दिग्गी राजा का मनगढंत ट्वीट बनाम स्व. माधव सदाशिव गोलवलकर "गुरूजी" - कौन चला रहा है झूठ और नफ़रत की दुकान

आज दिग्विजय सिंह जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघ चालक स्व. माधव सदाशिव राव गोलवलकर "गुरूजी" को लेकर एक निहायत ही झूठा और मनगढंत ट्वीट किया -

गुरु गोलवलकर जी के दलितों पिछड़ों और मुसलमानों के लिए व राष्ट्रीय जल जंगल व ज़मीन पर अधिकार पर क्या विचार थे अवश्य जानिए। ⁦

@INCIndia



⁩⁦इस पर प्रतिक्रया देते हुए एक संघ स्वयंसेवक ने उक्त पुस्तक की लिंक ही कमेंट बॉक्स में साझा करते हुए दिग्गी राजा को चुनौती दे डाली कि पुस्तक में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है। पुस्तक की लिंक आपके लिए भी प्रस्तुत है। इस बहाने उनके विचार सबको पढ़ने का अवसर मिलेगा। 

https://sanjeev.sabhlokcity.com/Misc/We-or-Our-Nationhood-Defined-Shri-M-S-Golwalkar.pdf

पुस्तक में गुरूजी ने राष्ट्र और राज्य के अंतर को स्पष्ट किया है। 

जो कुछ दिग्गी राजा प्रचारित करने का प्रयास कर रहे हैं, वह तो पूरी पुस्तक में कहीं है ही नहीं, उलटे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के संबंधों को लेकर उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण इस प्रकार परिभाषित हुआ है -

Existence of seperate nationality as a minority enjoying all the rightes of citizenship with special safe-guards for the preservation of their culture and language and relegion is not deemed incompatible with the exercise of the rightes of sovereignty by the state as a whole . immidiately as the minority members are naturalised, all difference between them and the members of the majority disappear for political and administrative perpose.

(अपनी संस्कृति, भाषा और धर्म के संरक्षण के लिए विशेष सुरक्षा उपायों के साथ नागरिकता के सभी अधिकारों का आनंद लेने वाले अल्पसंख्यक के रूप में अलग राष्ट्रीयता का अस्तित्व समग्र रूप से राज्य द्वारा संप्रभुता के अधिकारों के प्रयोग के साथ असंगत नहीं माना जाता है। जैसे ही अल्पसंख्यक सदस्य स्वाभाविक हो जाते हैं, उनके और बहुमत के सदस्यों के बीच सभी अंतर राजनीतिक और प्रशासनिक उद्देश्य से गायब हो जाते हैं।)

अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के जिस स्वाभाविक सम्बन्ध को श्री गोलवलकर परिभाषित कर रहे हैं, वही तो दिग्गी राजा जैसे तथाकथित राजनेता नहीं होने देना चाहते। क्योंकि उनकी राजनीति की बुनियाद ही अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समाज का अलगाव ही है। 

कांग्रेस को लेकर गुरूजी के विचार जानकर शायद बहुतों को अचम्भा होगा। इसी पुस्तक में वे लिखते हैं -

the school of indian patriots who have founded the indian national congress were the pioneers of the movement of indian nationalism .

...... with all my differences of opinion on some of the vitial problems of policy, such as communal award and others with the leading congress-man of today, I consider it necessary to emphatically assert that much of the sentiment of nationalism that exists in india today is result of the work done by the gients who have led and run the congress movement in the country during the last fifty years and more.

(भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करने वाले, भारतीय देशभक्तों के विद्यालय थे, भारतीय राष्ट्रवाद के आंदोलन के अग्रणी थे।

...... कुछ नीतिगत महत्वपूर्ण समस्याओं, जैसे सांप्रदायिक आधार पर पुरस्कार और अन्य पर, आज के अग्रणी कांग्रेसियों के साथ मेरे सभी मतभेदों के बावजूद, मैं ज़ोर देकर कहना ज़रूरी समझता हूँ कि आज भारत में जो कुछ राष्ट्रवाद की भावना मौजूद है, वह उन दिग्गजों द्वारा किए गए कार्यों का परिणाम है, जिन्होंने पिछले पचास वर्षों और उससे भी अधिक समय से देश में कांग्रेस आंदोलन का नेतृत्व और संचालन किया है।)

आज जो लोग नारे के रूप में कहते दिखाई देते है - (नफ़रत के बाजार में मुहब्बत की दूकान) उनके जहर बुझे शब्द सुनिए - कथनी और करनी का अंतर देखिये और फिर श्री गोलवलकर जी के ये प्रशंसापूर्ण उदगार स्मरण कीजिये - कौन अधिक यथार्थ और कौन दिखावटी ? अपने मतभेदों के बावजूद वे कांग्रेस आंदोलन की प्रशंसा कर रहे हैं, जबकि तथाकथित मोहब्बत की दूकान वाले - सावरकर जी जैसे महान व्यक्ति को कोसते दिखाई देते हैं - महज चंद वोटों की खातिर। 

ऐसा ही बहुत कुछ है पुस्तक में। पढ़िए और गुनिये। पुस्तक की लिंक ऊपर दी ही गई है। 

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