स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न दिखाती नयी शिक्षा नीति - डॉ नीलम महेंद्र

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बच्चे देश का भविष्य ही नहीं नींव भी होते हैं और नींव जितनी मजबूत होगी इमारत उतनी ही बुलंद होगी। इसी सोच के आधार पर नई शिक्षा नीति की...



बच्चे देश का भविष्य ही नहीं नींव भी होते हैं और नींव जितनी मजबूत होगी इमारत उतनी ही बुलंद होगी। इसी सोच के आधार पर नई शिक्षा नीति की रूप रेखा तैयार की गई है। अपनी इस नई शिक्षा नीति को लेकर मोदी सरकार एक बार फिर चर्चा में है। चूंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है जाहिर है इसके विरोध में स्वर उठना भी स्वाभाविक था, तो अपेक्षा के अनुरूप स्वर उठे भी। लेकिन मोदी सरकार इस शिक्षा नीति को लागू करने के लिए कितनी दृढ़ संकल्प है यह उसने अपनी कथनी ही नहीं करनी से भी स्प्ष्ट कर दिया है। दरअसल उसने इन विरोध के स्वरों को विवाद बनने से पहले ही हिन्दी को लेकर अपने विरोधियों की संकीर्ण सोच को अपनी सरकार के उदारवादी दृष्टिकोण से शांत कर दिया। लेकिन बावजूद इसके नई शिक्षा नीति की राह आसान नहीं है। इसके लक्ष्य असंभव भले ही ना हों लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में मुश्किल तो अवश्य ही लग रही हैं। वैसे अब तक की अपनी राजनैतिक यात्रा में मोदी जी ने कई असंभव चीजों को संभव करके दिखाया भी है। और अब यह नई शिक्षा नीति जो कई बुनियादी बदलावों पर आधारित है मोदी सरकार की नई परीक्षा है।

दरसअल इस शिक्षा नीति का मसौदा बेहद उत्साहवर्धक है जो एक प्रगतिशील समृद्ध सृजनशील एवं नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण ऐसे नए भारत की कल्पना करता है जो अपने गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने का स्वप्न दिखाता है जिसे वर्तमान संसाधनों के साथ चरितार्थ करना निश्चित ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। यह बात सही है कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में तेजी से बदलते आज के वैश्विक परिदृश्य के हिसाब से मूलभूत बदलाव की आवश्यकता चिरप्रतीक्षित थीं जिसे पूरा देश महसूस कर रहा था। क्योंकि वर्तमान शिक्षा नीति जो 1986 में लागू हुई थी और जिसे 1992 में संशोधित किया था वो हमारे बच्चों को 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार कर पाने में लगातार असक्षम सिद्ध हो रही थी। नई शिक्षा नीति जिसे इसरो के सेवानिवृत्त अध्यक्ष डॉ कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में ड्राफ्ट किया गया है वर्तमान शिक्षा प्रणाली की कमियों को शिद्दत से दूर करने की कोशिश करती दिखती है। इनके अनुसार इसका मूलभूत लक्ष्य देश के प्रत्येक नागरिक के जीवन को स्पर्श करना है और एक न्यायसंगत एवं निष्पक्ष समाज बनाने की एक ईमानदार कोशिश करना है। 

अगर इसके मूल विचार की बात की जाए तो प्रस्तावित शिक्षा नीति बालक के "सीखने" पर जोर देती है। वो उसे सीखते कैसे हैं इस पर विशेष बल देना चाहती है ताकि उसमें आजीवन हर पल अपने आसपास घटित सामान्य से सामान्य घटनाओं से भी कुछ नया सीखने की क्षमता विकसित हो। इसके अलावा उनमें शिक्षा के द्वारा प्रोफेशनल स्किल्स के साथ साथ तर्क शक्ति, आलोचनात्मक चिंतन, समस्या समाधान का कौशल तथा सामाजिक एवं भावनात्मक कौशल ( सॉफ्ट स्किल्स) सिखाने को बढ़ावा देना है। लेकिन चूंकि इस लक्ष्य को बिना मूलभूत ढांचागत बदलाव करे प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए बालक की आरंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक लगभग हर क्षेत्र में बदलाव की बयार है। ये बदलाव उम्मीदें भी जागते दिखते हैं।जैसे, शुरुआती शिक्षा मातृभाषा में, शिक्षा के आरंभ में ही नैतिक मूल्यों और व्यवहारिकता का बीज बालक में डालने के लिए पंचतंत्र की कहानियों और उसके जैसे ही अन्य प्राचीन भारतीय साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल करना, इस डिजिटल युग में उसमें पुस्तकें पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए स्कूलों में पुस्तकालयों पर विशेष ध्यान, 10+2 की जगह 5+3+3+4 का पैटर्न ताकि रट कर परीक्षा पास करने की प्रवृत्ति खत्म हो, कोचिंग संस्थानों का कल्चर समाप्त हो, बच्चे को परीक्षा बोझ नहीं लगे, एग्जाम की घड़ी उसके सामने जीवन मरण का प्रश्न बनकर नहीं बल्कि अपनी गलतियों से सीखने का अवसर बनकर आए इसके लिए करीक्यूलर एक्स्ट्रा करीक्यूलर और को करीक्यूलर एक्टिविटी का भेद खत्म करना, अकादेमिक और प्रोफेशनल का अंतर खत्म करना, अंग्रेजी का वर्चस्व कम करना, किताबी ज्ञान से अधिक महत्व व्यवहारिक ज्ञान को देना, शुरू के वर्षों में हर बालक को बागवानी मिट्टी के बर्तन लकड़ी का काम बिजली का काम, और माध्यमिक शिक्षा में हर बच्चे को किसी एक कला जैसे संगीत नृत्य काव्य पेंटिंग शिल्पकला आदि का गहन अध्ययन चाहे वो विज्ञान अथवा इंजीनीयरिंग का ही विद्यार्थी क्यों ना हो ऐसे कदमों से उसके सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास की नींव रखना। 
उच्च शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शोध को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान बनाने जैसे अनेक उपाय लागू करने का प्रावधान है ताकि हमारे विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर पाएं। कल के तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय से प्रेरित और वर्तमान में अमेरिका के आईवी लीग स्कूलों की तर्ज पर भारत के भविष्य के विश्वविद्यालयों के स्वप्न। शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देने के साथ साथ उनके जिम्मेदारियों के भी मानदंड तय करना,जैसे अन्य प्रशासनिक सुधार। अगर ये बादलाव वाकई अमल में आ पाते हैं तो निश्चित ही यह शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी साबित होंगे और यह नई शिक्षा नीति भारत के सुनहरे भविष्य की ओर एक मील का पत्थर सिद्ध होगी। लेकिन बिना योग्य शिक्षकों के इस शिक्षा नीति की सफलता पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह भी लगा है। क्योंकि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में सरकारी स्कूलों में अयोग्य शिक्षक ही शायद सबसे बड़ी खामी थी। नई शिक्षा नीति को भी इसका एहसास है इसलिए उसमें शिक्षकों की योग्यता बढ़ाना और उन्हें इस काबिल बनाना ताकि उन्हें हमारे समाज में एक बार फिर सम्मान और गौरवपूर्ण स्थान मिले इसके भी अनेक उपाय बताए गए हैं। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करने के कदम उठाए गए हैं कि शिक्षक का अधिकांश समय अपने छात्रों के साथ ही व्यतीत हो और उनसे गैर शिक्षण कार्य कम से कम लिए जाएं। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने कदम उठाए भी हैं। अपने अपने क्षेत्र में रिटायर्ड प्रोफ़ेशनलस जो देश की प्रगति में अपना योगदान देना चाहते हैं उन्हें स्वयंसेवक के तौर पर शिक्षक बनने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। इससे पहले भी सरकार निजी क्षेत्र के प्रॉफेशनल्स को बिना यूपीएससी के सेवा में ले चुकी है। 

ऐसे छोटे छोटे किंतु ठोस कदमों से जाहिर है कि सरकार जानती है कि जब ध्येय बड़ा हो और देश की तरक्की की जड़ों को भ्रष्टाचार की दीमक ने खोखला कर दिया हो तो लक्ष्य हासिल करने के लिए लीक से हटकर उपाय करने होंगे जो वो कर भी रही है। अब बारी देश की है कि वो भी नई शिक्षा नीति द्वारा जो कठिन लक्ष्य देश के सामने रखा गया है उसे हासिल करने में एक अभिभावक के रूप में एक शिक्षक के रूप में एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में शिक्षा विभाग के अधिकारी के रूप में या फिर इस देश के एक सामान्य नागरिक के रूप में अपना योगदान देकर देश के सुनहरे भविष्य में अपने अपने हिस्से का एक पत्थर लगाने की एक ईमानदार कोशिश अवश्य करे।

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क्रांतिदूत : स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न दिखाती नयी शिक्षा नीति - डॉ नीलम महेंद्र
स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न दिखाती नयी शिक्षा नीति - डॉ नीलम महेंद्र
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