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शिवपुरी नपा अध्यक्ष गायत्री शर्मा को हटाना भाजपा के लिए क्यों बन गया गले की फांस

 

शिवपुरी नगर पालिका की राजनीति इन दिनों गरमाई हुई है। नगर पालिका अध्यक्ष गायत्री शर्मा को हटाने की मांग को लेकर कुछ पार्षदों का एक गुट सक्रिय है, लेकिन इस मामले में भाजपा नेतृत्व कोई भी निर्णय लेने से पहले कई बार सोच रहा है। यह केवल एक अध्यक्ष को पद से हटाने का मामला नहीं, बल्कि इसके पीछे छिपी राजनीतिक गणनाओं और संभावित नुकसान की आशंकाओं ने इस पूरे प्रकरण को भाजपा के लिए गले की फांस बना दिया है।

भाजपा के लिए यह निर्णय संगठनात्मक अनुशासन, राजनीतिक संदेश और सार्वजनिक धारणा—तीनों को प्रभावित कर सकता है। यदि गायत्री शर्मा को हटाया जाता है, तो सबसे पहले यह संदेश जाएगा कि भाजपा अपने ही चुने हुए प्रतिनिधियों पर भरोसा नहीं कर पा रही। यह उस पार्टी की साख पर सीधा वार होगा जो हमेशा अनुशासन और संगठनात्मक मजबूती की मिसाल के रूप में प्रस्तुत होती रही है।

इससे भी बड़ा नुकसान यह हो सकता है कि कांग्रेस को शिवपुरी जैसे संवेदनशील नगर में राजनीतिक बढ़त मिल जाए। कांग्रेस के 10 पार्षद पहले से ही मौजूद हैं। यदि अध्यक्ष हटाई जाती हैं, तो कांग्रेस इसे पूरे प्रदेश में यह कहकर प्रचारित करेगी कि भाजपा की आपसी खींचतान के कारण अध्यक्ष को पद से हटाया गया। इससे भाजपा की एकजुटता और नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े हो सकते हैं, खासकर तब जब केंद्र, राज्य और सांसद सभी भाजपा के ही हैं।

इसके अतिरिक्त यदि शिवपुरी में अध्यक्ष हटती हैं, तो यह ट्रेंड बन सकता है। जिन जिलों में भाजपा के नगर पालिका अध्यक्षों के खिलाफ स्थानीय असंतोष पनप रहा है, वहां भी ऐसी ही मांगें सामने आएंगी। यह सिलसिला शुरू हो गया तो पार्टी को कई स्तरों पर चुनौती झेलनी पड़ सकती है।

सबसे गंभीर पहलू यह है कि यदि अब अध्यक्ष हटती हैं, तो जनता के बीच यह धारणा मजबूत होगी कि भाजपा ने जानबूझकर एक अयोग्य व्यक्ति को तीन वर्षों तक शहर पर शासन करने दिया। इससे भाजपा की निर्णय क्षमता और जनविश्वास पर आघात लगेगा।

इन सभी कारणों से गायत्री शर्मा को हटाना भाजपा के लिए राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील विषय बन गया है। यह प्रकरण केवल नगर पालिका अध्यक्ष की कुर्सी का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में भाजपा की रणनीतिक स्थिरता और जनविश्वास की कसौटी बन चुका है। निर्णय कोई भी हो, लेकिन इस संकट ने भाजपा नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि स्थानीय नेतृत्व के चयन में की गई भूल कितनी भारी पड़ सकती है।

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1 टिप्पणियाँ

  1. ये सब मिलकर ही खा रहे हैं, उसको अलग कैसे करें। काम कोई नहीं करना चाहता इस मे बीजेपी ये कर सकती हैं कि इन से काम करवाये।अपनी

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