कहीं रचा तो नहीं जा रहा शिवपुरी को पगलापुर बनाने का षड़यंत्र ?
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वर्ष 2012 में अक्षय कुमार की एक फिल्म आई थी नाम था “जोकर” | इस फिल्म
में एक स्थान था “पगलापुर” | इस फिल्म की कहानी यह थी कि भारत के आजाद होने के कुछ महीने पहले एक
अंग्रेज ने भारत का नक्शा बनाया। वह पगलापुर जाकर अपने नक्शे को पूरा करना चाहता
था, लेकिन उस गांव पर पागलखाने से भागे पागलों ने कब्जा कर लिया। वह
अंग्रेज पगलापुर नहीं जा पाया और उस गांव को भारत के नक्शे में दिखाए बिना उसने
भारत का नक्शा पास कर दिया।
पगलापुर गांव में न बिजली है और न पानी। आजादी के वर्षों बाद भी उस
गांव के बारे में कोई नहीं जानता। वहां के लोग पागल जैसी हरकतें करते हैं। कोई
अपने आपको लालटेन समझ कर उलटा लटका रहता है तो कोई हवाई जहाज को देख यह समझ बैठता
है कि हिटलर ने हमला कर दिया है। मध्यप्रदेश के शिवपुरी कि वर्तमान स्थिति को
देखकर लगता है कि “जोकर” फिल्म से प्रभावित होकर पगलाए हुए अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों ने शिवपुरी
पर कब्जाकर इसे “पगलापुर” बनाने की ठानी है |
राजस्थान और बुंदेलखंड के बीच उत्तरी मध्यप्रदेश का यह छोटा सा शहर
शिवपुरी, अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के चलते सिंधिया राज घराने को ऐसा भाया कि
उन्होंने इसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी ही बना लिया | उस ज़माने में यहाँ ताल तलैय्यों
की भरमार हुआ करती थी | कुओं में भी महज पंद्रह बीस फुट पर पानी उपलब्ध था |
किन्तु धीरे धीरे पगलाए हुए अधिकारियों की आबक शुरू हुई, और चंद सिक्कों पर अपना
ईमान न्यौछावर कर इन लोगों ने तलैय्यों में कालोनियां तनवा दीं, आसपास के जंगल
खदानों की भेंट चढवा दिए | और फिर हश्र यह हुआ कि महाराजाओं की ग्रीष्म कालीन
आरामगाह का मौसम अन्य शहरों से भी अधिक गर्म होता गया | हजार – डेढ़ हजार फुट पर भी
जल के दर्शन दूभर हो गए |
फिर शुरू हुआ पैसे के पीछे पगलाए हुए अधिकारियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों
का दूसरा कारनामा, आमजन को भी पागल बनाने का षडयंत्र | सिंध से पानी लाकर शिवपुरी
की जनता को पिलाने का सब्ज बाग़ दिखाया गया और साथ ही स्टेट टाईम की जर्जर सीवर
लाईन को सिंगापुर जैसी आधुनिक बनाने का कागजी प्लान बनाया गया | सीवर लाईन के लिए
तो इन पगलाए हुए लोगों ने एक साथ पूरे शहर को ही खोद दिया गया | कहा जाता है कि
ठेकेदारों के साथ मिली भगत से खुदाई में निकले पत्थर को बेच खाया गया | सारा शहर
खाई नुमा गड्ढों और धुल मिट्टी से पट गया | और यह स्थिति थोड़े बहुत समय नहीं, पूरे
चार वर्ष रही | इसके बाद जैसे ही विधान सभा चुनाव नजदीक आये, जन प्रतिनिधियों के
सर पर से पागलपन का भूत उतरने लगा और फिर शुरू हुआ सडकों की दुरुस्ती का दौर | इसमें
भी मजा यह रहा कि आनन फानन में खदान नुमा गड्ढों को कच्ची मिट्टी से भरकर उस पर
सड़कें बनाई जाने लगीं, जो वर्षाकाल में धंस ही जायेंगी | और फिर दुबारा मरम्मत के
नाम पर सरकारी धन का दोहन किया जाएगा |
नगरी में चारों ओर पानी के लिए त्राहि त्राहि मंची ही हुई है और प्यासी
जनता को पानी पिलाने के नाम पर 9
वर्षों में सिंध जल परियोजना के नाम पर करोड़ों
रुपया पानी की तरह बहाया जा चुका है और लगातार जारी है जनता को मूर्ख बनाने का क्रम | दरअसल 9 वर्ष
पूर्व प्रारंभ हुई सिंध जल परियोजना जिसे मात्र 2 वर्ष में पूर्ण होना था अभी
तक पूर्ण तो हुई नहीं है, हाँ प्रदेश के बड़े घोटालों में जरूर शुमार हो चुकी है (बशर्ते
इस परियोजना में हुए भ्रष्टाचार की जांच करायी जाए तो) | लगभग 68 करोड़
रुपये से प्रारंभ हुई इस परियोजना में आज तक लगभग 125 करोड़ रुपये दफ़न हो चुके है | नगर
पालिका के द्वारा इस परियोजना को पूर्ण करने की जिम्मेदारी दोशियान नामक कंपनी को
दी गयी, जो कि पानी का व्यापार करने वाली फ्रांसीसी कंपनी विओलिया की सहयोगी कंपनी
है | कंपनी ने नगर पालिका के द्वारा बनाए गए DPR के
अनुसार कार्य करना प्रारंभ कर दिया | परन्तु लोकल इंजिनियर के
द्वारा तैयार यह DPR इतना निम्न दर्जे का था कि उसमें जिन प्रमुख बातों को स्थान दिया
जाना था वह बातें ही इसमें से नदारद थी | जैसे – वन विभाग
से वन क्षेत्र में पाइप डालने की अनुमति लेना | जिसके कारण कुछ समय बाद ही
पूरा प्रोजेक्ट बंद हो गया |
इस दौरान कंपनी को कार्य के भुगतान के रूप में बड़ी
रकम अर्पित की जा चुकी थी (जो कार्य हुआ ही नहीं उसका भी) |
बाद में कुछ आन्दोलन हुए जिसकी वजह से यहाँ के जनप्रतिनिधियों को
अपनी कुर्सी डोलती नजर आई और उन्होंने आश्वासन देकर आन्दोलन बंद करवाया पर उनके
आश्वासन झूठे ही साबित हुए जिसके कारण उन आन्दोलनकारियों को पुनः आन्दोलन करने के
लिए बाध्य होना पड़ा, जो आज भी विगत २२ दिनों से जल क्रांति सत्याग्रह के नाम से जारी
है | इस भयंकर गर्मी में भूख हड़ताल पर बैठने वाले क्रमिक जत्थे, परियोजना में
भ्रष्टाचार करने वाले दोषियों को सजा दिलाने एवं परियोजना में उपयोग किये गए घटिया
पाइप को बदलकर उनके स्थान पर उच्च क्वालिटी के पाइपों का प्रयोग कर शीघ्र ही
शहरवासियों को उनके घरों में नलों की टोटियों के माध्यम से सिंध का शुद्ध जल
उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं | परन्तु शासन-प्रशासन, मंत्री-संत्री, नेता-जनप्रतिनिधि, यहाँ तक
कि स्थानीय राजनैतिक लोग अगर इन सत्याग्रहियों से उनका हाल चाल पूछने की जहमत उठा लें,
तो उन्हें पागलपुर का पागल कौन कहेगा ? शायद इन स्थानीय नेताओं के लिए पीने का
पानी इनके आकाओं के द्वारा दिल्ली एवं भोपाल से भेजा जाता है या फिर इन
सत्याग्रहियों का किसी भी प्रकार का सहयोग करने पर इन स्थानीय नेताओं को अपना
राजनैतिक भविष्य ख़त्म होता दिखाई दे रहा है |
पानी के लिए तरसती जनता के लिए जैसे ही यह सत्याग्रह पुनः प्रारंभ
हुआ वैसे ही शासन-प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों की कुटिल चालें प्रारंभ हो गयी | इस
सत्याग्रह को दबाने के लिए धारा 144
लगा दी गई, जो अभी तक जारी है | इसके बाद
बड़ी मसक्कत के बाद इस सत्याग्रह हेतु प्रशासन की अनुमति प्राप्त हुई किन्तु
सत्याग्रहियों को माइक, नारेबाजी या रैली निकालने की अनुमति नहीं दी गयी | कुछ
दिनों बाद शहर मे टूटे फूटे पाइपों को जोड़ तोड़ कर जगह जगह से पानी का प्रेशर कम
करने के लिए हजारों गैलन पानी को बहा कर एक छोटी सी पानी की धारा को शहर में
प्रविष्ट कराया गया | सिंध का यह गन्दा पानी शहरवासियों को बड़ी सौगात बताते हुए प्रचारित
किया गया कि शहर में सिंध का पानी आ गया है | कहा जाने लगा कि पानी के नाम पर
सत्याग्रह कर रहे सत्याग्रही राजनैतिक ममहत्वाकांक्षा के कारण जन प्रतिनिधियों को
दोषी ठहरा रहे हैं | जबकि सचाई यह है कि यह प्रचारित करने वाले छुट भैया नेता स्वयं ही अपने आकाओं की छवि को
शहर की जनता की नज़रों में विलेन बनाने का कार्य कर रहे है क्यूंकि जनता सब जानती
है कि जो पानी परियोजना के माध्यम से उनके घरों के नलों की टोटियों में आना चाहिए
था वह अब भी टेंकरों के माध्यम से केवल पानी की उन टंकियों में पहुँचाया जा रहा है
जहाँ हाईडेंट बने हुए है और इन हाईडेंट से पानी को टंकियों में चढ़ाया जा रहा है
बाद में यहाँ से पानी की सप्लाई पुरानी लाइनों के माध्यम से की जा रही है | यह ठीक
उसी प्रकार से है जैसे किसी फिल्म में जेल में बंद कैदी को प्यास लगने पर विलेन से
पानी की गुहार लगाने पर विलेन द्वारा उसके सामने पानी फैलाया जाता है और उसके
द्वारा जोर का अट्टहास लगाया जाता है |
इस सत्याग्रह को दबाने के लिए साम दाम दंड भेद की ऐसी घिनौनी राजनीति
का उपयोग किया जा रहा है कि पूछो ही मत | यह तब देखने को मिला कि जब
इन सत्याग्रहियों के द्वारा एक रैली के रूप में मुख्यमत्री के नाम का ज्ञापन
कलेक्टर को देने का
कार्यक्रम बनाया गया | प्रशासनिक
अधिकारियों ने इस रैली को फ़ैल करने हेतु रैली की तिथि के दो दिन पूर्व से शहर की
टंकियों को टैंकरों के माध्यम से भरा गया और रैली वाले दिन ही रैली प्रारंभ होने
से पूर्व ही नलों के माध्यम से पानी की सप्लाई प्रारंभ कर दी जो कि शाम तक चालू
रही एवं जिन क्षेत्रों में नलों के माध्यम से पानी नहीं पहुँच पाया उन क्षेत्रों
में टैंकरों के माध्यम से पानी की सप्लाई कर लोगों को रैली में पहुँचने से रोका
गया | यही नहीं शहर में धारा 144 लगी होने पर एक सुनियोजित
षड़यंत्र के तहत शहर में स्थित तात्या टोपे की मूर्ति को ध्वस्त करने का प्लान भी
बनाया गया जिससे शहर की जनता का ध्यान पानी से हटकर इस मुद्दे पर आकर्षित हो |
इस तरह से तमाम तरीकों के द्वारा शहर की जनता के साथ पानी पर राजनीति
कर दोषियों को बचाने का गन्दा खेल यहाँ रचा जा रहा है और जनता है कि चुपचाप देख
सुन रही है | शहर में पीने को पानी नहीं, चलने को सडकें नहीं, काम-धाम
को रोजगार नहीं, है तो बस गन्दी राजनीति | विधानसभा उपचुनाव में सत्ता
पक्ष के प्रत्याशी को पूरी कैबिनेट के द्वारा मिलकर भी नहीं जिता पाना, लोकसभा
चुनाव में कांग्रेस प्रत्यासी सिंधिया का शिवपुरी से पराजित होना, संभवतः वे कारण
हैं कि क्या सत्ता क्या विपक्ष दोनों ही ओर के राजनेता शिवपुरी की दुर्दशा करने पर
आमादा हैं | पागल अधिकारी व जन प्रतिनिधि शिवपुरी को पगलापुर बनाने का षडयंत्र रच
रहे हैं | क्या आप जागेंगे ? या फिर बनने देंगे शिवपुरी को पगालापुर |
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शिवपुरी
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