 1984: विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू किया. विज्ञान भवन में प्रथम धर्मसंसद का आयोजन हुआ.

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी. ताले दोबारा खोले गए.

1989: प्रयागराज कुम्भ में सिद्ध संत, पूज्य पाद देवराहा बाबा ने देश भर के ग्राम-ग्राम में राम मंदिर हेतु शिला पूजन का आव्हान किया, राष्ट्र भर से पौनें तीन लाख शिलाएं अयोध्या लाई गईं और 9 नव. 1989 को श्री कामेश्वर जी के हस्ते जन्म भूमि मंदिर का शिलान्यास हुआ.

1 जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया.

24 मई, 1990: हरिद्वार में विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ. संतो नें इस वर्ष की देवउठनी ग्यारस यानि 30 अक्टू. 1990 मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा प्रारम्भ करनें की घोषणा की गई.

अक्टू.1990: उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंग ने हिन्दुओं को चुनौती प्रस्तुत कर दी और कहा कि अयोध्या में कार सेवा तो क्या परिंदे को पर भी नहीं मारनें देंगे!! मुलायमसिंग ने अयोध्या को विशाल छावनी में बदल कर चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात कर दिया और अयोध्या आनें जानें वाले सभी आवागमन के साधनों पर रोक लगा दी.

30 अक्टू. 1990: बाबरी ढांचें पर राम भक्तों ने भगवा ध्वज फहरा दिया.

2.नव.1990: मुलायम सिंग नरसंहार पर उतारू हो गए. कोलकाता से आये राम भक्त कारसेवक दो सगे भाई कोठारी भाइयों में से एक को मकान से निकाल कर गोली मारी और जब दूसरा भाई अपनें भाई की जान बचानें आया तो उसे भी वहीं गोली मार दिया. शहीद कोठारी बंधुओं की नृशंस हत्या से देश भर के हिन्दुओं का रक्त उबल उठा!!

4अप्रेल1991: इतिहास की सबसे बड़ी रैली के रूप में अंकित इस समागम में देश भर से पच्चीस लाख राम भक्त दिल्ली में एकत्रित हुए जन्मभूमि का संघर्ष तीव्र हो चला. 

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया.

9जुलाई,1992: मंदिर की नीवं के चबूतरे का कार्य प्रारम्भ हुआ. प्रम नरसिम्हाराव नें संतो से समय माँगा. उन्हें समय देकर कार्य रोका गया.

26 सित.1992: श्री राम पादुका पूजन के कार्यक्रमों के माध्यम से देश भर में जनजागरण हुआ.

30 अक्टू.1992: दिल्ली की पाचवी धर्मसंसद में घोषणा हुई कि 6 दिस. 1992 से पुनः अयोध्या में कारसेवा प्रारम्भ होगी.

6 दिसंबर, 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को ढहा दिया. एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया. उधर प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया.

8 दिस.1992: अयोध्या में कर्फ्यू, जन्मभूमि परिसर केन्द्रीय सुरक्षा बालों को सौंप दिया गया.

1 जन.1991: हरिशंकर जैन नामक महानुभाव नें न्यायालय से कहा कि भगवान् श्री राम के राग, भोग, पूजन की अनुमति दी जाए. अनुमति मिल गई.

7जन. 1993: भारत सरकार ने बाबरी ढांचें को घेरते हुए उसके चारो ओर की 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया. भगवान् के दर्शन हेतु कष्टप्रद घेरें और स्थितियों से गुजरनें को मजबूर होनें लगे हिन्दू बंधू. 

16 दिसंबर, 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ.

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था.

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की.

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की. खुदाई कार्य हेतु विदेशों से विशेषज्ञ आये और सभी पक्षों के प्रतिनिधियों के साथ साथ प्रशासनिक देख रेख और वीडियोग्राफी में खुदाई कार्य किया गया. विशेषज्ञों ने बताया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं. इससे सामान्य मुस्लिम समाज में भी इस स्थान को हिन्दुओं को सौंप देनें की मानसिकता पुख्ता होनें लगी.

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया. सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया.
जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी विवादास्पद रिपोर्ट सौंपी.

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया.

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसे सभी पक्ष असहमत हुए.


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रामजन्मभूमि को कानूनी विवाद में ले जाने वाले मरहूम हाशिम अली की अंतिम इच्छा - प्रवीण गुगनानी
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