मप्र की राजनीति में पुनः उमा भारती के आने की सुगबुगाहट के मायने – दिवाकर शर्मा



मप्र का बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विभाग बंटवारा आखिरकार संपन्न हुआ | इस दौरान तेजी से घटे घटनाक्रम में बड़ामल्हारा से कांग्रेसी विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी नें कॉंग्रेस छोड भाजपा का दामन थाम कर विधायक पद से इस्तीफा दे दिया | जिसे आनन फानन में विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने स्वीकर कर लिया और फिर सीएम शिवराज सिंह चौहान के सामने प्रद्युम्न सिंह ने न केवल भाजपा की सदस्यता ली, बल्कि उसी तुरत फुरत अंदाज में उन्हें नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया गया | 

कहा जा रहा है कि प्रद्युम्न सिंह लोधी लंबे समय से उमा भारती और अन्य भाजपा नेताओं के संपर्क में थे | बड़ा मलहरा से ही उमा भारती विधायक बनकर मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं थीं। टीकमगढ़ के इलाके में उमा भारती का वर्चस्व माना जाता है। वे स्वयं भी लोधी समाज से ही हैं, ऐसे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न लोदी, जो कि उनके नजदीकी ही थे, उन्हें उमा भारती भाजपा में ले आईं। स्वयं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व्ही.डी. शर्मा ने प्रद्युम्न लोदी के भाजपा प्रवेश के अवसर पर कहा कि वे तो प्रारंभ से ही संघ से जुडे रहे है। पिछले चुनाव में वे भाजपा से अलग हो गए थे और अब वापस भाजपा में लौट आए। 

खैर जो भी हो पर अब बड़ामल्हारा सीट से कौन चुनाव लड़ेगा इस बात के कयास लगने प्रारंभ हो चुके है | कहीं ऐसा तो नहीं कि बड़ामल्हारा सीट से चुनाव लड़कर पुनः उमा भारती मप्र की राजनीति में सक्रिय होने जा रहीं है ? अगर ऐसा होता है तो कोई आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि प्रदेश की वर्तमान राजनैतिक स्थिति पर यदि नजर डालें तो देखते है कि मध्यप्रदेश में फिलहाल भाजपा ही मुख्य है कॉंग्रेस का कहीं कोई अता पता नहीं है | कई कांग्रेसी भाजपा का दामन थम चुके है और आने वाले समय में कई कांग्रेसी भाजपा का दामन थामेंगे | कुल मिलाकर आगामी विधानसभा चुनाव तक कॉंग्रेस शून्य की स्थिति में ही रहेगी और आगामी विधानसभा चुनाव (उप चुनाव नहीं) में शायद ही कॉंग्रेस भाजपा को टक्कर देती हुई दिखाई देगी | 

भाजपा में फिलहाल की स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि महाराज और शिवराज एक होकर कार्य कर रहे है अर्थात यह दोनों एक हो चुके है | महाराज और शिवराज के एक हो जाने से भाजपा के नरेन्द्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव जैसे अन्य कद्दावर नेताओं के सामने भी अपने आप को बनाये रखने की चुनौती सामने आएगी और ऐसे में यदि मध्यप्रदेश की राजनीति में उमा भारती का प्रवेश होता है तो महाराज और शिवराज के विरुद्ध यह सभी नेता उमा, नरेन्द्र, नरोत्तम, विजयवर्गीय और गोपाल भार्गव मिलकर खड़े नजर आयेंगे | वैसे भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व शिवराज को पुनः मुख्यमंत्री बनाये जाने के पक्ष में नहीं था और वह नरोत्तम मिश्रा या नरेन्द्र सिंह तोमर में से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था | परन्तु नए नवेले दुल्हे सिंधिया को खुश करने हेतु उनके आग्रह पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को न चाहते हुए भी शिवराज को पुनः मुख्यमंत्री बनाना ही पड़ा | 

मध्यप्रदेश की राजनीति में उमा भारती के प्रवेश से महाराज और शिवराज का सामना करने हेतु एक सशक्त टीम खड़ी नजर आएगी जो शीर्ष नेतृत्व के सम्मुख भी अपनी बात मुखरता से रखने में सक्षम होगी और शिवराज-महाराज की जोड़ी को मप्र की राजनीती में फ्री हैण्ड राजनीति नहीं करने देगी | वैसे भी कहा जाता है कि राजनीति में विपक्ष की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है | अब जबकि कांग्रेस शून्य है और यह भी जानी मानी बात है कि बिना विपक्ष के सत्ता निरंकुश हो जाती है, जिसका खामियाजा जनता को ही भुगतना होता है, अतः अगर भाजपा शीर्ष नेतृत्व पक्ष भी भाजपा और विपक्ष भी भाजपा जैसी स्थिति निर्मित करने जा रहा हो, तो कोई हैरानी की बात नहीं है | यदि उमा भारती के मप्र की राजनीति में आने के संकेत मिल रहे है तो यह निश्चित ही भविष्य में मप्र की राजनीति के लिए शुभ संकेत ही है |

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