सुब्रमण्यम स्वामी के मोदी विरोध का कारण ?



देश के मोदी जी समर्थकों में, एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो श्री सुब्रमण्यम स्वामी की, 1975 आपातकाल की भूमिका, रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद प्रकरण में उनके कानूनी योगदान, तथा श्रीमती सोनिया गांधी व राहुल गांधी के विरुध्द उनके द्वारा चलाये जा रहे मुकदमों के कारण, उनका भी प्रशंसक है। श्री स्वामी ने अपने एक हालिया ट्वीट में तो यह दावा भी किया, कि अगर गृह मंत्रालय, मेरी याचिकाओं पर कार्रवाई करे, तो मां और बेटा दोनों की भारतीय नागरिकता, आज रात ही समाप्त हो सकती है। एक प्रकार से, मोदी दोनों को बचाने की, वही मूर्खतापूर्ण गलती कर रहे हैं, जो एबीवी अर्थात अटल जी ने की थी। 

श्री स्वामी के उक्त ट्वीट पर बड़े रोचक जबाब आये। एक श्याम आडवाणी ने लिखा - अगर राहुल मुख्य प्रतिद्वंदी रहते हैं, तो मोदी को चुनाव जीतना कहीं अधिक आसान है। अगर शून्य को कोई अन्य विपक्षी नेता भरेगा तो वह कठिन हो सकता है । 

एक अन्य का जबाब था - मोदी जी अपने सबसे बड़े प्रचारक की नागरिकता भला क्यूँ समाप्त करवाएंगे ?

खैर यह तो हुई उन लोगों की बात जो मोदी जी और श्री स्वामी दोनों के प्रशंसक है। लेकिन सचाई यह भी है कि चाहे स्व. अटल जी हों अथवा वर्तमान नरेंद्र भाई मोदी, दोनों स्वामी से सतर्क रहे, और स्वामी ने भी गाहे बगाहे, दोनों की नीतियों का मुखर विरोध किया। अटल जी के समय तो वे भाजपा ही छोड़ गए, और आज भी भाजपा में रहते हुए, मोदी जी की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। 

यही कारण है कि, बड़ी तादाद में ऐसे लोग भी हैं, जो स्वामी को, अमरीकी खुफिया एजेंसी सी आई ए से सम्बद्ध मानते हैं। इस धारणा को बल उनके हालिया ट्वीट्स गाहे बगाहे देते ही हैं। जैसे कि हिंडनबर्ग और बीबीसी रिपोर्ट को लेकर सभी भाजपा समर्थक, इसके पीछे, यूरोपीय कान्सप्रेसी मानते हैं, स्वामी का हर संभव प्रयत्न दिखाई देता है, दोनों में चीनी हाथ दर्शाना। सवाल उठता है कि आखिर वे, भारतीय जनमानस को अमरीका विरोधी होने से क्यूँ रोकना चाहते हैं ?

वे जब मोदी जी और अडाणी के खिलाफ ट्वीट दर ट्वीट कर रहे थे, तब वे अपने ही समर्थकों द्वारा बड़े पैमाने पर ट्रोल किये गए। यहाँ तक कि उन्हें उनके फ़ॉलोअर्स ने ही कुंठित और स्वार्थी भी लिखा। यह भी लिखा कि महत्वाकांक्षाओं की पूर्ती न हो पाने के कारण, वे अकारण मोदी विरोध के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। 

लगता है उसी विवशता में अब उन्होंने नाक को घुमाकर पकड़ना तय किया है और परोक्ष प्रहार की गुरिल्ला रणनीति पर काम कर रहे हैं। 

ध्यान देने योग्य है कि, मोदी सरकार अन्य देशों के साथ, डॉलर के स्थान पर, भारतीय रुपये या, उस देश की मुद्रा में, व्यापार करना शुरू करने जा रही हैं। यह एक प्रकार से, डॉलर का महत्व कम कर, सीधे सीधे, अमरीकी प्रभुत्व को चुनौती ही है। तो स्वामी भला कैसे यह बर्दास्त कर सकते हैं ?

जबकि भारत की वर्तमान नीति है - 

ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर,

हम भारत हित देखते, कोई नहीं है गैर। 

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