रोहिंग्या घुसपैठ के पीछे भी पाकिस्तानी षडयंत्र !



रोहिंग्या मुसलमानो की समस्या को अगर कोई वर्तमान हालात में देखेगा, तो कुछ समझ नहीं आएगा... आइये इतिहास के झरोखे में झांककर इसे समझने का प्रयत्न करें -

रोहिंग्या मुसलमान और बौद्ध में हमेशा से तनाव रहता था, क्योंकि इस्लाम दर्शन जहां हिंसा को प्रोत्साहन देता है वहीँ बौद्ध दर्शन अहिंसा को... तो दोनों धर्मो में तनाव स्वाभाविक था... लेकिन फिर भी बौद्ध राजाओं ने "Rakhine" में रहने वाले मुसलमानो को इज़्ज़त, दौलत दी... लेकिन स्वभाव से मजबूर बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानो ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय, गुप-चुप तरीकों से Britian से setting कर ली कि बर्मा के मुसलमान अपने ही बौद्ध भाइयों के खिलाफ (जो द्वित्य विश्व युद्ध में जापान की तरफ थे) विश्व युद्ध में England का साथ देंगे और बदले में England उनको एक मुस्लिम राष्ट्र देने में मदद करेगा।

तो रोहिंग्या मुसलमानो ने इंग्लैंड के साथ मिल कर के अपने ही बौद्ध भाइयों को काटना शुरू किया, और खूब काटा, जी भर जाने तक काटा.... लेकिन जैसा होता आया है विश्व युद्ध जीत जाने के बाद England ने रोहिंग्या मुसलमानो को कोई इस्लामिक राष्ट्र देने में मदद नहीं की, अर्थात अपना काम बना कर निकल गए।

इन सब घटनाओं के कारण बौद्धों के मन में रोहिंग्या मुसलमानो के प्रति घृणा बैठ गयी, ... ये होना भी स्वाभाविक था, ... इस घटना ने दोनों समुदाय के मन में एक कड़वाहट भर दी।

रोहिंग्या मुसलमान MAY, 1946 में जिन्नाह के पास गए, खुद को पाकिस्तान में मिलवाने का प्रस्ताव लेकर, पर यह संभव नहीं हुआ ।

नरमदिल बौद्ध लोगों ने बड़ी दरियादिली दिखा कर रोहिंग्या मुसलमानो के सब गलती को माफ़ करके अपने Parliament में बुलाया, और रोहिंग्या मुसलमानो से उनकी परेशानी बताने को कहा ताकि मिल-जुल कर दोनों समुदाय ख़ुशी से रह सकें... पर रोहिंग्या ने भाईचारे के इस पेशकश को मानने से इंकार कर दिया और BURMA सरकार को पूरा मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान में मिलाने की पेशकश की, जो बर्मा सरकार ने इंकार कर दिया ।

इस इंकार से बौखलाए रोहिंग्या मुसलमानो ने अपना आतंकवादी संगठन बना लिया "मीर कासिम" के नेतृत्व में... ये संगठन जल्द ही Rakhine प्रान्त के मुसलमानो के बीच लोकप्रिय हो गया, और इस संगठन ने छापा-मार तरीके से बर्मा के बौद्धों को target बनाना शुरू कर दिया।

मज़बूरी में बर्मा सरकार को "November, 1948 में Rakhine प्रान्त में Martial law लगाना पड़ा, इन रोहिंग्या आतंकवादियों के कहर से शांत बौद्धों को बचाने के लिए और काफी लड़ाइयों के बाद बर्मा सरकार रोहिंग्या आतंकवादियों को पीछे धकेलने में अंततः सफल हुयी।

फिर रोहिंग्या ने वही किया, जो दुनिया भर के मुसलमान करते हैं, गुप्त रास्तों से रोहिंग्या मुसलमानो ने RAKHINE में लाखों बांग्लादेशियों की घुसपैठ कार्रवाई, और RAKHINE के जनसंख्या का ढांचा बदल दिया।

अधिक आबादी के जोश में रोहिंग्या मुस्लमानो ने फिर से बर्मा के बौद्धों पर हमला शुरू कर दिया और 1954 में 100 से अधिक बौद्धों का क़त्ल किया, जिसके जवाब में बर्मा सरकार को मजबूरन रोहिंग्या पे attack करना पड़ा, जिसमे काफी रोहिंग्या भी मारे गए।

1992 मे इन रोहिन्ग्या मुस्लिमों से मतदान का अधिकार वापिस ले लिया गया। फिर शुरू हुआ हिंसा का दौर जिसकी तपिस भारत ने भी महसूस की । मुम्बई सहित भारत के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए ।

रोहिंग्या मुसलमानो ने कश्मीरी अलगाववादी संगठन Hizbul Mujhaiddin, पाकिस्तान के Jamaat-e-islami, अफगानिस्तान के hizbe-islaami का समर्थन लेकर ढेर सारा हथियार इकठ्ठा कर लिया और 2016 तक आते-आते ये काफी शक्तिशाली हो गए।

October 2016 को रोहिंग्या मुसलमानो ने बर्मा के 20 नागरिकों को मार डाला।November 2016 को रोहिंग्या मुसलमानो ने फिर से 50 बर्मा के जवानों को मार दिया। विवश बर्मा सरकार ने इन आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

बर्मा की सेना ने रोहिंग्या आतंकवादियों की धड़-पकड़ शुरू की जिसमे कई रोहिंग्या आतंकवादी मारे गए, 300 से अधिक रोहिंग्या आतंकवादियों के मरने के कारण रोहिंग्या मुसलमानों में भय व्याप्त हो गया और वो पलायन करने लगे...।।।

रोहिंग्या आतंकवादी भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए कितना बड़ा खतरा हैं, इसका अनुमान इस बात से लगता है कि वो हमेशा पकिस्तान के साथ मिलना चाहते थे और संभव है एक साजिश के तहत पाकिस्तानियों ने ही इनकी घुसपैठ भारत में करवाई हो।क्यूंकि कश्मीरी आतंकवादी संगठनों से इनके रिश्ते जगजाहिर हैं।

अब भारत के नागरिकों को तय करना है कि ऐसे आतंकवादी लोगों का क्या किया जाए??
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