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विकसित भारत की नींव: उच्च शिक्षा के पुनर्गठन की ऐतिहासिक पहल – डॉ. अमरीक सिंह

 


जब कोई राष्ट्र अपने भविष्य की दिशा तय करता है, तब शिक्षा उसकी सबसे सशक्त आधारशिला होती है। भारत आज एक ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है, जहाँ स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने से पहले विकसित भारत @2047 का स्वप्न केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक सुविचारित राष्ट्रीय संकल्प बन चुका है। इस संकल्प की पूर्ति के लिए जिस सबसे बड़े और गहरे सुधार की आवश्यकता है, वह है उच्च शिक्षा प्रणाली का समग्र और संरचनात्मक पुनर्गठन। इसी संदर्भ में ‘विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण विधेयक, 2025’ एक दूरदर्शी, साहसिक और समयोचित पहल के रूप में सामने आता है।

यह विधेयक माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के उस दृष्टिकोण को साकार करता है, जिसमें शिक्षा को केवल डिग्री प्रदान करने की व्यवस्था नहीं, बल्कि ज्ञान, नवाचार, आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व का माध्यम माना गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भावना में निहित यह विधेयक उच्च शिक्षा के प्रशासन, विनियमन और गुणवत्ता आश्वासन की दशकों पुरानी जटिलताओं को समाप्त करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था लंबे समय से अनेक नियामक संस्थाओं—यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई—के अधीन संचालित होती रही है। इन संस्थाओं की भूमिका अपने-अपने समय में महत्वपूर्ण रही, किंतु समय के साथ इनके कार्यक्षेत्रों में ओवरलैप, प्रक्रियागत जटिलता और अस्पष्टता बढ़ती चली गई। परिणामस्वरूप विश्वविद्यालयों और संस्थानों को नवाचार से अधिक अनुपालन में ऊर्जा लगानी पड़ी। ‘विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण विधेयक2025’ इस समस्या का संरचनात्मक समाधान प्रस्तुत करता है।

इस विधेयक के अंतर्गत सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को एक एकीकृत, सुसंगत और पारदर्शी ढांचे के अंतर्गत लाया जाएगा। यह एकीकरण केवल प्रशासनिक नहीं है, बल्कि भूमिकाओं के स्पष्ट विभाजन पर आधारित है—मानक निर्धारण, विनियमन और प्रत्यायन को अलग-अलग संस्थागत परिषदों के माध्यम से संचालित किया जाएगा। इससे न केवल हितों के टकराव की संभावना समाप्त होगी, बल्कि निर्णय प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष और विश्वसनीय बनेगी। इस नए ढांचे के अंतर्गत गठित विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद, विकसित भारत शिक्षा विनियमन परिषद और विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता परिषद—तीनों मिलकर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, पारदर्शिता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को सुनिश्चित करेंगी। यह संरचना भारत की शिक्षा व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाती है, साथ ही भारतीय आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील भी रहती है।

इस विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है संस्थागत स्वायत्तता को गुणवत्ता से जोड़ना। अब स्वायत्तता किसी विशेषाधिकार या अनुग्रह के रूप में नहीं, बल्कि उत्कृष्टता के प्रमाण के रूप में प्राप्त होगी। जो संस्थान उच्च गुणवत्ता, मजबूत प्रत्यायन और सार्वजनिक प्रकटीकरण के मानकों पर खरे उतरेंगे, उन्हें अधिक शैक्षणिक और प्रशासनिक स्वतंत्रता मिलेगी। यह दृष्टिकोण नियंत्रण आधारित शासन से हटकर विश्वास आधारित शासन की ओर एक स्पष्ट संकेत देता है। यह परिवर्तन विशेष रूप से विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को पाठ्यक्रम नवाचार, बहुविषयक शिक्षा, शोध संवर्धन और वैश्विक सहयोग की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। जब संस्थानों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता मिलेगी, तो वे स्थानीय आवश्यकताओं और वैश्विक प्रवृत्तियों—दोनों के अनुरूप शिक्षा प्रदान कर सकेंगे।

विधेयक का केंद्र बिंदु है—युवा सशक्तिकरण। आज का छात्र केवल रोजगार नहीं, बल्कि अर्थ पूर्ण अवसर, विश्वसनीय डिग्री और वैश्विक पहचान चाहता है। ‘विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण विधेयक’ यह सुनिश्चित करता है कि छात्रों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा मिले, जिसकी साख देश और विदेश दोनों में हो। पारदर्शी प्रत्यायन और मजबूत मानक निर्धारण से छात्रों का विश्वास बढ़ेगा और उन्हें संस्थान चुनने में अधिक स्पष्टता मिलेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप यह विधेयक लचीलापन, बहुविषयकता और कौशल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देता है। इससे छात्र केवल विषय विशेषज्ञ नहीं, बल्कि समग्र, रचनात्मक और समस्या-समाधान में सक्षम नागरिक बनेंगे। यही वह युवा शक्ति है जो विकसित भारत के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाएगी।

आज के डिजिटल युग में शासन व्यवस्था का प्रभावी होना तभी संभव है जब वह प्रौद्योगिकी आधारित हो। इस विधेयक में प्रस्तावित सिंगल विंडो डिजिटल प्रणाली उच्च शिक्षा प्रशासन में एक क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। सभी अनुमतियाँ, प्रस्तुतियाँ और अनुपालन प्रक्रियाएँ एक ही डिजिटल मंच पर होंगी—वह भी फेसलेस, समयबद्ध और वस्तुनिष्ठ तरीके से।

इस व्यवस्था से न केवल समय और संसाधनों की बचत होगी, बल्कि भ्रष्टाचार और मनमानी की संभावनाएँ भी कम होंगी। सार्वजनिक प्रकटीकरण आधारित विनियमन समाज को भी संस्थानों की गुणवत्ता पर निगरानी रखने का अवसर देगा। यह पारदर्शिता उच्च शिक्षा तंत्र में विश्वास और विश्वसनीयता को मजबूत करेगी। विधेयक में प्रत्यायन को विशेष महत्व दिया गया है। मजबूत प्रत्यायन ढांचा यह सुनिश्चित करेगा कि सभी संस्थान न्यूनतम गुणवत्ता मानकों को पूरा करें, साथ ही अपनी विशिष्ट पहचान और मिशन के अनुरूप आगे बढ़ने की स्वतंत्रता भी रखें। इससे भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में एकरूपता और विविधता—दोनों का संतुलन बना रहेगा।

शोध, नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना भी इस विधेयक का प्रमुख उद्देश्य है। जब संस्थानों पर अनुपालन का बोझ कम होगा, तब वे ज्ञान सृजन, अंतरविषयक शोध और उद्योग-सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। यह भारत को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने में सहायक सिद्ध होगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इस विधेयक को मंजूरी देना और इसे संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष व्यापक चर्चा के लिए प्रस्तुत करना लोकतांत्रिक परिपक्वता का परिचायक है। यह दर्शाता है कि सरकार शिक्षा जैसे संवेदनशील विषय पर समावेशी और विमर्श आधारित नीति निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध है।

लंबे समय से भारत के शैक्षिक जगत में एकल उच्च शिक्षा नियामक की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। यह विधेयक उस आवश्यकता की पूर्ति करता है और जटिल, बिखरी हुई शिक्षा व्यवस्था को सरल, सशक्त और प्रभावी बनाता है। इससे नीतियों के निर्माण और उनके क्रियान्वयन—दोनों में स्पष्टता आएगी। विकसित भारत शिक्षा अधीक्षण विधेयक, 2025’ केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत की शैक्षिक आत्मा के पुनर्निर्माण का प्रयास है। यह विधेयक स्वायत्तता और जवाबदेही, नवाचार और गुणवत्ता, तथा परंपरा और आधुनिकता—इन सभी के बीच संतुलन स्थापित करता है। यदि इसे उसी भावना और संकल्प के साथ लागू किया गया, तो यह भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को वैश्विक नेतृत्व की दिशा में ले जाएगा। आने वाले वर्षों में यही शिक्षा व्यवस्था विकसित भारत @2047 के सपने को साकार करने में सबसे बड़ी शक्ति बनेगी—एक ऐसा भारत, जो ज्ञान, मूल्यों और नवाचार के बल पर विश्व का मार्गदर्शन करे।

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