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क्या संघ का प्रणाम सचमुच अल्बानियाई राजा की नकल है? – दिवाकर शर्मा

 

संघ विरोधियों की एक बीमारी है—हर भारतीय चीज़ में विदेशी छाया ढूँढ़ लेना। उन्हें भगवा दिखे तो उसमें फासीवाद दिखता है, उन्हें संघ का प्रणाम दिखे तो उसमें अल्बानिया का राजा याद आता है। मानो भारत की मिट्टी में कुछ भी मौलिक और पवित्र हो ही नहीं सकता। अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर यह झूठ परोसा जा रहा है कि संघ का प्रणाम दरअसल किसी "जोगिस्ट सलाम" की नकल है। ऐसे लोग शायद यह भूल जाते हैं कि छाती पर हाथ रखकर प्रणाम करना इस भूमि की हजारों साल पुरानी परंपरा है—यहाँ तो शिष्य गुरु को प्रणाम करता था, संतान माता-पिता को प्रणाम करती थी और वीर योद्धा मातृभूमि को प्रणाम कर रणक्षेत्र में उतरते थे। क्या उस समय भी अल्बानिया का कोई राजा भारत को आदेश दे रहा था?

सच्चाई यह है कि "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे" कोई उधार का गीत नहीं बल्कि इस राष्ट्र की आत्मा की पुकार है। नरहरि नारायण भिड़े जी ने इसे 1939 में रचा और यह संघ की शाखाओं में तब से गूंज रहा है। इसे संस्कृत में इसलिए रूपांतरित किया गया ताकि यह पूरे भारत की साझा सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन सके। जो लोग इसे विदेशी कहकर बदनाम करते हैं, वे दरअसल भारत की परंपराओं और भारतीयता पर ही शक कर रहे होते हैं।

संघ का प्रणाम विदेशी सलाम नहीं, बल्कि इस राष्ट्र की मिट्टी की गंध है। यह प्रणाम उस मातृभूमि को समर्पित है जिसकी गोद में राम, कृष्ण, विवेकानंद और शिवाजी पले-बढ़े। यह प्रणाम उस परंपरा का हिस्सा है जिसमें अपने से ऊपर किसी शक्ति के चरणों में झुकना ही गौरव माना जाता है। लेकिन जिनकी आँखों पर पश्चिमी चश्मा चढ़ा है, उन्हें हर चीज़ में नकल ही दिखती है, मौलिकता नहीं।

संघ विरोधियों की हालत वैसी है जैसे कोई तोता रटा-रटाया विदेशी पाठ दोहराता हो। उन्हें इतिहास की गहराई नहीं, बस अपने एजेंडे की तुच्छता दिखती है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि लाख झूठ बोल लो, लाख विदेशी नाम जोड़ लो, "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे" की पवित्र गूंज को कोई दबा नहीं सकता। यह गूंज हर स्वयंसेवक के हृदय में धड़कती है, यह गूंज भारत माता की आराधना है। इसे न तो अल्बानियाई राजा मिटा सकता है और न ही वे विदेशी सोच वाले लोग जो अपनी ही जड़ों से नफरत करते हैं।

संघ विरोधी समझ लें, उनका काम झूठ गढ़ना है और संघ का काम राष्ट्र निर्माण करना। झूठ की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती, लेकिन मातृभूमि के चरणों में अर्पित प्रणाम युगों-युगों तक अमर रहता है।

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