ग्वालियर किले का खूनी इतिहास -



ग्वालियर किले के निर्माण की भी एक विचित्र कहानी है | कहा जाता है कि एक कछवाहा राजपूत राजकुमार, सूरज सेन कुष्ठ रोग से पीड़ित था | एक सन्यासी ने उसे सूरज कुंड के पास स्थित झरने में स्नान करने व पानी पीने की सलाह दी, और आश्चर्य कि वह ठीक हो गया | सूरज कुंड आज भी विद्यमान है । उसके बाद कच्छवाह राजा ने इस किले का निर्माण करवाया | इतिहासविद मानते हैं कि इस इलाके पर 1192 तक कछवाहों का ही शासन रहा था, जिनमें सबसे उल्लेखनीय तेजकिरण था । उसने एक सुन्दर राजकुमारी से शादी की, और उसके बाद राजकाज मानो भूल ही गया | एक वर्ष तक वह महल से ही नहीं निकला | नतीजा यह निकला कि उसका भतीजा, एक परिहार राजपूत सिंहासन हड़पने के लिए प्रेरित हुआ ।

लेकिन मूल कहानी इसके भी सौ साल पहले शुरू होती है, जब 1021 में इतिहास के कुख्यात महमूद गजनवी के हाथियों ने इस किले के दरवाजों पर टक्कर मारी, लेकिन कछवाहों के हाथों पराजित होकर लौट गया | लेकिन 1196 में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने किले को जीत कर अपने कब्जे में ले लिया | इसके चौदह साल बाद, परिहारों ने कुतुब-उद-दीन के बेटे के शासनकाल में किले पर आधिपत्य कर लिया | किला बार बार आक्रमणकारियों को आकर्षित कर रहा था | इस बार अल्तमश ने महीनों की घेराबंदी के बाद इस पर कब्जा करने में सफलता पाई और अपनी जीत का जश्न, 700 कैदियों को मारकर मनाया । कछावयों द्वारा बनवाये गए किले पर परिहारों के बाद मुगलों का कब्जा हो गया | ग्वालियर किले में भी जौहर की ज्वाला का उल्लेख मिलता है | राजपूत ललनाओं ने मुस्लिमों के हाथों अपनी अस्मिता लुटने से बचाने के लिए अग्निस्नान करना अधिक उपयुक्त माना | 

लेकिन सारे बलिदान व्यर्थ हुए और किले तथा आसपास के इलाके पर मुस्लिम शासकों का कब्जा 1398 तक बना रहा | उसके बाद तैमूर के आक्रमण की अफरातफरी का फायदा उठाकर तोमर राजपूतों ने ग्वालियर किले का आधिपत्य मुगलों से छीन लिया |

तोमर वंश का राज्य काल ग्वालियर का स्वर्ण काल कहा जाता है । उस दौरान भारत का यह ह्रदय प्रदेश पूरी तरह शांत रहा, और कला संगीत के क्षेत्र में भी प्रगति हुई । राजा मानसिंह को तो शताब्दी के महानतम शासकों में से एक माना जाता है | उनके समय में ही ग्वालियर किले पर मान मंदिर का निर्माण हुआ | प्रसिद्ध महारानी मृगनयनी की गाथा भी उसी दौर की है | संगीत का ग्वालियर घराना भी उसी समय प्रसिद्धि की सीढियां चढ़ा | आइना ए अकबरी में भी ग्वालियर के 56 बड़े गायकों का उल्लेख मिलता है, इनमें युग के महान गायक व अकबर के नौरत्नों में से एक तानसेन भी थे ।

किन्तु महाराज मानसिंह के साथ ही राजपूत शासन का भी अंत हो गया और किला एक बार फिर दिल्ली के इब्राहीम लोदी के कब्जे में पहुँच गया । उसके बाद अठारहवीं सदी तक तुर्की के हमलावर बाबर के बाद उसके बेटे हुमांयू तक ग्वालियर पर मुगलों का ही शासन रहा | इसके बाद जौनपुर के शासक अफगान, मालवा और मेवाड़ तक काफी मजबूत हो गए । इस दौरान १५ वर्षों तक शेरशाह सूरी और उसके वंशजों ने ग्वालियर किले में अपना समय बिताया और एक प्रकार से ग्वालियर को अपनी राजधानी ही बना लिया ।

इसके बाद आया क्रूर और हिंसक बाबर, जिसने ग्वालियर पर अपने खूनी पंजे के स्थाई निशान छोड़ दिए | आज जो किले के नीचे स्थित संग्रहालय में टूटी फूटी मूर्तियों के भग्नावशेष दिखाई देते हैं, यह उसी दरिन्दे की करतूत है | टूटी हुई शाल भंजिका और नक्काशीदार विशाल जैन मूर्तियाँ आज भी उस आक्रान्ता की याद ताजा कर देती हैं ।

मुगलों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था, इसलिए ग्वालियर किले का उनके लिए कोई ख़ास महत्व तो था नहीं, किन्तु उन्होंने इसका बड़ा ही दर्दनाक उपयोग किया | ग्वालियर का किला उनके विरोधियों के लिए जेल के रूप में तब्दील हो गया | दो सौ वर्षों तक अनेक राजकुमारों, सामंतों और रहीसों की लंबी श्रंखला किले ने बंदी के रूप में अपने परिसर में देखी, जो एक बार यहाँ आने के बाद कभी बाहरी दुनिया में नहीं लौट पाए । इनमें से अधिकतर वे होते थे जिन्हें मुग़ल सम्राट अपने लिए खतरनाक मानते थे, किन्तु खुले तौर पर मार भी नहीं सकते थे । इसलिए उन्हें समाप्त करने की एक क्रूर तरकीब ईजाद की गई थी | यहाँ के पानी में अफीम घोल दी जाती थी, जो धीमे जहर का काम करती थी और बंदी मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होकर धीरे धीरे मर जाते थे | इस प्रकार जिन लोगों को मारा गया, उनमें दारा शिकोह के दो बेटे सुलेमान शिकोह और सिपीही शिकोह के साथ स्वयं औरंगजेब का बेटा सुल्तान मुहम्मद भी शामिल थे ।

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