जिझौतिखंड नवनिर्माण संकल्प दिवस : परंपरा, पुरुषार्थ और भविष्य की शपथ
नर्मदा केवल जलधारा नहीं, वह चेतना की अविराम यात्रा है। उसके तट पर जब दीप प्रज्वलित होते हैं तो केवल आरती नहीं होती, बल्कि स्मृति, संकल्प और संस्कार का जागरण होता है। 27 दिसंबर 2025, शनिवार—पौष शुक्ल सप्तमी—सेठानी घाट, नर्मदापुरम पर अंतर्राष्ट्रीय जिझौतिया ब्राह्मण महासंघ के आह्वान पर चार वर्षों बाद पुनः जिझौतिया कुटुंब एकत्र होगा। नर्मदा आरती, धर्मध्वज पूजन और जिझौतिखंड नवनिर्माण संकल्प दिवस के माध्यम से जिझौतिया समाज अपने पुरखों को नमन करते हुए भावी पीढ़ियों के लिए संकल्पबद्ध होगा।
यह संयोग अपने आप में अर्थपूर्ण है। यही दिवस जिझौतिखंड के वीर नरवीर केसरी गढ़कुंडार अधिपति महाराज खेतसिंह खंगार की जयंती का भी साक्षी है, जिन्होंने संघीय व्यवस्था के अंतर्गत जिझौति के समस्त राजाओं के साथ मिलकर मध्यभारत में तुर्क-अफगान आक्रमणों को रोकने का ऐतिहासिक कार्य किया। इसके ठीक पूर्व 26 दिसंबर का संधिकाल है, जिसे वीर बाल दिवस के रूप में स्मरण किया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह के चारों साहिबजादों का वह सर्वोच्च बलिदान, जिसने यह सिद्ध किया कि धर्म और राष्ट्र के लिए उम्र नहीं, केवल धैर्य और साहस चाहिए। उसी क्रम में जिझौतिया समाज उन समस्त वीरों और वीरांगनाओं का भी स्मरण करता है, जिन्होंने सनातन की रक्षा में अपने प्राण न्यौछावर किए।
जिझौति कोई साधारण भूगोल नहीं है। यह एक प्राचीन भू-सांस्कृतिक चेतना है, जिसकी संस्कृति जिझौतियाई कहलाती है—यजुर्वेदीय वैदिक सनातनी परंपरा से अनुप्राणित। अद्वैत वेदांत इसका दर्शन है और शस्त्र व शास्त्र इसकी साधना। इतिहास, शिलालेख, लिपियाँ और लोकस्मृतियाँ आज भी साक्ष्य देती हैं कि यह वही परंपरा है, जहाँ कण-कण में जौहर और पल-पल में बलिदान हुआ। महाभारतकालीन गुरु द्रोण की परंपरा से जुड़ी यह विरासत पाँच सहस्राब्दियों से अधिक का गौरव समेटे हुए है।
आज के समय में जिझौतिया ब्राह्मण समाज के पास दोहरी जिम्मेदारी है—स्वयं का उत्थान और समस्त सप्त सनातनी गोत्र परंपरा वाले समाज का कल्याण। इसी भावना से अंतर्राष्ट्रीय जिझौतिया ब्राह्मण महासंघ एक वैचारिक, कौटुंबिक और आत्मीय संगठन के रूप में निरंतर सेवा में संलग्न है। पिछले 33 महीनों में 165 से अधिक वैवाहिक संबंधों का संपन्न होना, वैवाहिक संकटों से जूझ रहे परिवारों को आत्मीय काउंसलिंग के माध्यम से जोड़ना, गोपनीयता और विश्वास की रक्षा करते हुए समाधान देना—ये सभी उपलब्धियाँ समाज के भीतर पुनः संस्कार और स्थायित्व लौटा रही हैं। यह संतोष का विषय है कि लंबे समय से महासंघ के समक्ष तलाक जैसे मामलों का न आना समाज में सकारात्मक परिवर्तन का संकेत है।
आर्थिक, शैक्षणिक और संस्कृतिक सहयोग भी इसी व्यापक दृष्टि का हिस्सा है। जरूरतमंद परिवारों को गरिमा के साथ सहायता, संस्कृत पाठशालाओं में बच्चों को सहयोग, उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले युवाओं को मार्गदर्शन, और आधुनिकता के भ्रम में भटके युवाओं को पुनः जनेऊ, संध्या, गोत्र-बोध और जिझौतियाई इतिहास से जोड़ना—यह सब कार्य किसी प्रचार के लिए नहीं, बल्कि आत्मसंतोष और दायित्व-बोध से किए गए हैं। यहाँ बहिष्कार का नहीं, परिष्कार का भाव है। “सुबह का भूला शाम को घर आ जाए” की भावना के साथ समाज को जोड़ा जा रहा है।
महासंघ की कार्यशैली का मूल मंत्र है—परिवार जोड़ो, समाज संभालो। स्त्रीशक्ति, युवाशक्ति और युवा दंपती इसकी अग्रिम पंक्ति में हैं। अनुशासन, विनय और ‘वयम्’ भाव यहाँ की पहचान है, जहाँ अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं। संगठन स्वरोजगार, चिकित्सा, शिक्षा और सहकारिता के विभिन्न प्रकल्पों पर भी कार्य कर रहा है, ताकि समाज आत्मनिर्भर और सुदृढ़ बन सके। औसत वैवाहिक आयु में आए सकारात्मक परिवर्तन, सामाजिक डेटा के आधार पर योजनाओं का क्रियान्वयन और आने वाले वर्षों में और सुधार का संकल्प इसी दिशा की ओर संकेत करता है।
जिझौतिखंड की चेतना केवल जिझौतिया ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है। अन्य सनातनी समाजों के साथ सहयोग, सहायता और सहभागिता इस बात का प्रमाण है कि सनातन की जड़ें मजबूत होंगी तभी समाज सामूहिक रूप से चुनौतियों का सामना कर सकेगा। बाबा गुंसाईं, विंध्यवासिनी माई और विजयासन माई की आराधना में निहित यह एकात्मता जिझौतियाई संस्कृति की आत्मा है।
नर्मदा तट पर होने वाला यह आयोजन किसी यात्रा का पड़ाव नहीं, बल्कि एक नए चरण का आरंभ है। यह संकल्प है कि अगले सौ वर्षों तक यह चेतना बुझने न पाए। जब तक जन-मन में अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक अस्मिता जागृत रहेगी, तब तक जिझौति का गौरव सुरक्षित रहेगा। यही भाव इस आयोजन का सार है—अपना जीवन सुफल करते हुए पुरखों का आशीर्वाद प्राप्त करना और आने वाली पीढ़ियों को एक सशक्त, संस्कारित और गौरवशाली विरासत सौंपना।

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