विजय माल्या – अरुण जेटली और कांग्रेस



मार्च 2016 में जब विजय माल्या देश छोड़कर विदेश की सैर को गए, उसके बाद कांग्रेस ने अपने चिर विरोधी सुब्रमण्यम स्वामी से पूछा कि डॉ. स्वामी ने अपनी जनता पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष विजय माल्या को क्यों बनाया था ? 

इस पर डॉ. स्वामी ने जो हकीकत बयान की, बैसी साफगोई केवल और केवल डॉ. स्वामी ही कर सकते हैं | डॉ. स्वामी का बयान भारतीय राजनीति के कलुष को रेखांकित करता है | डॉ. स्वामी ने कहा कि राजनीति में पार्टी चलाने के लिए हर राजनैतिक दल को धनपशुओं की जरूरत पड़ती है | हर पार्टी में ऐसे धन पशु होते हैं, जिनका दोहन कर पार्टीयाँ चलती हैं | अच्छा हो इस विषय पर उनका मुंह न खुलवाया जाए, अन्यथा अगर उन्होंने यह बताना शुरू कर दिया कि किस पार्टी ने माल्या का कितना दोहन किया, तो हमाम के सब नंगे सामने आ जायेंगे | 

खैर बात करते हैं महान राजनेता विजय माल्या जी की, जो 2002 में और उसके बाद दोबारा 2010 में कर्नाटक से माननीय सांसद बने, और वह भी राज्यसभा के जिसे वरिष्ठ सदन कहा जाता है :) चूंकि सभी राजनैतिक दल जेब में हैं, अतः निर्दलीय पहुंचे राज्यसभा में ! उनकी शरद पंवार से तो इतनी गहरी मित्रता थी कि कुछ न पूछो ! जब नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे, उन्होंने एक आरोप लगाया था कि तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पंवार सडा हुआ अनाज औने पौने दामों में माल्या को शराब बनाने को देते हैं – 

योजनानुसार पहले गोदामों के अभाव में अनाज सडवाते हैं, 
फिर दोस्त की शराब कम्पनी को औने पौने बिकवाते हैं ! 

यह अलग बात है कि विजय माल्या और साढ़े तीन साल से बंद पड़ी उनकी किंगफिशर एयरलाइंस से बैंकों को करीब 7,800 करोड़ रुपए वसूलने हैं। इसमें एसबीआई के सबसे ज्यादा 1,600 करोड़ रुपए हैं। किंगफिशर या माल्या ने 2012 से इस कर्ज पर न तो ब्याज दिया है और न ही मूल पैसा लौटाया है। इतना ही नहीं तो विजय माल्या के स्वामित्व के यूबी ग्रुप की एक सीनियर महिला अफसर ने वुमंस डे पर माल्या के नाम एक खुला लेटर लिखकर आरोप लगाया है कि किंगफ़िशर ने सैकड़ों लोगों को सैलरी नहीं दी है। दो इम्पलॉइज सैलरी न मिलने की वजह से सुसाइड भी कर चुके हैं। 

यह वह दौर था जब माल्या साहब किंग ऑफ गुड टाइम्स कहलाते थे ! लेकिन समय बदला और भाजपा सरकार बन गई ! मोदी के प्रधान मंत्री बनते ही उनका अच्छा समय भी बदल गया और उन्हें देश छोड़कर परदेश भागना पड़ गया ! बैंकों के कर्जे और कर्मचारियों के वेतन को डकार कर माल्या साहब अमरीका और इंग्लेंड में अपनी ऐशो आराम की जिन्दगी गुजारने लगे ! 

तभी कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी का भी इंग्लेंड दौरा हुआ और उसके तुरंत बाद इस बासी कढी में भी उबाल आया और लंदन में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश होने के लिए पहुंचे माल्या ने संवाददाताओं को बताया कि उसने वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात कर बैंकों के साथ मामले का निपटारा करने की पेशकश की थी | 

बस फिर क्या था कांग्रेस की बन फबी ! आनन फानन में उन्होंने आरोप लगा डाला कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ही माल्या को भागने में मदद की थी ! दो दिन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी.एल. पुनिया ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘एक मार्च, 2016 को केंद्रीय कक्ष में जेटली जी और माल्या की मुलाकात हुई. पांच-सात मिनट दोनों ने खड़े होकर बात की और फिर बैठकर बात की. 2016 के बजट सत्र में माल्या सिर्फ एक दिन संसद आए थे और वह सिर्फ जेटली से मिलने आए थे.’’ उन्होंने आरोप लगाया कि माल्या वित्त मंत्री से ‘सलाह-मशविरा करके’ देश से भागा था । 

स्वाभाविक ही वित्त मंत्री ने माल्या के बयान को झूठा करार देते हुए कहा कि उन्होंने 2014 के बाद उसे कभी मिलने का समय नहीं दिया | जेटली ने कहा कि माल्या राज्यसभा सदस्य के तौर पर हासिल विशेषाधिकार का ‘दुरुपयोग’ करते हुए संसद-भवन के गलियारे में एक दिन उनके पास आ गया था | 

उधर एक टीव्ही. चेनल ने भी प्रमाण सहित दर्शाया कि 1 मार्च को तो जेटली और माल्या की भेंट संभव ही नहीं थी, क्योंकि 1 मार्च को तो अरुण जेटली सेंट्रल हॉल गए ही नहीं | उस दिन मंगलवार था और संसदीय दल की बैठक थी | जेटली साढ़े 10 बजे संसद भवन आए और प्रधानमंत्री के साथ बैठक की | जेटली तकरीबन 11 बजे राज्यसभा में गए | वो पौने बारह बजे सदन से निकले और विज्ञान भवन गए | दोपहर 2 बजे तक वो विज्ञान भवन के समारोह में रहे | अतः पीएल पुनिया का कथन अपने आप में झूठ का पुलिंदा है | 

राफेल सौदे में फ्रांस के राष्ट्रपति को घसीटने से लेकर माल्या प्रकरण तक, कांग्रेस द्वारा लगाए गए हर आरोप ने कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा किया है ! सवाल उठ रहा है कि – 

माल्या ने बयान ठीक राहुल गांधी के इंग्लेंड दौरे के बाद क्यों दिया ? 

उसे अकस्मात यह बयान देने की जरूरत क्यूं महसूस हुई ? 

कांग्रेस को राजनैतिक लाभ पहुँचने वाला यह बयान देने से उसे क्या लाभ था ? 

वित्त मंत्री का यह कथन गौर करने योग्य है कि उन्होंने 2012 के बाद कभी भी माल्या को मिलने के लिए कोई समय नहीं दिया ! 

कांग्रेस के दावे के मुताबिक़ 1 मार्च 2016 को तो कोई भेंट होना संभव ही नहीं थी, यह टीव्ही. चेनल की खोजी पत्रकारिता ने ही साफ़ कर दिया है ! 

जो भी हो राजनीति से परे देश की जनता तो केवल माल्या जैसे धनपशुओं को क़ानून की गिरफ्त में देखना चाहती है ! लेकिन राजनैतिक दल केवल हर प्रकरण को राजनैतिक लाभ हानि की तराजू पर तौलने के आदी हैं ! 

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