बिस्तर से राष्ट्रपति भवन तक — पूजा गर्ग की प्रेरणादायी उड़ान
एक गंभीर हादसे के बाद पूजा गर्ग का जीवन पूरी तरह बदल गया था। डॉक्टरों ने स्पष्ट कह दिया था कि अब चल पाना संभव नहीं है। इसके बाद 13 बड़े ऑपरेशन, हजारों इंजेक्शन और तीन वर्षों तक बिस्तर पर रहने का कठिन दौर आया। लेकिन पूजा ने परिस्थितियों को अपनी नियति नहीं बनने दिया। उन्होंने हार को स्वीकार करने के बजाय संघर्ष को अपना रास्ता बनाया।
व्हीलचेयर से जीवन को दोबारा खड़ा करना आसान नहीं था, लेकिन खेल ने उन्हें नई दिशा दी। पहले पैरा शूटिंग और फिर पैरा कैनोइंग में पूजा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। एशियन पैरा कैनो चैंपियनशिप 2025, थाईलैंड में उन्होंने दो कांस्य पदक जीतकर तिरंगे को विश्व मंच पर गौरव दिलाया।
वर्ष 2024 में पूजा गर्ग ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की, जिसने उन्हें वैश्विक पहचान दिला दी। उन्होंने इंदौर से नाथू-ला पास तक लगभग 4500 किलोमीटर की कैंसर अवेयरनेस मोटर राइड पूरी की। 14,400 फीट की ऊँचाई पर तिरंगा फहराकर वे दुनिया की पहली पैराप्लेजिक महिला बनीं, जिनका यह रिकॉर्ड London Book of World Records में दर्ज हुआ।
अपने दर्द और संघर्ष को सिर्फ निजी जीत तक सीमित न रखते हुए पूजा गर्ग ने समाज सेवा को भी जीवन का उद्देश्य बनाया। इसी सोच से “पंखों की उड़ान चैरिटेबल फाउंडेशन” की स्थापना हुई। यह संस्था महिला सशक्तिकरण, बच्चों की सुरक्षा, दिव्यांगों के लिए समावेशी खेल, कैंसर पीड़ितों के सहयोग, मानसिक स्वास्थ्य, साइबर सुरक्षा और पर्यावरण जागरूकता जैसे विषयों पर देशभर में कार्य कर रही है। अब तक हजारों बच्चों को सुरक्षा और आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जा चुका है, सैकड़ों कैंसर मरीजों को भावनात्मक और चिकित्सीय सहयोग मिला है, तथा कई राज्यों में महिला सुरक्षा और डिजिटल सेफ्टी से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं।
पूजा गर्ग का कहना है कि उनकी संस्था का उद्देश्य दया नहीं, बल्कि अवसर और सम्मान देना है। उनका मानना है कि हर महिला, हर बच्चा और हर दिव्यांग सक्षम है, बस उसे सही मंच की जरूरत होती है।
खेल, सामाजिक सेवा और अदम्य साहस को देखते हुए भारत सरकार ने पूजा गर्ग को राष्ट्रीय स्तर पर “श्रेष्ठ दिव्यांगजन” पुरस्कार से सम्मानित किया। समारोह के दौरान सभागार में खड़े होकर तालियों की गूंज इस बात का प्रमाण थी कि यह सम्मान सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक सोच की जीत है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी पूजा गर्ग को इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा कि इंदौर की बेटी ने नाथू-ला दर्रे पर तिरंगा फहराकर विश्व इतिहास रचा है और पूरे प्रदेश को उन पर गर्व है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार खेलों और खिलाड़ियों को निरंतर प्रोत्साहन देती रहेगी।
वर्तमान में पूजा गर्ग एशियन गेम्स 2026 और पैरालंपिक 2028 की तैयारी में जुटी हैं, साथ ही अपने सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय विस्तार पर भी कार्य कर रही हैं। उनका लक्ष्य एक ऐसा भारत बनाना है, जहां किसी व्यक्ति की पहचान उसकी सीमाओं से नहीं, बल्कि उसकी क्षमताओं से हो।
पूजा गर्ग की कहानी यह संदेश देती है कि विकलांग होना कमजोरी नहीं है, असली कमजोरी हार मान लेना है। बिस्तर से राष्ट्रपति भवन तक का यह सफर दर्द की नहीं, बल्कि साहस, संकल्प और नए जीवन की कहानी है।

एक टिप्पणी भेजें