राष्ट्रवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित 'कविता-वैचारिकी' की 24 वीं शृंखला सफलतापूर्वक संपन्न।

 



कविता में वह शक्ति है जो निर्जीव वस्तुओं में भी प्राण फूँक सकती है।


राष्ट्रवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगाँठ के अवसर पर कविता वैचारिकी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में आजादी के संघर्ष में गीतों कविताओं के योगदान को कवि एवं साहित्यकारों द्वारा प्रखरता से रखा गया।

मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए भारत लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ. संदीप अवस्थी ने कहा कि साहित्य ने वातावरण का निर्माण किया, तो देश को आजादी मिली लेकिन आजाद भारत में राष्ट्रवादी रचनाकारों को चुन-चुन कर किनारे कर दिया गया। महान् शुंगवंश, गुप्त वंश और मौर्य वंश को परे रखकर मुगल शासन का यशोगान भारत के इतिहास में किया गया। गलत इतिहास पढ़ा कर देशवासियों का मान-मर्दन करने की कोशिश की गयी। अब समय आ गया है कि अकादमिक संस्थाओं में बैठे नकारात्मक प्रवृति के लोगों को किनारे किया जाए। आजाद, सुभाष, भगत, सावरकर, तिलक जैसे राष्ट्रीय नायकों के आदर्श को आगे रखा जाए। देशभक्ति के गीतों को नई पीढ़ी में लोकप्रिय बनाने का प्रयास भी होना चाहिए। भूलना नहीं चाहिए कि आजादी की लड़ाई में राष्ट्रवादी काव्यधारा ने प्राण फूँकने का अप्रतिम कार्य किया है। वंदे मातरम् नारे ने युवाओं के मन को अग्निमा प्रदान की थी। भगत सिंह का प्रिय गीत 'मेरा रंग दे बसंती चोला', दिनकर की कविता 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' सहित तमाम कविताएं आजादी की लड़ाई का तराना बन गई थीं।

लंदन के प्रसिद्ध संस्कृति कर्मी नीलेश जोशी (अध्यक्ष, सनातन शक्ति) ने विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि भारत में 133 करोड़ की बड़ी संख्या है। यहाँ राष्ट्रवाद की ज्वालामुखी धधकाई जा सकती है, लेकिन अफसोस कि सनातनी आज भी सोए हुए हैं। उन्होंने सन 1928 में माधव शुक्ला द्वारा लिखित कविता 'मेरी माता के सर पर ताज रहे' का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे तमाम गीत ग्राम्य-अंचल में रचे गए, जो आजादी की लड़ाई का हिस्सा भी बने, लेकिन आजादी मिलने के बाद बड़े कद वालों का कद घटाया गया और बौने कद वालों का कद बढ़ा दिया गया। वीर सावरकर, पटेल, भगत, राजगुरु , आजाद , सुभाष, लाहिडी को भरसक भुलाने की कोशिश राजनैतिक रूप से हुई। उन्होंने कहा कि मुझे भारत की धरती पर नाज है और साथ ही बल दिया कि हम हिंदू नहीं, सनातनी हैं। हिंदू शब्द तो बाइबिल ग्रंथ से सत्ता की चाल में निकाला गया था।

अतिथि वक्ता रामायण केंद्र भोपाल के निदेशक डॉ राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि रचनाकारों ने स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा दी है। हमें अपनी दिशा का निर्धारण स्वयं करना होगा। समय को देखकर दृष्टि नहीं बदलनी चाहिए बल्कि संविधान और संवैधानिक व्यवस्था का पालन करना चाहिए। आजादी बहुत बड़ी नेमत है, तभी तो तुलसी बाबा ने 'पराधीन सपनेहु सुख नाहीं' लिखा था। इसके अलावा पै धन चलि जात विदेश इहै अति ख्र्वारी (भारतेंदु), 'जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है' (मैथिली शरण गुप्त) 'मुझे तोड़ लेना वनमाली' (माखन लाल चतुर्वेदी), एक घड़ी की परवशता भी कोटि नरक से भारी है (रामनरेश त्रिपाठी), अरुण यह मधुमय देश हमारा (जयशंकर प्रसाद), विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (श्याम लाल पार्षद), एक शीश मेरा मिला लो(सोहनलाल द्विवेदी) तथा शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले लिखकर जगदंबा प्रसाद मिश्र ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आत्मिक बल प्रदान किया था।

सारस्वत वक्ता डॉ. राजेश्वर उनियाल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि गोरे की जगह पर काले बैठ जाएं, यह स्वतंत्रता संग्राम का उद्देश्य नहीं था। 700 वर्षों में जो खोया उसे वापस पाने का उद्देश्य था, किंतु भारत माता के पुत्रों ने सत्ता के लिए देश को ही बांट दिया। 1946 में विभाजन के मुद्दे पर हुए मतदान में भारत के 86% लोगों ने पाकिस्तान के पक्ष में जाने के लिए मत दिया था, लेकिन जब बंटवारा हुआ तो 10% से ज्यादा लोगों को जाने ही नहीं दिया गया। देशवासियों ने आजादी का सपना देखा था, लेकिन राजनेताओं ने सत्ता को ही ध्येय मान लिया। सत्ता पाने के बाद किया यह कि भारत के छ लाख गांवों में दो लाख वैदिक परंपरा के विद्यालय थे। उनको खत्म कर दिया गया। नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करके पुस्तकालय में आग लगा दी गई जो 6 महीने तक जलती रही। तक्षशिला तो हमारे अधिकार में ही नहीं रह गया।

क्षोभ की बात यह कि आजादी से पहले साहित्यकारों पत्रकारों की जो भूमिका रही, वह आजादी के बाद बदल गयी। कविता वैचारिकी के इस कार्यक्रम में देशभर के चुने हुए चार कवियों ने राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत अपनी रचनाओं का पाठ किया और वाहवाही लूटी। कवि गुरु अमिताभ मिश्र ने देश के काम आने वाले शहीदों को अर्पित अपनी रचना में पढा कि -'प्राण देकर बचाया वतन, उन शहीदों को भूल न जाना। शीश पर जिसने बांधे कफन। उन शहीदों को भूल न जाना।।

डीआरडीओ दिल्ली में वैज्ञानिक श्रीमती आशा त्रिपाठी कानपुर के श्री आदित्य विक्रम और लखनऊ के श्री अनूप नवोदयन ने राष्ट्रवादी भावनाओं से भरी हुई रचनाएँ राष्ट्र के नाम समर्पित करते हुए सुनाईं, जो बहुत सराही गईं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कमलेश कमल ने आज के विषय की प्रासंगिकता और तदनुरूप वक्ताओं के विचारों को प्रासंगिक और सुग्राह्य बताया । उन्होंने कविता वैचारिकी के अंतर्गत कवियों की रचनाओं की प्रशंसा की और कहा कि राष्ट्रवादी लेखक संघ द्वारा इस भावधारा के रचनाकारों को प्राथमिकता देने का काम किया जाएगा।

कार्यक्रम का सफल संचालन राष्ट्रवादी लेखक संघ की प्रकाशन प्रमुख हेमा जोशी ने किया और कहा कि देश की विषम परिस्थितियाँ एक कवि के अंतर्मन को निरंतर मथती हुई बेचैन कर देती हैं और वह अपने भीतर के कवि-सृष्टा को संबोधित करते हुए कह उठता है- 'हो उठे ज्वालामुखी सा तप्त, हिमगिरि का हिमांचल। आग की लपटें बिछा दे, व्योम जग में इंदु चंचल।' कहना न होगा कि ये क्रांतिकारी और स्वातंत्र्य चेतना से संम्पन्न विद्रोही कवि ही अपनी लेखनी से माँ भारती के सेवा करने वाले सच्चे सपूत हैं। अतिथियों का स्वागत राष्ट्रवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव अनूप कुमार नवोदय ने किया। संस्थापक न्यासी आदित्य विक्रम श्रीवास्तव ने सभी अभ्यागत वक्ताओं और रचनाकारों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। ऑनलाइन आयोजित इस गोष्ठी में डॉ.अखिलेश्वर मिश्र, डॉ. धर्मेंद्र सिंह तोमर, डॉ. रघुनाथ पांडेय, धर्मेंद्र जिज्ञासु, विनीत पार्थ (पाठक मंच रा.ले.सं.), अरविंद मौर्या, सहित भारी संख्या में न्यासी और गणमान्य जन उपस्थित रहे।


राष्ट्रवादी लेखक संघ
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