तिब्बत पर चीनी कब्जा सम्पूर्ण विश्व के पर्यावरण को एक बड़ा खतरा - ब्रह्म चेलानी

(साभार - श्री ब्रह्म चेलानी के एक अंग्रेजी लेख के अनूदित अंश) 

दलाई लामा तिब्बतियों के 'ईश्वरीय-राजा’ है, तिब्बत के नाम पर भारत चीन के साथ मुख्य मुद्दों पर शक्ति संतुलन बनाये रखने में उनका उपयोग कर सकता है । सबसे लम्बे समय तक रहे वर्तमान दलाई लामा इस वर्ष अपनी आयु के 80 वर्ष पूर्ण कर रहे हैं | लेकिन यह दुर्भाग्य पूर्ण तथ्य है कि अभी तक भारत उनका व तिब्बत का लाभ उठाने में हिचकिचाता रहा है, और यही अनिश्चितता आज पहले से कहीं अधिक दिखाई दे रही है । बीजिंग इस इंतजार में है कि कब उनकी जीवन लीला समाप्त हो, और वह उनके उत्तराधिकारी के रूप में अपने किसी कठपुतली को दलाई लामा बनाये | इसी उद्देश्य से उसने पंचेन लामा संस्था कब्जा कर लिया है ।

तिब्बतीयों द्वारा नियुक्त पंचेन लामा दुनिया के सबसे कम उम्र के और सबसे लंबे समय तक रहे राजनीतिक कैदियों में से एक हैं | उनकी गिरफ्तारी की 20 वीं वर्षगांठ के कुछ सप्ताह बाद ही दलाई लामा का 80 वां जन्मदिन आया है। और साथ ही चीन द्वारा घोषित भ्रामक "तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र" की स्थापना की 50 वीं वर्षगांठ भी है जोकि वस्तुतः जालसाजी से तिब्बत पर अधिकार ज़माने का एक कदम था | 

तिब्बत के आधे पारंपरिक क्षेत्र पहले ही चीनी प्रांतों में शामिल कर लिए गए हैं । चीनी शासन के अधीन आने से पूर्व तिब्बत लगभग पश्चिमी यूरोप के बराबर था। चीन की विशाल, संसाधन संपन्न तिब्बत पर विजय ने जहाँ उसके भूभाग में 35 प्रतिशत की वृद्धि की, वहीं उसे भारत के एकदम पडौस में ला दिया | एशिया की प्रमुख नदी प्रणालियों पर नियंत्रण के रूप में उसे एक महत्वपूर्ण शस्त्र हाथ लगा तो खनिज संसाधनों का खजाना भी उसे मिल गया ।

किंग राजवंश के समय से चीन ने तिब्बत को शीजंग नाम दिया जिसका अर्थ होता है "पश्चिमी खजाना भूमि" | यह इस बात का द्योतक है कि एशिया के दिल में स्थित यह अशांत क्षेत्र रणनीतिक रूप से चीन के लिए कितना बेशकीमती है। जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा आर्थिक विकास करने की अदूरदर्शी शैली के कारण चीन ने अपने प्राकृतिक संसाधन समाप्त कर लिए, अब उसे तिब्बत के संसाधनों का शोषण करने की भूख है । तिब्बत में 10 विभिन्न धातुओं के विशाल भंडार है, जिनकी दम पर चीन आज दुनिया का सबसे बड़े लिथियम निर्माता देश बन गया है | चीन की खनन नीति व बनाए गए बांधों के चलते नाजुक पारिस्थितिकी प्रणालियों व तिब्बती पठार के स्थानिक प्रजातियों के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है ।

विश्व का सबसे ऊंचा पठार तिब्बत, दुनिया के सबसे बड़े जैविक रूप से विविध क्षेत्रों में से एक है | यहाँ जैसे नायाब औषधीय पौधे, पृथ्वी पर सबसे अधिक रहने वाले मनुष्य-सदृश जानवरों के परिवार, पक्षी, स्तनपायी, उभयचर, सरीसृप, मछलीयां, विभिन्न प्रजातियों के पौधे दुनिया में अन्यत्र दुर्लभ हैं | एक ऐसी भूमि जो उपोष्णकटिबंधीय आर्कटिक जैसे पारिस्थितिक क्षेत्रों में शामिल है, यह पठार टुंड्रा से उष्णकटिबंधीय जंगलों, दुनिया की सबसे गहरी और सबसे लम्बी घाटी तथा अपनी सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर गर्व करता है | 

एशिया के प्रमुख मीठे पानी के भंडार यहाँ है, यह सबसे बड़ा पानी सप्लायर है, और प्रिंसिपल Rainmaker के रूप में, तिब्बत एक अद्वितीय हाइड्रोलॉजिकल भूमिका निभाता है। यह आर्कटिक और अंटार्कटिका के बाद पृथ्वी का सबसे बड़ा बारहमासी बर्फ द्रव्यमान है | अपने विशाल ग्लेशियरों और बर्फीली पहाड़ियों के कारण तिब्बत को "तीसरा ध्रुव" भी कहा जाता है।
भारत की आजादी के बाद उसकी दीर्घकालिक सुरक्षा को जिसने सबसे अधिक प्रभावित किया, वह है तिब्बत का पतन । दरअसल तिब्बत पर कब्जा करके चीन ने सैन्य और संसाधन दोनों दृष्टि से लाभ प्राप्त किया | तिब्बती पठार पर बढ़ते सैन्यीकरण और मेकोंग, सलवीन और ब्रह्मपुत्र नदियों पर बनाए गए बांधों के कारण दक्षिण पूर्व और दक्षिण एशिया देशों के सम्मुख सामरिक और पर्यावरण का संकट पैदा हो गया है ।

भारत को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचे तिब्बती पठार की अनूठी विरासत को बचाने में मदद करना ही चाहिए | भारत का दायित्व क्या हो, इस पर श्री ब्रह्म चेलानी का नजरिया आगे पढ़ें -

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