मैं उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, जब भारत में धर्म को प्रतिबंधित घोषित कर दिया जाएगा !



पहले उन्होंने कहा--धुंआरहित दीपावली और पटाखे | 
फिर उन्होंने कहा कि गणेश पांडाल प्रदूषण और शोर फैलाते हैं| 
फिर उसके बाद वो पानी की बर्बादी के नाम पर वाटरलेस होली का शिगूफा लेकर आये और जब उससे भी काम बनता नहीं दिखा तो वीर्य भरे गुब्बारों का झूठा तमाशा शुरू किया| 
दुर्गा पूजा पर उनको दिक्कत है कि महिषासुर को क्यों मरता हुआ दिखाया जाता है और दशहरे पर ये कि रावण को क्यों जलाया जाता है| 
उन्होंने शनि सिंगणापुर मंदिर की परम्परा नष्ट कर दी| 
फिर उन्होंने कहा कि लिंगायत हिन्दू नहीं है और उन्हें एक अलग धर्म का दर्ज़ा दे दिया| 

हिन्दू चाहे-अनचाहे सब कुछ स्वीकार करता रहा, ये कहते हुए कि वो संविधान का सम्मान करता है, संसद का सम्मान करता है, न्यायालय का सम्मान करता है, और भी ना जाने किन किनका सम्मान करता है, बिना यह समझने की कोशिश किये कि वे सम्मान योग्य है भी या नहीं | 

और अब ताजा प्रकरण अयप्पा और उनके भक्तों का | 

भारत में बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि अयप्पा अपने भक्तों के हृदय में क्या स्थान रखते हैं| 
उनके दर्शन महज दर्शन नहीं, बल्कि तपस्या है | सम्भवतः यह संसार के किसी भी भाग में, किसी भी सम्प्रदाय में की जाने वाली सबसे कठिन तपस्या है| 

पहले 41 दिन की कठिन अयप्पा दीक्षा, फिर मंदिर की कठिन चढ़ाई चढ़ना और तब दर्शन | 
केवल पुरुष नहीं, बल्कि पूरा परिवार इस दीक्षा, इस तपस्या का भाग होता है| 
इस अनुभव, इस समर्पण को शब्दों की सीमाओं में बांधना असंभव है| 

माँ, पत्नी, बहनें, सब इस दीक्षा का भाग होती हैं क्योंकि एक पुरुष को दीक्षा के लिए समर्थ बनाने में पूरे परिवार का समर्पण लगता है| 
कारण, दीक्षा की पहली आवशयकता है यौन संबंधों से विरत रहते हुए, ब्रह्चर्य का ढृढ़तापूर्वक पालन करना| 
इसमें केवल पुरुष की सोच काम नहीं करती, पत्नी को भी इसे स्वीकार करना होता है और अपने पति को घर से बाहर किसी मंदिर में 41 दिनों तक दूसरे अयप्पा भक्तों के साथ जाकर रहने देना होता है| 

क्या आप जानते हैं कि अयप्पा भक्त अपनी माँ, पत्नी और बच्चों को भी स्वामी कहते हैं| 
41 दिनों तक अयप्पा भक्तों के लिए प्रत्येक व्यक्ति स्वामी है| 

अनगिनत लोग हज़ारों किलोमीटर चलकर सबरीमाला जाते हैं| 
वो कहीं कोई बस-कार या कोई अन्य साधन प्रयोग नहीं करते| 
वो पैरों में जूते-चप्पल भी नहीं पहनते| 
नंगे पैर जाते हैं वो अपने अयप्पा स्वामी के दर्शन करने| 

कौन ऐसी महिला होगी जो अपने पति, पुत्र या भाई को धूम्रपान, मदिरापान, जुआँ, गलत आचरण से दूर रह कर जीवन में अनुशासित नहीं देखना चाहती होगी| 
क्या कोई स्वविकास कार्यक्रम व्यक्ति को ये सब करवा सकता है| 
क्या कोई पुनर्सुधार केंद्र किसी व्यक्ति से ये सब करवा सकता है| 
केवल अयप्पा व्यक्ति को ये सब करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और लोग स्वामी के लिए ये हृदय से करते हैं| 
इसलिए महिलाएं अयप्पा को पूजती हैं और उन्हें देखने के लिए 40 वर्षों की प्रतीक्षा को भी ख़ुशी से स्वीकारती हैं| 

लोग इतना सब कठिन व्रत क्यों करते हैं फिर?
ये अयप्पा के प्रति उनका असाधारण विश्वास है| 
और यदि कोई भगवान् इस तरह की श्रद्धा, इस तरह का विश्वास, इस तरह की तपस्या अपने भक्तों से शताब्दियों से प्राप्त कर रहा है, तो उस दुःख, पीड़ा, उस क्रोध की कल्पना करिये जो अयप्पा भक्तों के हृदयों में उत्पन्न हो रहा है, जब कोई उसे एक कागज़ के टुकड़े पर एक हस्ताक्षर बनाकर खंडित करने का प्रयास कर रहा है| 
उस तकलीफ की भी कल्पना कीजिये जब सरकार राजनैतिक स्वार्थों की खातिर मंदिर की पवित्रता को विनष्ट करने के लिए षड्यंत्र कर रही हो| 

जी हाँ, वरना सरकार को क्या जरुरत थी कि किसी मेरी, किसी लिवी या किसी रिहाना के सबरीमाला जाने का समर्थन करे? 
क्या इन महिलाओं का अयप्पा और उनकी भक्ति से दूर दूर तक का भी कोई लेना देना है| 

यदि हिन्दू महिलाएं पुरुषों द्वारा उन्हें कथित रूप से मंदिर में प्रवेश ना करने को लेकर इतनी ही पीड़ित-प्रताड़ित-दुखी और क्रोध में हैं, तो कोर्ट के निर्णय के बाद अब तक उन्हें हज़ारों-लाखों की संख्या में सबरीमाला दर्शनों के लिए पहुँचना चाहिए था| 
क्या एक भी सच्ची महिला भक्त अब तक पहुँची? नहीं 

क्या आप जानते हैं कि अयप्पा मात्र 12 वर्ष की आयु के बालक हैं| 
इसलिए महिलाएं उन्हें अपना पुत्र समझती हैं और वो महिलाओं को अपनी माँ| 
क्या माँ और पुत्र एक दूसरे से घृणा करते हैं या एक दूसरे से भेदभाव करते हैं| 

महिलाएं नहीं आएँगी वहां क्योंकि वे जानती हैं कि अयप्पा दीक्षा का महिलाओं के प्रति भेदभाव, उनके रजस्वला होने या इस तरह की किसी अन्य बात से कोई सम्बन्ध नहीं है| 
ये पुरुषों के लिए एक तपस्या है, एक आध्यात्मिक यात्रा है| 
हिन्दू महिलाओं के लिए ऐसी अनेकों दीक्षाएँ और पूजाएं हैं जिन पर केवल उनका विशेषाधिकार है| 
इसलिए वो कभी अपने साथ भेदभाव होता हुआ अनुभव नहीं करती| 

हाँ, वो लाखों की संख्या में सड़कों पर उतरी हैं| 
पर वो सबरीमाला को बचाने के लिए उतरी हैं क्योंकि वो अयप्पा से प्रेम करती हैं| 
कौन ऐसे भगवान् से प्रेम करेगा जो उसके साथ भेदभाव करता है| 
कौन ऐसे भगवान् के लिए पुलिस-प्रशासन के अत्याचारों का सामना करेगा जो उसे अपनी पूजा का अधिकार नहीं देता| 
पर महिलाएं अयप्पा के लिए, सबरीमाला के लिए लड़ रही हैं तो कोई तो बात होगी ही| 

यदि फिर भी कोई हिन्दू पुरुष या महिला अनुभव करता है कि ये पूरा मसला उन दिनों का, वर्जनाओं का या भेदभाव का है, तो इसका अर्थ है कि वो सबरीमाला के बारे में कुछ भी नहीं जानता| 

सनातन धर्म का अस्तित्व ही बहुलता को स्वीकार करके है| 
और इसीलिए प्रत्येक मंदिर, प्रत्येक तीर्थ स्थान के अपने अलग अलग नियम-कायदे हैं| 
यहाँ अब्राहमिक मजहबों की तरह एक ही पुस्तक, एक ही भगवान, एक ही तीर्थ स्थान का नियम नहीं चलता| 
यही सनातन की महानता है, यही इसकी सुंदरता है| 
कोई इसकी मूल आत्मा को ही कैसे मार सकता है? 
अगर सनातन को भी अब्राहमिक मजहबों की तरह एकांगी बना दिया गया तो हिन्दू धर्म बचेगा ही नहीं| 

हमारा संविधान धर्म के प्रचार-प्रसार-पालन की स्वतंत्रता प्रदान करता है| 
हिन्दुओं ने कभी भी धर्म परिवर्तन कराने में विश्वास नहीं किया| 
फिर भी उन्होंने आपत्ति नहीं जताई, जब संविधान ने इस्लाम और ईसाइयत को मतांतरण का अधिकार भी दे दिया, जिनके लिए ये येन केन प्रकारेण करना उनके मजहब का अभिन्न अंग ही है| 

जब सभी को उनके अधिकार हिन्दुओं की कीमत पर भी दिए गए हैं, तो क्या हिन्दुओं को अपनी रीति-रिवाजों-परम्पराओं-मान्यताओं और मंदिरों-तीर्थ स्थानों की आचार सहिंताओं को लागू करने, मानने, पालन करने का अधिकार नहीं होना चाहिए, जो उनके धर्म के अभिन्न अंग हैं| 

अगर आपने हिन्दुओं को भी एक पुस्तक-एक पैगम्बर वाले मजहबों की तरह बनाने का तय कर लिया हैं, तो ये तय है कि आपने हिन्दुओं को समाप्त करने की ठान ली है क्योंकि जड़ता और हिंदुत्व पूर्ण विलोम हैं| 

क्या हो, अगर हम भी दूसरे मजहबों की मूल बातों को लेकर विवाद करने लगें, उन्हें अपने हिसाब से चलने के लिए मजबूर करने लगें| 

आओ ऐसा करें कि धर्म के अधिकार को समाप्त कर दें और सबसे कहें कि वो केवल पंथनिरपेक्ष संविधान को ही माने| 
जिससे कोई भी मुस्लिम महिला मस्जिद में जा सके और नमाज पढ़ सके| 
कोई भी नन बिशप बन सके| 
कोई भी मुस्लिम या ईसाई किसी हिन्दू को धर्मन्तरित ना कर सके| 
कैसा लगा सुनकर, हिन्दू धर्म में ही सारे सुधारों के लिए मर रहे पैरोकारों ? 

साभार आधार श्री विष्णुवर्धन जी की फेसबुक पोस्ट का श्री विशाल अग्रवाल द्वारा किया गया हिन्दी भावानुवाद !
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