काश संघ के आलोचक - सेवा कार्यों में स्वयंसेवकों से प्रतिस्पर्धा भी करते !
0
टिप्पणियाँ
सेवा भारती का नाम अब कोई अनजाना नहीं रहा है | सेवा भारती से जुड़े कई कार्यकर्ता अपने अपने स्तर पर भी कई प्रकल्प चलाते हैं | ऐसा ही एक प्रकल्प है “उद्योगवर्धिनी”, जिसे महाराष्ट्र के सोलापुर नगर में, संघ के एक पूर्व प्रचारक रहे शम्भूसिंह चौहान की धर्मपत्नी चन्द्रिका चौहान ने सन 2004 में शुरू किया था |
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह संस्था महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कार्य करती है | संस्था के प्रयासों से अब तक 600 स्व सहायता समूहों के माध्यम से दस हजार महिलाओं को रोजगार मुहैया कराया जा चुका है |
सुलोचना वह दिन शायद ही कभी भूल पाए, जब गर्भावस्था के दौरान उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था | नौकरी के लिए दरदर भटकने वाली सुलोचना की जिन्दगी लेकिन आज बदल चुकी है | सोलापुर के मैन मार्केट में पद्मा टाकीज के ठीक सामने, “गणेश मार्केटिंग” के नाम से उनकी होलसोल एजेंसी है, जिसका सालाना टर्न ओवर लाखों में है |
ऐसी ही कहानी एक सामान्य गृहिणी अल्पना चंदनशिवे की है, जिन्होंने कभी “उद्योग वर्धिनी” के माध्यम से पापड़ बनाने की ट्रेनिंग ली थी और आज वे उभरती हुईं इंटरप्रन्योर हैं और स्वयं 500 से अधिक महिलाओं को रोजगार मुहैय्या करा रही हैं |
कुछ ऐसी ही गाथा वैष्णवी की है | कभी पैसे पैसे के लिए संघर्ष करने वाली वैष्णवी का बूटीक अब फैशन की नवीनतम डिजायनों के लिए जाना जाता है |
रोजमर्रा की जरूरतों के लिए संघर्ष कर रही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हुई “उद्योगवर्धिनी” को इंटरप्रन्योर ट्रेनिंग के लिए कई बार सर्वश्रेष्ठ संस्था के रूप में पुरष्कृत भी किया जा चुका है | हजारों महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने वाली इस संस्था की संस्थापिका चन्द्रिका चौहान ने बुनाई-कढ़ाई, कपड़ों के बैग, नमकीन, पापड, ब्यूटी प्रोडक्ट्स एवं अगणित उत्पादों के साथ स्वरोजगार सृजन कर नारी सशक्तीकरण की अद्भुत गाथा लिख दी है |
उद्योगवर्धिनी की सफलता को देखकर राष्ट्रीय सेवा भारती ने महिलाओं के विकास के लिए चल रहे स्वसहायता समूह की “वैभव श्री” योजना का दायित्व उन्हें दिया है और अब चन्द्रिका ताई देश भर के विभिन्न प्रान्तों में महिलाओं को प्रशिक्षण देने में जुटी हुई हैं | एक नगर सोलापुर से अब वे राष्ट्रीय फलक पर आ गई हैं |
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आधारहीन आलोचना को ही अपनी राजनीति का आधार मान लेने वाले सूरमा, क्या अपने संगठन के कार्यकर्ताओं को भी ऐसी किसी समाजोपयोगी गतिविधि में स्वयंसेवकों से आगे निकलने को प्रोत्साहित करेंगे ? अरे प्रतिस्पर्धा ही करनी है तो जनसेवा की करो, देशभक्ति की करो, देश तोड़क राजनीति की कुल्हाड़ी अंततः आपके ही पैर को काटेगी, ध्यान रखिये |
Tags :
प्रेरक प्रसंग
एक टिप्पणी भेजें