हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निर्णय कि ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाना नफरत फैलाने वाला भाषण नहीं है, एक महत्वपूर्ण निर्णय है जो हमारे समाज की बुनियादी राष्ट्रवादी भावना को प्रकट करता है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस नारे को किसी भी तरह से दो धर्मों या समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के रूप में नहीं देखा जा सकता। इस टिप्पणी के साथ ही अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 153A के तहत दर्ज FIR को रद्द करते हुए न्याय और राष्ट्रप्रेम के सिद्धांतों को उजागर किया है।
भारत माता की जय: राष्ट्रवाद का प्रतीक
‘भारत माता की जय’ एक ऐसा नारा है जो देश के प्रति गहरी भावनाओं और प्रेम का प्रतीक है। यह न केवल एक नारा है बल्कि भारत की संप्रभुता, अखंडता, और संस्कृति का सम्मान करने की अभिव्यक्ति है। यह नारा किसी एक समुदाय या धर्म का नहीं, बल्कि सभी भारतीयों का है। ऐसे में, यह समझ से परे है कि इस नारे पर किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है।
कर्नाटक सरकार पर सवाल
यह घटना कर्नाटक में घटी, जहाँ याचिकाकर्ता पर ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाने के बाद हमला किया गया। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय, याचिकाकर्ता के खिलाफ ही FIR दर्ज कर दी गई। यह कर्नाटक सरकार की नीतियों और कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। एक ऐसा राज्य, जहाँ एक नागरिक को भारत माता की जय बोलने पर धमकाया जाता है और उस पर हमले किए जाते हैं, क्या यह उस देश की अस्मिता पर चोट नहीं है?
धर्म और नफरत का झूठा प्रचार
‘भारत माता की जय’ का नारा किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह केवल मातृभूमि की प्रशंसा का प्रतीक है। लेकिन इसके बावजूद, इस नारे को लेकर कुछ समूहों द्वारा नफरत और असंतोष फैलाने की कोशिश की जाती है। यह एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, जिसमें देश की एकता और अखंडता को कमजोर करने के प्रयास किए जाते हैं। जो लोग इस नारे को विभाजनकारी मानते हैं, वे दरअसल राष्ट्र के मूल सिद्धांतों और भारतीयता की भावना को ही चुनौती दे रहे हैं।
न्यायालय का राष्ट्रवादी रुख
कर्नाटक हाईकोर्ट का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है, जिसमें ‘भारत माता की जय’ के नारे को किसी प्रकार का भड़काऊ या नफरत फैलाने वाला नारा नहीं माना गया। यह न्यायालय का रुख न केवल कानूनी दृष्टिकोण से सही है, बल्कि यह राष्ट्रवाद को समर्थन देने वाला एक मजबूत संदेश भी है। जब तक हमारे देश में ऐसे राष्ट्रवादी विचारों और न्यायपालिका का समर्थन है, तब तक कोई भी शक्ति हमारे देश को कमजोर नहीं कर सकती।
राष्ट्रवाद और संवैधानिक अधिकार
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ हर नागरिक को अपने देश के प्रति प्रेम प्रकट करने का अधिकार है। ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाना न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत आता है, बल्कि यह राष्ट्रप्रेम का एक ऐसा प्रतीक है, जिसे किसी भी कानून या विचारधारा से कमजोर नहीं किया जा सकता। कर्नाटक सरकार को यह समझना चाहिए कि इस तरह की घटनाएँ राज्य में कानून और व्यवस्था की विफलता को प्रकट करती हैं और उन्हें देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम को प्रोत्साहित करना चाहिए।
उच्च न्यायालय का निर्णय और इसके कानूनी पहलू
कर्नाटक हाईकोर्ट ने जब इस नारे को नफरत फैलाने वाला नहीं माना, तो यह न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में एक सशक्त संदेश भी भेजता है कि भारत माता की जय का नारा सभी भारतीयों का है। इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी प्रकार के नफरत भरे भाषण के लिए एक अलग परिभाषा होनी चाहिए, और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारों को उसके दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।
कर्नाटक सरकार की भूमिका
कर्नाटक सरकार को यह समझना होगा कि जब नागरिकों को अपने देश के प्रति प्रेम प्रकट करने पर हमले होते हैं, तो यह न केवल एक सामाजिक समस्या है, बल्कि यह सरकार की विफलता का भी प्रतीक है। सरकार को चाहिए कि वह इस प्रकार की घटनाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और यह सुनिश्चित करे कि हर नागरिक को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता हो।
‘भारत माता की जय’ नारा नफरत नहीं, बल्कि हमारे देश के प्रति प्रेम, गर्व और एकता का प्रतीक है। जो लोग इसे विवादास्पद बनाने का प्रयास करते हैं, वे दरअसल हमारे देश की एकता को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कर्नाटक सरकार को इस मामले में अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करना चाहिए और राष्ट्रवादी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। देशभक्ति के नारे पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए, ताकि हमारे देश के लोग और अधिक गर्व और आत्मसम्मान के साथ ‘भारत माता की जय’ बोल सकें।
‘भारत माता की जय’ का नारा न केवल एक सामान्य अभिव्यक्ति है, बल्कि यह भारत की विविधता और एकता का प्रतीक है, जिसे हर भारतीय को गर्व से बोलना चाहिए।
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