पर्यटक नगरी का अपमान: शहर के प्रवेश द्वार पर गंदी मानसिकता का विज्ञापन
पर्यटक नगरी की पहचान उसके प्रवेश द्वार से होती है। जिस क्षण कोई बाहरी व्यक्ति शहर की सीमा में कदम रखता है, उसी क्षण उसके मन में उस नगर की संस्कृति, सोच और सभ्यता की पहली तस्वीर बन जाती है। दुर्भाग्य यह है कि थीम रोड के प्रारम्भ, कठमई से लेकर सोन चिरैया बाईपास तक फैला हुआ एक ऐसा दृश्य आज शहर का स्वागत कर रहा है, जो न केवल असहज करता है बल्कि भीतर तक चुभता है।
सार्वजनिक मार्गों पर खुलेआम लगाए गए ऐसे विज्ञापन, जिनमें नामर्दी और गुप्त रोगों का अश्लील, भद्दा और मानसिक रूप से विकृत प्रचार किया गया है, किसी एक व्यक्ति की सोच भर नहीं हैं। यह उस व्यवस्था पर भी प्रश्नचिह्न है, जो इन्हें चुपचाप सहन कर रही है। सवाल यह नहीं है कि इलाज की जानकारी गलत है या सही, सवाल यह है कि क्या शहर में प्रवेश करते ही यही संदेश देना हमारी पहचान बन चुका है?
यह व्यंग्य नहीं तो और क्या है कि जिस नगरी को हम गर्व से पर्यटन नगरी कहते हैं, वहां स्वागत द्वार पर इतिहास, संस्कृति या प्रकृति का परिचय नहीं, बल्कि ऐसी भाषा और चित्रावली दिखाई देती है, जो समाज को भीतर से खोखला करने का काम करती है। क्रोध इस बात पर है कि इसे सामान्य मान लिया गया, और निराशा इस बात की है कि जिम्मेदार संस्थाओं की आंखें अब तक नहीं खुलीं।
यह लेख किसी व्यक्ति विशेष को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास नहीं है, न ही चिकित्सा या व्यवसाय की स्वतंत्रता पर प्रश्न उठाने का उद्देश्य रखता है। कानूनी दायरे में रहकर यह केवल यह पूछता है कि सार्वजनिक स्थानों पर मर्यादा, सामाजिक शुचिता और मानसिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी किसकी है? क्या नगर पालिका, प्रशासन और संबंधित विभागों का यह दायित्व नहीं बनता कि शहर की दीवारें और सड़कें गंदी मानसिकता के पोस्टर नहीं, बल्कि सभ्य संदेशों से भरी हों?
पर्यटक जब शहर में प्रवेश करता है तो वह हमें हमारी सड़कों से आंकता है। यदि पहली नजर में ही उसे यह लगे कि यह शहर अपनी हीन भावना और अश्लील प्रचार से ग्रस्त है, तो यह केवल शहर का अपमान नहीं, बल्कि यहां के प्रत्येक नागरिक की छवि पर आघात है। हम नामर्द नहीं हैं, न ही हमारी सोच बीमार है। लेकिन यदि हमने चुप्पी साधे रखी, तो यह चुप्पी ही हमारी कमजोरी का प्रमाण बन जाएगी।
अब समय है कि इस विषय को संवेदनशीलता, गंभीरता और कानूनी मर्यादा के साथ संज्ञान में लिया जाए। नारेबाजी नहीं, विवाद नहीं, बल्कि जिम्मेदार कार्रवाई की अपेक्षा है। ताकि जब कोई अगली बार कठमई से शहर में प्रवेश करे, तो उसे गंदी मानसिकता का नहीं, बल्कि एक आत्मसम्मान से भरे, जागरूक और सभ्य समाज का परिचय मिले।

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