हिंदू धर्म के बारे में फैलाए गए भ्रम - भाग 1

हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं के कारण हिन्दू धर्म में कई ऐसी अंतरविरोधी और विरोधाभाषी विचारधाराओं का समावेश हो चला है, जो स्थानीय संस्कृति और परंपरा की देन है। लेकिन उन सभी विचारधाराओं का सम्मान करना भी जरूरी है, क्योंकि धर्म का किसी तरह की विचारधारा से संबंध नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ ‘ब्रह्म ज्ञान’ से संबंध है। ब्रह्म ज्ञान अनुसार प्राणीमात्र सत्य है। सत्य का अर्थ ‘यह भी’ और ‘वह भी’ दोनों ही सत्य है। सत् और तत् मिलकर बना है सत्य।

यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि जो व्यक्ति जिस भी धर्म में जन्मा है, वह उसी धर्म को सबसे प्राचीन और महान मानेगा। सत्य को जानने का प्रयास कम ही लोग करते हैं। हजारों वर्ष की लंबी परंपरा के कारण हिन्दू धर्म में कई तरह के भ्रम फैल गए हैं। इन भ्रमों के चलते सनातन हिन्दू धर्म पर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। हम आपको बताएंगे कि वे कौन से भ्रम हैं और आखिर उनमें कितनी सचाई है। ऐसे ही कुछ भ्रमों की जानकारी को जानना जरूरी है।

हिन्दू धर्म के खिलाफ फैला भ्रम :

हिन्दू धर्म के बारे में हजारों तरह के भ्रम हिन्दुओं और गैर-हिन्दुओं में फैले हैं। मसलन कि यह एक बुतपरस्त धर्म है, इसके अनेक धर्मग्रंथ हैं, ये लोग परमेश्वर को छोड़कर 33 करोड़ देवी और देवताओं की पूजा करते हैं। यह भी कि इनके धर्म में कोई नियम और व्यवस्था नहीं है, धर्म का कोई संस्थापक नहीं है और कोई एक धर्मगुरु भी नहीं है, जो हिन्दुओं को हांक सके।

यह भी माना जाता है कि इनके सैकड़ों त्योहार हैं कि समझ में नहीं आता कि कौन-सा धर्मसम्मत त्योहार है। इसके अलावा कई तरह की पूजा और प्रार्थना पद्धतियां हैं। समझ में नहीं आता कि किस तरह से पूजा या प्रार्थना करें।

इसके अलावा हिन्दू लोग गाय और कई प्रकार के जंतुओं जैसे नाग, बंदर, बैल आदि को पवित्र समझकर उनकी भी पूजा करते हैं, जो कि एक जाहिलाना कृत्य है। दूसरी ओर वे ग्रह और नक्षत्रों जैसे निर्जीव की भी पूजा करते हैं, जो घोर पाप है। तीसरी ओर हिन्दुओं में मनुवादी वर्ण व्यवस्था है जिससे समाज में कई तरह की असमानता पैदा होती है। उक्त तरह की हजारों धारणाएं लोगों के मन में रहती हैं। लेकिन जैसे एक आम हिन्दू अन्य धर्मों की सचाई नहीं जानता उसी तरह एक गैर-हिन्दू भी हिन्दू धर्म के बारे में कम ही जानता है। वह वही बात करता है, जो समाज में प्रचलित है या उसने देखी और सुनी है। आओ हम जानते हैं कुछ इस तरह के भ्रमों के बारे में…

1. एकेश्वर या सर्वेश्वरवादी धर्म : कहते हैं कि हिन्दू धर्म एकेश्वरवादी धर्म नहीं है। यह 33 करोड़ देवी- देवताओं की पूजा करने वालों का धर्म है। इसका जवाब है कि पहले वेद, उपनिषद और गीता पढ़ो। एक भी जगह यह नहीं लिखा है कि ईश्वर अनेक हैं और देवी-देवता 33 करोड़ हैं। देवताओं की संख्‍या 33 कोटि (प्रकार) की बताई गई है, न कि 33 करोड़। ब्रह्म ही सर्वोच्च सत्ता है और त्रिदेव या देवी-देवता भी उस ब्रह्म के प्रति नतमस्तक हैं।

2. ब्रह्म ही सत्य है : वेद और उपनिषदों में सत्य को हजारों तरीके से समझाया गया है। ब्रह्म ही सत्य है। ब्रह्म शब्द का कोई समानार्थी शब्द नहीं है। जब तक आप ‘ब्रह्म दर्शन’ को नहीं समझेंगे तब तक आप भ्रम में ही रहेंगे। किसी भी धर्म की प्रार्थना या पूजा पद्धति से इस सत्य को नहीं जाना जा सकता। ब्रह्म क्या है यह समझने के लिए उपनिषदों का गहन अध्ययन जरूरी है और ब्रह्म को जानने का एकमात्र उपाय योग और ध्यान है।

3. षड्दर्शन : हिन्दू धर्म में इस ब्रह्म को जानने के लिए कई तरह के मार्गों का उल्लेख किया गया है। वेदों के इन मार्गों के आधार पर ही 6 तरह के दर्शन को लिखा गया जिसे षड्दर्शन कहते हैं। वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। ये 6 दर्शन हैं- 1. न्याय, 2. वैशेषिक, 3. सांख्य, 4. योग, 5. मीमांसा और 6. वेदांत। हालांकि पूर्व और उत्तर मीमांसा मिलाकर भी वेदांत पूर्ण होता है। उक्त दर्शन के आधार पर ही दुनिया के सभी धर्मों की उत्पत्ति हुई फिर वह नास्तिक धर्म हो या आस्तिक अर्थात अनीश्‍वरवादी हो या ईश्‍वरवादी। इसका यह मतलब नहीं कि वेद दोनों ही तरह की विचारधारा के समर्थक हैं। वेद कहते हैं कि भांति-भांति की नदियां अंत में समुद्र में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती हैं उसी तरह ‘ब्रह्म दर्शन’ को समझकर सभी तरह के विचार, संदेह, शंकाएं मिट जाती हैं। वेद और उपनिषद के ज्ञान को किसी एक आलेख के माध्यम से नहीं समझाया जा सकता।

‘जिसे कोई नेत्रों से भी नहीं देख सकता, परंतु जिसके द्वारा नेत्रों को दर्शन शक्ति प्राप्त होती है, तू उसे ही ईश्वर जान। नेत्रों द्वारा दिखाई देने वाले जिस तत्व की मनुष्य उपासना करते हैं वह ईश्‍वर नहीं है। जिनके शब्द को कानों के द्वारा कोई सुन नहीं सकता, किंतु जिनसे इन कानों को सुनने की क्षमता प्राप्त होती है उसी को तू ईश्वर समझ। परंतु कानों द्वारा सुने जाने वाले जिस तत्व की उपासना की जाती है, वह ईश्वर नहीं है। जो प्राण के द्वारा प्रेरित नहीं होता किंतु जिससे प्राणशक्ति प्रेरणा प्राप्त करता है उसे तू ईश्‍वर जान। प्राणशक्ति से चेष्‍टावान हुए जिन तत्वों की उपासना की जाती है, वह ईश्‍वर नहीं है।’ ।।4, 5, 6, 7, 8।। -केनोपनिषद।।

4. एक ही धर्मग्रंथ है वेद : वेद के अलावा हिन्दू धर्म का कोई अन्य धर्मग्रंथ नहीं है। वेद के विस्तृत ज्ञान को विषयानुसार पूर्व काल में 4 हिस्सों में विभाजित किया किया। वेदों के अंतिम भाग या अरण्यक को उपनिषद कहते हैं। अंतिम भाग होने के कारण इसे ही वेदांत कहा जाता है। वेद को श्रु‍ति ग्रंथ कहा जाता है अर्थात जिन्होंने इसे सुना। वेद को छोड़कर सभी अन्य ग्रंथों को स्मृति ग्रंथ कहा जाता है अर्थात सुनी हुई बातों का पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्मरण रखना और उसे समय तथा काल के अनुसार ढालना।
इस तरह श्रुति और स्मृति दो तरह के ग्रंथ हो गए। इसमें से सिर्फ श्रुति ही धर्मग्रंथ है और श्रुति का मतलब वेद। श्रु‍ति ग्रंथ वेद अपरिवर्तनशील है, क्योंकि इनकी रचना मूल छंद और काव्य के रूप में इस तरह के विशेष ध्वनि शब्दों से हुई है जिसके कारण इनमें संशोधन या परिवर्तन करना असंभव है।

वैदिक ज्ञान को अच्छे तरीके से षड्दर्शन और स्मृतियों के माध्यम से समझाया गया है। वेदों का सार या कहें कि निचोड़ उपनिषद है। उपनिषद लगभग 1,000 से ज्यादा है। उपनिषदों का सार और निचोड़ ‘ब्रह्मसूत्र’ है। ब्रह्मसूत्र का भी सार और निचोड़ गीता है। वेदों का केंद्र है- ब्रह्म। ब्रह्म को ही ईश्वर, परमेश्वर और परमात्मा कहा जाता है। सभी तरह की स्मृतियां, सूत्र, उपवेद आदि सभी वेदों को अच्छे से समझने और समझाने वाले ग्रंथ हैं। अब जहां तक सवाल पुराण, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों का है तो वे भारत के इतिहास ग्रंथ हैं।

श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।
तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा।।
भावार्थ : अर्थात जहां कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहां वेद की बात ही मान्य होगी। -वेदव्यास

5. धार्मिक कानून : दुनिया में सबसे पहले धार्मिक कानून की किताब मनु स्मृति को लिखा गया था। इस पर आधारित ही दुनियाभर के धार्मिक कानूनों का निर्माण हुआ। इस्लाम में भी शरिया धार्मिक कानून ही है। यह नियम की पुस्तक है, जैसा कि ओल्ड टेस्टामेंट या न्यू टेस्टामेंट में है। दोनों टेस्टामेंटों को मिलाकर बाइबिल बनती है। ओल्ड टेस्टामेंट को यहूदियों का ग्रंथ तनख कहा जाता है और न्यू को इंजील।

आगे पढ़िए हिंदू धर्म के बारे में फैलाए गए भ्रम - भाग 2

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