वर्ष का पहला और अनोखा पूर्ण चंद्र ग्रहण कल - संजय तिवारी

इस महीने की आखिरी तारीख बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति 35 साल बाद देखने को मिल रही है।माघ की पूर्णिमा यानी 31 जनवरी 2018 को वर्ष का पहला ग्रहण है। यह चंद्रग्रहण पुख्य नक्षत्र में होकर अश्लेषा के प्रथम चरण मे समाप्त होगा। इस बार ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटा 7 मिनट है। यह चंद्रग्रहण भारत के सभी स्थानों पर दिखाई पड़ेगा। खगोल विज्ञान की भाषा में कल चंद्रमा का एक अनूठा रूप देखने को मिलेगा, जिसे खगोल वैज्ञानिक अंग्रेजी में ‘सुपर ब्लू मून’ कहते हैं। एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की पब्लिक आउटरीच कमेटी के अध्यक्ष नीरूज मोहन के अनुसार “ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में जब दो बार पूर्णिमा पड़े तो सुपर ब्लू मून होने की संभावना रहती है। पूर्ण चंद्रग्रहण, सुपर मून और ब्लू मून समेत तीन खगोलीय घटनाओं को समन्वित रूप से ‘सुपर ब्लू मून’ कहा जाता है। अमेरिका में इसे 152 साल के बाद होने वाली खगोलीय घटना बताया जा रहा है। 

ग्रहण की अवधि 

यह गुवाहाटी में 5:58 शाम स्पर्श करेगा वही बेंगलुरु 6:00 15 पर तथा तिरुवंतपुरम 6:24 पर स्पर्श कर रहा है। बनारस में 5:35 शाम को स्पर्श और वहीं लखनऊ में 5: 41 मिनट शाम को स्पर्श कर रहा है। लखनऊ में खग्रास आरंभ 6: 26 मिनट मध्यकाल से आरम्भ होकर 7: 7 पर समाप्ति 7: 44 ग्रहण का मोक्ष काल 8:48 पर होगा। 

नौ घंटे पूर्व सूतक काल प्रारंभ

ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता बता रहे हैं कि माघ मास की पूर्णिमा उत्तरायण होने के कारण पृथ्वी के चंद्र निकट होगा। चंद्रमा हृदय का कारक होने से जहां पर चंद्रग्रहण दिखाई पड़ेगा, वहां के प्रत्येक जीव पर इसका शुभ और अशुभ प्रभाव पड़ेगा। भारतीय प्राचीन शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के स्पर्श समय से 9 घंटे पूर्व सूतक काल प्रारंभ हो जाता है। इस काल में मूर्तियों को स्पर्श नहीं करना चाहिए और न भोजन करना चाहिए। लेकिन बच्चों, वृद्धजनों के और रोगियों के लिए इस काल में प्रतिबंध नहीं है। शास्त्रों में स्पर्श काल में स्नान, ग्रहण काल में होम, मंत्र जप और खग्रास समाप्ति पर दान, मोक्ष काल पर स्नान करना चाहिए। इस अवधि में जपे गए मंत्र सिद्धि को प्राप्त करते हैं और दान अक्षय को प्राप्त होता है। वहीं गंगा में स्नान करने से पिछले किए गए पाप कर्म नष्ट हो जाते है।

इसे कहते हैं ‘सुपर ब्लू मून'

इस बारे में इंडिया साइंस वायर के लिए प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. टी.वी. वेंकटेश्वरन लिखते हैं कि अपनी कक्षा में चक्कर लगाते हुए एक समय ऐसा आता है जब पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है। ऐसे में चांद का आकार बड़ा और रंग काफी चमकदार दिखाई पड़ता है। उस दौरान चंद्रमा के बड़े आकार के कारण उसे ‘सुपर मून’ की संज्ञा दी जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में दूसरी बार ‘सुपर मून’ पड़े तो उसे ‘ब्लू मून’ कहा जाता है। हालांकि इसका संबंध चंद्रमा के रंग से बिल्कुल नहीं है। वास्तव में पाश्चात्य देशों में ‘ब्लू’ को विशिष्टता का पर्याय माना गया है। चांद के विशिष्ट रूप के कारण ही उसे यहां ‘ब्लू’ संज्ञा दी गई है। ब्लू मून के दिन चंद्र ग्रहण भी हो तो इसे ‘सुपर ब्लू मून ग्रहण’ कहते हैं।

वैज्ञानिको के लिए खास 

डॉ. टी.वी. वेंकटेश्वरन के मुताबिक 31 जनवरी को भारतीय समय के अनुसार छह बजकर 22 मिनट से सात बजकर 38 मिनट के बीच धरती इस खगोलीय घटना का गवाह बनेगी। यह 2018 का पहला ग्रहण होगा। इसका संयोग दुर्लभ होता है और कई वर्षों के अंतराल पर यह घटनाक्रम देखने को मिलता है। विज्ञान-प्रेमियों के लिए यह दिन बेहद खास होता है क्योंकि उन्हें चांद के खास स्वरूप को देखने की उत्सुकता रहती है। पुणे के इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स से जुड़े खगोल वैज्ञानिक समीर धुर्डे के अनुसार “सुपर मून के दिन चंद्रमा सामान्य से 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत अधिक चमकदार दिखाई पड़ेगा। हालांकि, नंगी आंखों से इस अंतर का अंदाजा लगा पाना आसान नहीं है।

ताम्बे के रंग का दिखेगा चाँद 

खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक सामान्य खगोलीय घटना है। पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा अपना एक चक्कर 27.3 दिन में पूरा करता है। लेकिन दो क्रमागत पूर्णिमाओं के बीच 29.5 दिनों का अंतर होता है। दो पूर्णिमाओं के बीच यह अंतर होने का कारण चंद्रमा की कक्षा का अंडाकार या दीर्घ-वृत्ताकार होना है। एक महीने में आमतौर पर 28, 30 या फिर 31 दिन होते हैं। ऐसे में एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होने की संभावना भी कम ही होती है। इसलिए सुपर मून भी कई वर्षों के बाद होता है। इस घटनाक्रम की एक विशेषता यह भी है कि चंद्रग्रहण के बावजूद चांद पूरी तरह काला दिखाई देने के बजाय तांबे के रंग जैसा दिखाई पड़ेगा। डॉ. समीर के मुताबिक “इसमें धरती के उस पारदर्शी वातावरण की भूमिका होती है। चंद्रग्रहण के दौरान सूर्य और चांद के बीच में धरती के होने से चांद पर प्रकाश नहीं पहुंच पाता। इस दौरान सूर्य के प्रकाश में मौजूद विभिन्न रंग इस पारदर्शी वातावरण में बिखर जाते हैं, जबकि लाल रंग पूरी तरह बिखर नहीं पाता और चांद तक पहुंच जाता है। ब्लू मून के दौरान इसी लाल रंग के कारण चांद का रंग तांबे जैसा दिखाई पड़ता है।

सांस्कृतिक मान्यता 

पारंपरिक भारतीय कैलेंडर आमतौर पर चांद की स्थिति पर आधारित हैं। हिंदू, इस्लामिक और तिब्बती कैलेंडरों में भी महीने में एक से अधिक पूर्णिमा नहीं हो सकती क्योंकि इन कैलेंडरों के मुताबिक महीने का आरंभ और अंत अमावस्या या फिर पूर्णिमा से होता है। इसलिए ब्लू मून का संबंध किसी खगोलीय घटना के बजाय सांस्कृतिक मान्यता से अधिक माना जाता है।

अगला ब्लू मून 31 दिसंबर, 2028 को 

इसमें भी भ्रम है कि पिछली बार ‘ब्लू मून’ 30 दिसंबर 1982 को दिखाई पड़ा था या फिर 31 मार्च 1866 को। वैज्ञानिकों के अनुसार इन दोनों ही तारीखों पर ब्लू मून दिखाई पड़ा था। लेकिन भारत समेत विश्व के कई अन्य देशों में ब्लू मून पिछली बार 30 दिसंबर 1982 को दिखाई दिया था। वहीं, 31 मार्च 1866 को अमेरिका समेत विश्व के अन्य हिस्सों में ब्लू मून दिखा था। इस भ्रम के पैदा होने का कारण दोनों देशों के मानक समय में अंतर होना है।पिछली बार एक ब्लू मून ग्रहण 30 दिसंबर, 1982 को पड़ा था, जो भारत के पूर्वी भाग में दिखाई दे रहा था। 1 दिसंबर और 30 दिसंबर, 1982 दोनों ही पूर्णिमा के दिन थे, जिसमें से दूसरी पूर्णिमा को ब्लू मून कहा गया। हालांकि, अमेरिकी टाइम जोन के अनुसार पूर्णिमा 1 दिसंबर के बजाय 30 नवंबर, 1982 को थी। इसलिए उसे अमेरिका में ब्लू मून नहीं माना गया था। यही कारण है कि अमेरिकी मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है कि इस बार 152 साल बाद ब्लू मून दिखेगा। अगली बार ब्लू मून 31 दिसंबर, 2028 को पड़ने वाला है।

शुभ और अशुभ प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह राशियों पर शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का असर डालता है। जिस राशि में ग्रहण होता है उस राशि के लिए घात कहा गया है, उसकी दूसरी राशि को हानि होती है। जैसे इस बार कर्क राशि में होने से कर्क राशि के लिए घात, सिंह राशि को हानि, वृश्चिक राशि को मान हानि, धनु राशि को कष्ट, मकर राशि को स्त्री कष्ट, वहीं पर कुंभ राशि को सुख, वृष राशि को लक्ष्मी की प्राप्ति और कन्या राशि को लाभ। तुला राशि को अनेक सुखों की प्राप्ति, मिथुन नुकसान तथा मेष राशि वालों को मानसिक पीड़ा प्राप्त हो रही है।

कैसे कम करें ग्रहण का दुष्प्रभाव

दुष्प्रभाव कम करने के लिए मेष राशि वाले हनुमान जी का पूजन करें। वहीं पर मिथुन राशि वालों को भगवान नारायण का पूजन करना चाहिए। सिंह राशि वालों को लक्ष्मी जी का पूजन लाभकारी होगा। वहीं कर्क राशि वालों को श्री मृत्युंजय देवता का पूजन करना चाहिए। वृश्चिक राशि वालों को दुर्गा जी का पूजन और चंद्रमा का दान करना चाहिए। धनु राशि वालों को रुद्र पूजन करना चाहिए। मकर राशि वालों को पार्वती सहित भगवान शिव का पूजन करना चाहिए।

राशियों के लिए ग्रहण है शुभ

अपनी मनोवांछित कार्य सिद्धि के लिए कारक देवता और कारक मंत्रों का पूजन करें। जैसे लक्ष्मी प्राप्ति के लिए श्री सूक्त का जाप, सभी लोगों को लक्ष्मी नारायण का पूजन करना चाहिए। दुष्प्रभाव से बचने के लिए शयन न करें और न यात्रा करें। भोजन न करें तथा कठोर शब्द का प्रयोग न करें। किसी चीज में छेद न करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। जल में दूर्वा डालकर स्नान करें और राम नाम का जप करते रहें। चांदी का सर्प बनाकर बहते हुए पानी में छोड़ने से शीघ्र लाभ की प्राप्ति होती है। 

दान करते समय पढें यह मंत्र-

तमोमय महाभीम सोमसूर्य विमर्दन
हेम नाग प्रदानेन मम शांन्तिप्रदो भव|
दानकरते समय कहे
ग्रहणे क्लेश नशाय दैवज्ञाय निवेदयेत। 

संजय तिवारी 
संस्थापक - भारत संस्कृति न्यास (नयी दिल्ली)
वरिष्ठ पत्रकार
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