अलविदा श्रेयांस : जिसने जीने का जज्बा सिखाया, प्रोजेरिया के लिए जिसकी प्रेरणा से बनी मप्र में नीति - डॉ राघवेंद्र शर्मा
प्रोजोरिया, एक जटिल है इस बीमारी की चपेट में जो आता है उसका शारीरिक विकास बुरी तरह अवरुद्ध हो जाता है। शरीर बाल अवस्था में ही बुढ़ापे को प्राप्त करने लगता है, जिसके चलते शारीरिक कमजोरी इस बीमारी का अभिन्न लक्षण कही जाती है। शायद इन्हीं कारणों के चलते इस बीमारी से ग्रसित लोगों की उम्र अधिकतम 10- 12 साल ही मानी गई है। कुल मिलाकर यह एक ऐसी बीमारी है जिसके ढेर सारे तकलीफदेह लक्षण हैं। फिल्म "पा" में अमिताभ बच्चन ने इसी रोग से ग्रसित एक अविकसित बालक का अभिनय किया था। यही जटिल रोग जबलपुर के श्रेयांस बालमाटे की जिंदगी का मानो अभिन्न अंग बन गया था। यही कारण रहा कि श्रेयांस जब 10 वर्ष का था तब भी वह अभी अव्यवस्थित शरीर के चलते असामान्य ही दिखाई देता था। यहां मैंने श्रेयांस की उम्र 10 वर्ष इसलिए बताई, क्योंकि जब मेरा उससे परिचय हुआ तब वह इसी वय का हो पाया था। यह उन दिनों की बात है जब मैं मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग का अध्यक्ष हुआ करता था। बस ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान श्रेयांस से मेरी मुलाकात हो गई। पहली नजर में ही समझ आ गया था कि वह किसी गंभीर रोग से पीड़ित है। उसकी गैर सामान्य और कमजोर शारीरिक अवस्था इस कमी की ओर स्पष्ट चुगली करती दिखाई दे रही थी। मैंने उसे अपने पास आने का संकेत किया तो वह तत्काल खुशी खुशी चला आया। मैं उसकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को सुलझाने के विषय में कितना कुछ कर पाया, इस वक्त चर्चा का विषय वह नहीं है। खास बात यह है कि इन विषम परिस्थितियों के बावजूद श्रेयांस के सपने काफी बुलंद थे। वह चाहता था कि मैं पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनूंगा। लाल बत्ती में बैठकर घूमा करूंगा। लोगों के सुख-दुख जाना करूंगा और उनकी समस्याएं दूर करूंगा। जब चिकित्सकों से उसकी बीमारी तथा बीमारी के इलाज को लेकर बातचीत की तो यह आशंका स्पष्ट रूप से सामने आ गई थी कि श्रेयांस संभवतः इस बीमारी से ज्यादा दिनों तक नहीं लड़ पाएगा। इस बीच श्रेयांस से मेल मुलाकात बनी रही। चूंकि अमिताभ बच्चन ने पा फिल्म में प्रोजेरिया बीमारी से ग्रसित बालक का अभिनय किया था इसलिए श्रेयांश उनसे हर हाल में मिलना चाहता था। इस बाबत भी हमारे प्रयास तब फलीभूत हुए जब अमिताभ बच्चन ने कौन बनेगा करोड़पति में श्रेयांश को बतौर अतिथि आमंत्रित किया था। इस मुलाकात से श्रेयांश बहुत खुश हुआ और उसकी अपेक्षाएं मुझसे थोड़ी ज्यादा बढ़ती गईं।
फिर वह दिन भी आ गया जब 24 मार्च 2017 को बालकों से जुड़ी राज्य स्तरीय बैठक में हमने श्रेयांस को खास तौर पर बुलाया था। कार्यक्रम की शुरुआत से पहले ही मैंने उसे बताया कि आज तुम्हें मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग का एक दिन का अध्यक्ष बनाया जा रहा है। तब तुम्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा रहेगा। लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूम सकोगे और बालकों के हित में जो भी अच्छा प्रतीत होता है, विभागीय अधिकारियों को उस आशय के निर्देश एक ऐसी बैठक में दे सकोगे जो बाकायदा संवैधानिक तौर पर आयोजित की जाने वाली है। सबसे अच्छी बात यह रही की उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश के उप लोकायुक्त जस्टिस यूसी माहेश्वरी , हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल जस्टिस कोक जी, एम पी पीएससी के अध्यक्ष अशोक पांडे जी, मंत्री विश्वास सारंग आदि उक्त विरल घटनाक्रम के साक्षी बने। उसने कार्यक्रम में शिवराज जी को समर्पित कविता में कहा -
आज मेरी भगवान से यूं ही मुलाकात हो गई।
ज्यादा तो नहीं, बस थोड़ी सी बात हो गई।।
मैंने पूछा भगवान से, प्रभु मेरे शिवराज मामा कैसे हैं।
मुस्कुरा कर बोले उनसे, दोस्ती बनाए रखना, वह बिल्कुल मेरे जैसे हैं।।
श्रेयांश के सहज सरल व्यवहार और उसके विडंबना पूर्ण स्वास्थ्य से श्री शिवराज सिंह चौहान इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस प्रोजेरिया नाम की बीमारी को शासन की सूची में शुमार किया और फिर श्रेयांश का इलाज इसी योजना के तहत निशुल्क जारी बना रहा। कह सकते हैं कि श्रेयांश ही प्रेरणा का वह स्रोत रहा जिसने मध्य प्रदेश में इस बीमारी से ग्रसित शेष बच्चों के निशुल्क इलाज की राहें आसान कर दिखाईं। खैर उस दिन विभाग के अधिकारियों की बैठक हुई। उस समय श्रेयांस की आंखों में जो खुशी मैं देख पा रहा था, वह मेरे हृदय को भावनात्मक रूप से बेहद संतुष्टि प्रदान कर रही थी। बड़े ही दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि मेरा प्रिय मित्र श्रेयांस अपने रोग ग्रसित शरीर को त्याग कर, बीते रोज ईश्वर के परमधाम की ओर गमन कर गया। हालांकि में सदैव ही उसके जीवन को लेकर आशंकित बना रहा फिर भी, जब उसके निधन का समाचार मिला तो अनायास ही आंखें भर आईं और स्वयं को संयमित करने में मुझे काफी समय लगा। लेकिन नियति को कौन नकार सकता है, हे ईश्वर श्रेयांस को अपने स्नेह की छांव में बनाए रखना।
(लेखक बाल संरक्षण आयोग मप्र के पूर्व अध्यक्ष हैं)
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