विद्या के मंदिर का किस तरह मखौल उड़ाया जा सकता है, यह यदि किसी को देखना है तो एक बार वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के नाम ...
समझने की बात यह है कि ये वेतन उन्हें अध्यापन कार्य के लिए दिया जा रहा है। जब जेएनयू में बच्चों को नियमित कक्षा में पढ़ना ही नहीं है तो क्यों फिर उनके लिए इतनी फैकल्टी की सुविधा हो और क्यों बेकार में सरकार उन पर इतना खर्च करे, यह भी विचारणीय है। जेएनयू में हर स्टूडेंट पर सलाना सरकारी खर्च तीन लाख आता है और हर साल जेएनयू को लगभग 300 करोड़ रूपये सरकारी मदद के तौर पर दिए जाते हैं। क्यों न यह माना जाए कि आज यहां आन्दोलित छात्र इस तरह के व्यर्थ आन्दोलन कर देश की आम जनता का टैक्स से प्राप्त सरकारी अनुदान का पैसा बर्बाद कर रहे हैं? क्या ऐसे क्लास में नहीं जाकर देश में शिक्षा के गिरते स्तर में गुणवत्ता का सुधार होगा?

मध्यप्रदेश समाचार
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