यह पिछोर है प्यारे, जहाँ राजनैतिक रसूखदार अपराधी बेख़ौफ़।



जी हाँ यही हकीकत है। और राजनैतिक रसूख किसका ? यह भी कोई पूछने की बात है ? एक ही तो हैं, जिनके इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। 

अब ताजा मामला ही देखिये -

एक हैं श्रीमान फजल अहमद खान। साल था 2016, जब पिछोर बी एम एच ओ कार्यालय में इन महाशय की कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में संविदा नियुक्ति हुई। आज के दैनिक भास्कर में छपे समाचार के अनुसार आज की तारीख में उनकी नियुक्ति से सम्बंधित कागजात भी अधूरे हैं। फिर भी नियुक्ति हो गई। चलो कोई बात नहीं, नियुक्ति हो गई, सो हो गई। लेकिन इन संविदाकर्मी साहब को एकाउंटेंट जैसा महत्वपूर्ण चार्ज भी आनन फानन में दे दिया गया। 

तब से अब तक लगातार ये जनाब एकाउंटेंट का चार्ज संभाले हुए हैं। शिवपुरी जिले में चार सी एम एच ओ बदल गए, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई, यह पूछने की कि एक ऐसा संविदाकर्मी कैसे एकाउंटेंट बना बैठा है, जिसकी संविदा नियुक्ति ही विवादास्पद है। जब यह हिम्मत ही नहीं हुई, तो नियुक्ति क्यों हुई, कैसे हुई, इसकी जांच भला कोई कैसे करता। 

यहां पर ही गुल गपाड़ा नहीं थमा। फजल अहमद ने आशा कार्यकर्ताओं की आड़ में 48 संदिग्ध खातों में लाखों का भुगतान कर दिया। इन महाशय ने एक ही नाम की कई आशा कार्यकर्ता बताकर उनके अलग अलग बैंक एकाउंट दर्ज कर दिए। आखिर दिमाग तो तेज है न ? और फिर जब सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का। आखिर जिनका वरद हस्त है, वो है ही इतनी बड़ी शख्सियत। 

आखिर इतनी बड़ी अनियमितता कहाँ तक छुपती ? एन एच एम भोपाल ने पूछताछ के लिए बुलाया, जनाब पहुंचे ही नहीं। दूसरी बार फिर बुलाया गया, लेकिन सीनाजोरी देखिये, फजल अहमद साहब फिर भी नहीं पहुंचे। साहब का हाथ सर पर है, तो डर काहे का ? 

मरता क्या न करता, डरते डरते पिछोर बी एम ओ, फर्जी बाड़े की शिकायत दर्ज करने कोतवाली पहुंचा। वही हुआ जो पिछोर में आम बात है। रिपोर्ट लिखी ही नहीं गई। कह दिया गया कि पहले पुख्ता सबूत लाओ, तब लिखी जाएगी शिकायत। गोया सबूत जुटाना पुलिस का काम नहीं है। 

इतना अवश्य हुआ है, कि फजल अहमद साहब के मोबाइल अवश्य स्विच ऑफ़ हो गए हैं। यह भी कोई छोटी बात नहीं है पिछोर में। 

जब इतना कुछ हो गया है तो आज नहीं तो कल नौकरी जाना तो तय है। आखिर संविदा कर्मी ही तो हैं। लेकिन देखना है कि इस अपराध की कोई सजा मिलती है या नहीं ?

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