BJP के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की खोज शुरू, RSS की पकड़ मजबूत, संगठनात्मक भूचाल के संकेत
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भारतीय राजनीति के गलियारों में एक बार फिर हलचल मच चुकी है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के भीतर एक बड़ा संगठनात्मक परिवर्तन आकार ले रहा है—एक ऐसा परिवर्तन जो न केवल पार्टी की अगली पीढ़ी के नेतृत्व को तय करेगा, बल्कि यह भी संकेत दे रहा है कि आरएसएस (RSS) की विचारधारा और रणनीति अब प्रत्यक्ष रूप से भाजपा के केंद्र में है।
28 जून को दिल्ली स्थित संघ कार्यालय में एक बेहद गोपनीय बैठक हुई, जिसकी आधिकारिक घोषणा तो नहीं हुई, लेकिन इसके असर की गूंज पूरे राजनीतिक परिदृश्य में सुनाई दे रही है। इस बैठक की अगुवाई भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने की, जिनके साथ संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और अन्य वरिष्ठ संघ नेता मौजूद थे। बैठक का एजेंडा स्पष्ट था—राज्यों में लंबित पार्टी चुनावों को तेजी से पूरा करना और नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया को गति देना।
भाजपा के भीतर इस बात पर आम सहमति बन चुकी है कि अगला अध्यक्ष वही होगा जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वीकृति प्राप्त होगी। हालांकि नामों की सूची गुप्त रखी गई है, लेकिन चर्चा यह है कि संघ के करीबी और संगठनात्मक रूप से मजबूत नेताओं को तरजीह दी जा रही है। करिश्मा अब गौण हो चुका है, अब प्राथमिकता है अनुशासन, विचारधारा और सांगठनिक निष्ठा।
पिछले एक सप्ताह में कुछ राज्य अध्यक्षों की नियुक्ति इस दिशा में स्पष्ट संकेत दे रही है। विगत कुछ समय में कुछ राज्यों में ऐसे नेताओं को चुना गया है जो संघ से गहरे जुड़े हुए हैं। इन नियुक्तियों के पीछे का संकेत साफ है—अब भाजपा एक बार फिर मूल संगठनात्मक ढांचे की ओर लौट रही है, जिसमें "नेता का कद" नहीं, बल्कि "विचारधारा से जुड़ाव" प्राथमिक है।
राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि आने वाले दिनों में केंद्रीय कैबिनेट में भी फेरबदल हो सकता है। संभव है कि कुछ मौजूदा मंत्रियों को संगठनात्मक जिम्मेदारियां दी जाएं, और कुछ नए चेहरे उभर कर सामने आएं। यह पूरा घटनाक्रम एक बड़े बदलाव की भूमिका है, जिसमें भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक दिशा तय करेगा—वो दिशा जिसमें 2029 के लोकसभा चुनावों की तैयारी, संगठन का नव-संरचना और विचारधारा का सुदृढ़ीकरण प्रमुख होंगे।
यह स्पष्ट है कि भाजपा और आरएसएस के बीच की दूरी अब औपचारिकता मात्र रह गई है। संघ अब पर्दे के पीछे से नहीं, बल्कि सामने आकर यह संदेश दे रहा है कि "जो भी होगा, वही होगा जो विचारधारा कहेगी।"
बड़ी खबर यह नहीं कि नया अध्यक्ष कौन होगा—बल्कि यह है कि अब भाजपा का नेतृत्व केवल राजनीतिक रणनीति से नहीं, बल्कि वैचारिक अनुशासन से तय होगा। और यही सस्पेंस है, जो आने वाले हफ्तों को रोमांचक, रहस्यपूर्ण और निर्णायक बना रहा है।
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कुछ नहीं अंततः गुड़ गोबर ही होगा ....देख लेना
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