ट्रम्प अमरीका के राष्ट्रपति हैं या चीस व्यापारी ?
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आपको यह चीस शब्द थोड़ा खटक रहा होगा। तो आईये विषय पर आने के पहले इसका कारण बता देता हूँ। उद्देश्य केवल एक ही है -विषय बहुत गंभीर है, इसलिए शुरुआत थोड़े हलके फुल्के अंदाज में की जाए। सन 1960 - 70 के दौर में करोड़पति होना बड़ी बात हुआ करती थी और हमारे इलाके में ऐसा ही एक बड़ा मशहूर सेठ हुआ करता था। उनका वास्तविक नाम तो लोगों को कभी जुबान पर चढ़ा ही नहीं, उनके अतिशय कंजूस स्वभाव व अतिरेक पूर्ण व्यवहार के कारण लोगों ने नामकरण कर दिया था चीस। वे साहब अपने गाँव भटनावर से अगर शिवपुरी बस से आते तो अपनी चप्पल कांख में दबा कर लाते और शिवपुरी में बस से उतरने के बाद ही उन्हें धारण करते। अकारण चप्पल क्यूँ घिसें ?
तो जब भी अमरीका के स्वनामधन्य राष्ट्रपति ट्रम्प महोदय की गतिविधि देखता सुनता पढ़ता हूँ, मुझे बेसाख्ता भटनावर के चीस ध्यान में आ जाते हैं। अभी हाल ही में हुए भारत पाक संघर्ष के दौरान पाकिस्तान ने ट्रम्प को पटाया, कैसे पटाया, वह देखिये। जो पाकिस्तान IMF के लोन के बिना दो महीने नहीं चल सकता, उसे ट्रम्प महाराज दुनिया की चौथी बड़ी इकोनॉमी भारत के बराबर का दर्जा देते दिखाई दे रहे हैं। आखिर क्यूँ ?
जरा सोचिये कि अगर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी कोई निजी व्यापार करते भी दिखाई दें, तो आप क्या कहेंगे ? लेकिन दुनिया का सबसे ताकतवर देश कहे जाने वाले अमरीका का बुजुर्ग राष्ट्रपति निजी धंधे को महत्व देता है। अमरीका फर्स्ट का उसका नारा महज पाखण्ड है, और कुछ नहीं। इसीलिए मैंने उसकी तुलना भटनावर के चीस से की।
आईये थोड़ा समझते हैं। हम सबने क्रिप्टो करेंसी का नाम सुना होगा। लेकिन यह है क्या बला, कम ही लोग जानते हैं। बिटकॉइन हो, इथेरियम हो, या सोलाना और भी बहुत सी ऐसी मुद्राएं जो किसी देश की नहीं हैं, निजी व्यापारियों की हैं, किन्तु फिर भी धड़ल्ले से चल रही हैं, प्रचलन में हैं। बनती कैसे हैं ये मुद्राएं, छपती तो हैं नहीं, न तो किसी कागज़ पर रुपये की शक्ल में,और ना ही किसी धातु के सिक्के के रूप में।
कंपनियों के द्वारा चैन सिस्टम से कोड बनाये जाते हैं, जिन्हें दोबारा नहीं बनाया जा सकता। हर कोड पिछले बाले से अधिक टफ होते चले जाते हैं। इन कोड के ऊपर जनता बैसे ही पैसे लगाने लगती है, जैसे सोने या चांदी के ऊपर। दूसरे शब्दों में कहें तो क्रिप्टो खरीदने वाला व्यक्ति अपने देश की करेंसी को इन्वेस्ट करता है। और यह कहता है कि मैंने इतने कोड अपने पास रख लिए। इनके भाव भी वैसे ही घटते बढ़ते हैं, जैसे सोने या चांदी या किसी अन्य धातु के भाव।
हमारे देश की सरकार तो इसे मान्यता ही नहीं देती। किन्तु आपको जानकर हैरत होगी कि पाकिस्तान ने इसे न केवल मान्यता दी है, बल्कि बाकायदा इसके लिए "पाकिस्तान क्रिप्टो काउन्सिल" भी बना दी है। अब आते हैं सबसे महत्वपूर्ण और भारत के लिए चिंताजनक घटना चक्र पर। ट्रम्प स्वयं भी क्रिप्टो कारोबारी हैं और पकिस्तान उनके क्रिप्टो बिजनेस का नया ठिकाना बनने जा रहा है।
शाहबाज शरीफ के बेटे सलमान शहबाज उनके बिजनेस पार्टनर के रूप में कमान संभालेंगे। ट्रैम्प साहब अगर अमरीका में धंधा करेंगे तो अमरीकन खटिया खड़ी कर देंगे, इसलिए दुबई में बनाई गई एक ब्लॉक चैन फर्म "हाई लैंड सिस्टम" जिसके कर्ताधर्ता हैं सलमान शाहबाज। इस कंपनी को ट्रम्प परिवार के लिए क्रिप्टो करेंसी बनाने का जिम्मा सौंपा गया है। जैसा की कई लोग जानते होंगे कि क्रिप्टो कोड जनरेट करने के लिए जो सॉफ्टवेयर और सिस्टम इत्यादि लगते हैं, उसमें बहुत अधिक मात्रा में बिजली लगती है, उस बिजली की आपूर्ति बिना सरकारी सहयोग के संभव नहीं है, इसलिए ट्रम्प के कर्णचरियों ने पाकिस्तान - बंगला देश - तुर्की की घेराबंदी की है। दूसरे शब्दों में कहें तो अब ये तीनों देश या इन देशों के रहनुमा पूरी तरह ट्रम्प के व्यवसाई साझेदार हैं।
ट्रम्प के बेटे एरिक ट्रम्प और पाकिस्तान के टॉप मिलिट्री कॉन्ट्रेक्टर सब इस खेल में शामिल हैं। वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंसियल में 60 प्रतिशत शेयर ट्रम्प परिवार के हैं, और उसका सीधा समझौता पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल से हो चूका है। और वही सलमान शाहबाज की कंपनी को सब तकनीकी मदद देगी। वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंसियल ने मार्च में एक नया स्टेबल कॉइन लॉन्च किया है, नाम रखा गया है - USD1, जिसको मार्केट कैपिटल इस समय 18 हजार करोड़ डॉलर है। समझ सकते हैं चीस ट्रम्प की योजना। जिन देशों में अस्थिरता है, वहां उसके कॉइन बनेंगे और सारी दुनिया खरीदेगी।
पाकिस्तान चीस ट्रम्प की काख में दबी चप्पल है, जिसे वह जरूरत के समय पहन लेता है। अमरीका का राष्ट्रपति जैसा सर्व शक्तिमान पद और उसके बाद स्वयं के बिजनेस के लिए छटपटाहट, सचमुच घटिया चीस ही है यह व्यक्ति।
चलते चलते एक बात और - आप यू ट्यूब को देखें, चाहे फेसबुक, चाहे ट्विटर, चाहे इंस्टा, चाहे गूगल, या कोई भी सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म, सबके सब अमरीकी हैं। किसको प्रमोट करना, किसे नहीं, क्या सामग्री आपको दिखाई जाए, क्या नहीं, सब कुछ इनके ही हाथ में है। आजकल अगर आप हिंदुत्व के पक्ष में लिखेंगे, भारत के पक्ष में लिखेंगे, तो व्यू कम आएंगे, जबकि तथाकथित सेक्यूलर पोस्ट जल्द वायरल हो जाती हैं। नेहा सिंह राठोर इसका ताजातरीन उदाहरण है। फूहड़ और बेहूदी बकबास वायरल हो रही है। जमाने भर की गंद इन सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म पर बहुतायत से हमें परोसी जा रही है। सच कहा जाए तो हम अघोषित डिजिटल गुलाम हैं। भारत अगर सचमुच विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दिखाना चाहता है तो जरूरी है अपना सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी बनाना।
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राजनीति
ट्रंप की असलियत बताने के लिए धन्यवाद.. अब लोगों को समझ में आ गया होगा कि पाकिस्तान को भारत की बराबरी पर ट्रंप क्यों रख रहे हैं.
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