ओमी जैन का इस्तीफा - क्या शिवपुरी भाजपा को खोखला करने की साजिश रची जा रही है ?
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शिवपुरी की राजनीति में हाल ही में घटित घटनाक्रम कोई साधारण राजनीतिक असहमति या व्यक्तिगत नाराज़गी भर नहीं है। यह एक सुनियोजित, व्यवस्थित और सूक्ष्म तरीके से रची गई राजनीतिक पटकथा का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसकी स्क्रिप्ट कहीं गहरे अंधेरों में लिखी गई है और संघ की भाषा में कहें तो अग्रेसर भी ऐसा भावुक शख्स चुना गया जो न केवल वंश परंपरा से भाजपाई है, वरन जो पिछले तीन दशकों से भाजपा के हर संघर्ष, हर आंदोलन का चेहरा रहा। रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान पुलिस ने जिसे इतनी बेरहमी से बाल पकड़ कर घसीटा कि बाल ही उखड गए, उनका सर खून से लथपथ हो गया। यह कैसी बिडम्बना है कि जो संगठन का सबसे ‘विश्वस्त' चेहरा था, आज उसके माथे पर ‘विश्वासघात’ का काला टीका लग गया।
जी हाँ हम बात कर रहे हैं ओमप्रकाश जैन 'ओमी' की —उनके इस्तीफे से उपजी हलचल को अगर सिर्फ 'व्यक्तिगत कारण' कह कर खारिज किया जाए, तो यह न केवल उस नेता का अपमान होगा, बल्कि पूरे संगठनात्मक ताने-बाने के प्रति भी एक खतरनाक उदासीनता होगी।
क्या यह केवल नाराजगी है, या फिर एक गहरी राजनीतिक साजिश ?
ओमी जैन जैसे कर्मठ और जमीनी कार्यकर्ता को केवल पार्षद की सीमित भूमिका तक समेट देना—क्या यह कोई साधारण राजनीतिक भूल थी? या यह किसी सुनियोजित कमजोर करने की रणनीति थी? क्या उन्हें जानबूझकर उस स्थिति में ढकेला गया जहां वे ‘लाभ’ के मोह में बंधे रहें और धीरे-धीरे ‘नियंत्रण’ से बाहर कर दिए जाएं?
ऐसे सवाल अनायास नहीं उठते, जब यह देखा जाए कि उन्हें पद का लालच दिया गया, उन्हें झूठे वादों में उलझाया गया और अंततः जब उन्हें वास्तविकता का बोध हुआ, तब तक उनका राजनीतिक आत्मबल क्षीण हो चुका था। यह मात्र 'राजनीतिक ठगी' नहीं, एक वरिष्ठ नेता के आत्मसम्मान की नृशंस हत्या है।
नगर पालिका का द्वंद्व, जिसके पीछे छुपे हैं निजी स्वार्थ?
सूत्र बताते हैं कि करैरा के एक मंदिर में कुछ पार्षदों से प्रतिज्ञा करवाई गई कि यदि नपा अध्यक्ष नहीं बदली गई तो वे सामूहिक इस्तीफा देंगे। यह कदम भले ही संगठनात्मक प्रतीत हो, लेकिन इसके पीछे की ‘भक्ति’ और ‘प्रतिज्ञा’ असल में एक साजिश का मंचन था। अब उन्हीं लोगों द्वारा यह कहा जाना कि वे तब तक पद पर टिके रहेंगे जब तक 'पूरा खेल' न हो जाए, इस षड्यंत्र की पोल खोलता है।
यह सवाल अत्यंत प्रासंगिक है— क्या यह विद्रोह नहीं बल्कि सत्ता का ड्रामा है? क्या यह जनसेवा नहीं, एक सोची-समझी साजिश है भाजपा को भीतर से खोखला करने की?
एक समर्पित कार्यकर्ता को मोहरा बनाकर खेली जा रही है अंतर्कलह की शतरंज?
यह कोई संयोग नहीं है कि जिस नगर पालिका में भाजपा का पूर्ण बहुमत है, वहीं इतनी बार-बार उठापटक हो रही है। यह संदेह तब और गहरा हो जाता है जब देखा जाए कि कुछ गुटबाज, जातिवादी और पूर्ववर्ती कांग्रेस मानसिकता से ग्रसित चेहरे ही हर असंतोष की जड़ में दिखाई देते हैं।
भाजपा जैसी विचारधारा-आधारित पार्टी में जब 'व्यक्तिवादी एजेंडा' हावी होने लगता है, तो पार्टी का मूलाधार—निष्ठा, तपस्या और अनुशासन—डगमगाने लगता है। ओमी जैन के इस्तीफे को इसी खतरे की पहली घंटी माना जाना चाहिए।
यह "नपा की लड़ाई" नहीं, भाजपा की आत्मा की लड़ाई है?
यदि यह सब एक साजिश है, तो इसके शिकार केवल ओमी जैन नहीं हैं। यह तो उस विचारधारा का अपमान है, जिसके लिए हजारों कार्यकर्ताओं ने दशकों तक अपने खून-पसीने से पार्टी को सींचा। इस बार हमला एक कार्यकर्ता पर नहीं, बल्कि संगठन की आत्मा पर है।
आने वाले समय में यदि पीआईसी की बैठक का बहिष्कार होता है, यदि अविश्वास प्रस्ताव आता है, यदि न्यायालय तक मामला पहुंचता है—तो यह मत समझिए कि यह स्थानीय राजनीतिक हलचल है। यह भाजपा की साख और उसकी सांगठनिक संरचना पर सीधा हमला होगा।
क्या भाजपा नेतृत्व समय रहते जागेगा?
अब प्रश्न भाजपा नेतृत्व के समक्ष खड़ा है—क्या वे उन 'घुसपैठियों' को पहचान पाएंगे, जो पार्टी की आड़ में निजी स्वार्थ साधने में लगे हैं? ओमी जैन जैसे भावुक कार्यकर्ता को मोहरा बना रहे हैं। क्या शीर्ष नेतृत्व ऐसे चेहरों पर नकेल कस पायेगा, जिनके इशारे पर एक पवित्र मंदिर को भी राजनैतिक पटकथा का हिस्सा बना दिया गया।
अगर अब भी मौन साधा गया, तो कल किसी और ओमी जैन को भड़का कर संगठन को खोखला करने की साजिश को अंजाम दिया जाएगा। भाजपा में भावुक कार्यकर्ताओं की कमी कहाँ है ? परदे के पीछे के चेहरे अपनी साजिश को सफल होता देख केवल मजा लेते रहेंगे। सवाल एक व्यक्ति के स्तीफे का नहीं है, सिर्फ उसकी पीड़ा का नहीं है, सवाल कार्यकर्ता की संगठन के प्रति निष्ठा और विश्वसनीयता का है। जिसे आज कोई भी बाहरी तत्व डगमगा देता है। क्यों ? क्योंकि संगठन में समन्वय और संवाद का अभाव हो रहा है। यह केवल इस्तीफा नहीं, चेतावनी है। जागो कर्णधारो जागो।
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