केरल में इस्लामी कट्टरपंथ की दुधारी तलवार ने आखिर मार्क्सवादियों को भी निशाना बनाना शुरू कर ही दिया

अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और अनुपम प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात केरल एक राक्षसी राज्य में बदल रहा है | क्या से क्या हो गया ? कहाँ महान संत आद्य शंकराचार्य की जन्म भूमि, सुविख्यात सम्राट राजा रवि वर्मा की कर्मभूमि और कहाँ आज खूनी दरिंदों के चंगुल में फंसा केरल ? मार्क्सवादियों द्वारा जो हिंसा का दावानल दहकाया गया था, उसकी आग अब उन्हें भी जलाने लगी है | 

विगत सोमवार को एक ऐसा ही दिल दहलाने वाला घटनाचक्र सामने आया | एर्नाकुलम के महाराजा कालेज में S.F.I यानी स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के तीन दलित छात्रों पर पोपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (P.F.I) के वहाबी मुस्लिम युवकों बिलाल , फारूक , रियाज ने चाकुओं से क़ातिलाना हमला कर गंभीर रूप से धायल कर दिया, जिसमें एक विद्यार्थी अभीमन्यु की धटनास्थल पर ही मौत हो गई और शेष बचे दोनों गंभीर हालत में मौत से संघर्ष कर रहे हैं ! 

यह वही अतिवादी संगठन है, जिसने स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार न्यायपालिका के विरुद्ध खुले तौर पर एलाने जंग घोषित किया था | लव जिहाद संबंधी निर्णय देने वाले दो जजों सुरेन्द्र मोहन और अब्राहम मैथ्यू को धमकाया गया, उन्हें न्यायालय में प्रवेश करने से रोका गया | अब्दुल रज्जाक मौलवी और वी के शौकत अली जैसे अतिवादीयों द्वारा कहा गया कि यह निर्णय शरीया के खिलाफ है, इसलिए जजों को सबक सिखाया जाएगा | जज सुरेन्द्र मोहन को तो आरएसएस का आदमी घोषित कर दिया गया, जबकि वे एक ईसाई मतावलंबी हैं | न्याय पालिका के विरुद्ध इस्लामिस्ट द्वारा 30 मई 2017 को एर्नाकुलम बंद की घोषणा की गई | जजों पर हमले किये गए और जब पुलिस ने दंगाईयों को रोकने की कोशिश की तो पुलिस पर भी पथराव किया गया, जिसमें कई पुलिस अधिकारियों को भी गंभीर चोटें आईं | चूंकि केरल में मार्क्सवादियों का राज, और वह पूरी तरह से इन चरमपंथियों के साथ, तो इस गंभीर घटना पर भी किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही का सवाल ही नहीं उठता | क्या आपको याद आता है कि कहीं भी इस प्रकार न्याय तंत्र के खिलाफ कोई आन्दोलन हुआ हो ? जजों को धमकाया गया हो ? लेकिन केरल में हुआ | 

साफ़ है कि केरल पूरी तरह तालिबानी राज्य में बदल रहा है जहां एक कांग्रेस कार्यकर्ता द्वारा सार्वजनिक रूप से गाय का बछड़ा काटा गया | कांग्रेस हो या वामपंथी सभी चरमपंथी जिहादियों के समर्थक हैं | लेकिन वे भूल गए कि इस्लामी चरमपंथ तो दुधारी तलवार है, और अब उस तलवार ने इन लोगों को ही चोटिल करना शुरू कर दिया | यह वही पोपुलर फ्रंट है, जिसे भारत में आतंकवादी संगठन आई एस का सहयोगी माना जाता है और न्यूज़ चेनल “आजतक” के स्टिंग आपरेशन में इसका संस्थापक यह कबूल कर चुका है कि संगठन के लोग हिन्दूस्तान में वहाबी इस्लामी विचारधारा फैलाने के लिए जेहाद की तैयारी कर रहे हैं ! 

यह भी उल्लेखनीय है कि अब तक केरल के 150 से ज्यादा युवक आई एस के समर्थन में लडने सीरिया और अफगानिस्तान भाग चुके हैं | यह भी आरोप है कि PFI ने ही इनको ट्रेनिंग दी थी | इनमें से 20 से ज्यादा भारतीय युवक सीरियाई और अफगानी सेना द्वारा मारे भी जा चुके हैं ! अब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एर्नाकुलम की घटना पर मगरमच्छी आंसू बहा रहे हैं | इस दुर्दांत घटना को कट्टरपंथी इस्लामिक चरमपंथीयों की पूर्व नियोजित साजिश करार दे रहे हैं, जबकि इन लोगों ने ही अब तक इन अतिवादियों को प्रोत्साहन और सहयोग दिया था | केरल बंद आयोजित हो रहा है, कड़ी निंदा की जा रही है | यह और कुछ नहीं, अपने समर्थकों को साढ़े रखने की कवायद भर है, ताकि उन्हें भरोसा रहे कि उनका संगठन उनके साथ खड़ा है, जबकि ज़मीनी हकीकत तो यह है कि केरल में लंबे समय से PFI का और वामपंथीयों का अंडरग्राउंड गठजोड़ रहा है | मार्क्सवादियों के इशारे पर अब तक ये हिंसक लोग राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं को ही निशाना बनाते थे | बार बार मांग उठती थी कि वहाबी विचारधारा वाले इस संगठन पर प्रतिबन्ध लगाया जाए, मांग के समर्थन में स्पष्ट सबूत भी दिए जाते थे किन्तु कम्युनिस्ट सरकार इस वहाबी विचारधारा वाले संगठन पर प्रतिबन्ध से सदा पीछे हट जाती थी! 

दुर्भाग्य देखिए कि जिन दलित बच्चों पर हमला किया गया उनमें से मृत युवक की उम्र मात्र 20 वर्ष है और गंभीर घायलों की उम्र 18 वर्ष है ! और अब इतनी कम उम्र के इन युवाओं की लाश पर ये छद्म धर्मनिरपेक्षी अपनी गंदी राजनीति की रोटियां सेकेंगे ! हैरत इस बात की भी है कि इतना गंभीर और महत्वपूर्ण मामला राष्ट्रीय मीडिया ने सिरे से गोल कर दिया है | 

मान लीजिए अगर इन्हीं दलित नवयुवकों पर ABVP के विद्यार्थियों ने हमला किया होता तो क्या होता ? अभी तक तो JNU - AMU के छात्र संगठनो ने कब का समूह रुदन शुरू कर दिया होता और उनके सुर में सुर मिलाकर एन.डी.टी.वी जैसे चैनलों पर हाय तौबा चालू हो गई होती, लम्बी लम्बी बहसों का सिलसिला चल रहा होता कि कैसे मनुवादी ताक़ते कालेजों के कैंपस में और देश में अपने पैर पसार रहीं हैं | लेकिन चूंकि मामला वहाबी संगठन से जुडा है, इसलिए शवभक्षी गिद्ध मौन हैं ! उनका मुख्य उद्देश्य तो मनुवाद का डर दिखाकर, सारे विश्व में खूनी खेल खेलने वाले वहाबिज्म का बचाव करना भर है ! खाड़ी के मुल्कों का अकूत तेल का पैसा आखिर कुछ तो रंग दिखाएगा ही |

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