शिवपुरी में दोहरा कानून: नशे की दुकानें सुरक्षित, शिवालय पर सख्ती
शिवपुरी आज दो अलग-अलग घटनाओं के जरिए एक ही सवाल पूछ रही है कि कानून आखिर किसके लिए है और किसके खिलाफ। मेडिकल कॉलेज के बाहर फैली अवैध दुकानों की कतारें हों या वार्ड क्रमांक 37 के महादेव मंदिर से हटाई गई टीन शेड, दोनों प्रकरण प्रशासनिक सोच, नगर पालिका की भूमिका और तथाकथित कानून व्यवस्था के दोहरे चरित्र को एक साथ उजागर करते हैं। एक ओर वह स्थान है जहां खुलेआम नशा बिकता है, झगड़े होते हैं, छात्र और बाहरी युवक आमने-सामने होते हैं और पुलिस स्वयं स्वीकार करती है कि हर विवाद की जड़ वही अवैध अतिक्रमण हैं। दूसरी ओर वह स्थान है जहां वर्षों से स्थापित शिव मंदिर के आसपास श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए लगाया जाने वाला एक साधारण टीन शेड प्रशासन को अपराध का अड्डा नजर आने लगता है।
मेडिकल कॉलेज जैसे संवेदनशील शैक्षणिक संस्थान के बाहर तंबाखू अधिनियम, शराबबंदी और अतिक्रमण कानून तीनों की खुलेआम धज्जियां उड़ रही हैं। पुलिस पत्र लिखती है, कॉलेज प्रबंधन पत्र लिखता है, नगर पालिका कार्रवाई के आश्वासन देती है, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि अवैध दुकानों का साम्राज्य जस का तस खड़ा है। यहां कानून को “मुहिम”, “प्रक्रिया” और “भूमि आवंटन पाइपलाइन में है” जैसे शब्दों से बहलाया जाता है। नतीजा यह कि शहर का माहौल अशांत होता है, युवा नशे की गिरफ्त में जाते हैं और मेडिकल कॉलेज की गरिमा तार-तार होती रहती है।
इसी शहर में जब वार्ड 37 के पार्क में स्थित महादेव मंदिर की बात आती है तो तस्वीर पूरी तरह उलट जाती है। वर्षों से चला आ रहा मंदिर, जिसे स्थानीय नागरिकों ने अपने संसाधनों से पक्का और भव्य बनाया, अचानक प्रशासनिक चिंता का केंद्र बन जाता है। श्रद्धालुओं की सुविधा और मंदिर की सुरक्षा के उद्देश्य से लगाई जाने वाली टीन शेड को यह कहकर हटवा दिया जाता है कि इससे असामाजिक तत्व बैठेंगे और मदिरापान करेंगे। यह तर्क तब दिया जाता है, जब कुछ ही दूरी पर वास्तविक रूप से शराब और नशा परोसा जा रहा है, लेकिन वहां किसी को असामाजिक तत्व नजर नहीं आते।
यहां सवाल टीन शेड का नहीं, नीयत का है। मेडिकल कॉलेज के बाहर अवैध दुकानों से होने वाले झगड़े, नशा और अपराध नगर पालिका को वर्षों तक नहीं दिखते, लेकिन मंदिर की छाया में बैठने की संभावना मात्र से प्रशासन चौकन्ना हो जाता है। यह चयनात्मक सख्ती क्या कानून का धर्म है या राजनीति का दबाव? क्या हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की बातें सिर्फ मंचों तक सीमित हैं, और जमीन पर आते ही आस्था को बोझ मान लिया जाता है?
लोग यह भी जोड़कर देख रहे हैं कि जिस पार्षद की शिकायत पर मंदिर की टीन शेड हटाई गई, वही आज नपा अध्यक्ष का प्रबल विरोधी है। टीन शेड आज भी नगर पालिका में पड़ी है, मानो शिवभक्ति किसी गोदाम में बंद कर दी गई हो। उधर मेडिकल कॉलेज के बाहर अवैध दुकानों का अतिक्रमण आज भी जस का तस है, मानो अपराध और नशा नगर पालिका की मौन सहमति से चल रहा हो।
इन दोनों प्रकरणों को साथ रखकर देखें तो साफ होता है कि शिवपुरी की समस्या सिर्फ अतिक्रमण या टीन शेड नहीं है, समस्या उस सोच की है जो कानून को सुविधा और दबाव के अनुसार इस्तेमाल करती है। राष्ट्रवादी दृष्टि से यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि राष्ट्र मजबूत संस्थानों और सांस्कृतिक मूल्यों से बनता है। जब शिक्षा के मंदिर के बाहर अपराध पनपने दिए जाएं और आस्था के मंदिर के भीतर सुविधा को अपराध मान लिया जाए, तो यह व्यवस्था की असफलता नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण है।
शिवपुरी को आज यह तय करना होगा कि वह नशे और अवैध बाजारों के साथ खड़ी होगी या शिव की छाया और शिक्षा की गरिमा के साथ। कानून यदि सच में समान है, तो उसे मेडिकल कॉलेज के बाहर भी उतनी ही सख्ती से लागू होना चाहिए जितनी मंदिर के पास दिखाई गई। वरना यह शहर यूं ही सवाल पूछता रहेगा और जवाब हर बार फाइलों, पत्रों और बहानों के बीच कहीं दबा दिया जाएगा।

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