आल्हा ऊदल की कहानी - अजब गजब शादियाँ



हममें से अधिकाँश ने सुभद्रा कुमारी चौहान की वह अमर कविता अवश्य पढी होगी, जिसमें लिखा गया था – 

बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी | 

सवाल उठता है कौन थे ये हरबोले ? ऐसे लोकगायक ना कोई जिनका नाम जानता है, ना ठिकाना | मुझे लगता है कि आल्हखंड लिखने वाले भी ऐसे ही लोक गायक रहे होंगे | जब इतिहासकार, चंदवरदाई लिखित प्रथ्वीराज रासो को प्रामाणिक नहीं मानते क्योंकि उसमें पराभौतिक शक्तियों अर्थात वीर या जिन्नों का उल्लेख है, तो आल्हखंड को भी प्रामाणिक माने जाने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि उसमें भी ऊदल को मेंढा बनाए जाकर कामरूप ले जाए जाने और इंदल को रातों रात बुखारा पहुंचाए जाने के अद्भुत वर्णन हैं | लेकिन यह भी सही है कि इसके बावजूद बहुत लोग हैं देश में, जो इन बातों पर भरोसा करते हैं | अतः जो भरोसा करते हैं वे सच मानकर और जो भरोसा नहीं करते वे इसे मनोरंजक भर मानकर देखें सुनें यह निवेदन है | एक बार फिर निवेदन कर दूं कि इसमें मेरा अभिमत नहीं है, लेकिन तात्कालिक समाज का इसमें चित्रण है, इस द्रष्टि से विडियो निर्मित है | 

आईये आज आल्हा, ऊदल, मलखान, सुलखान आदि भाईयों और राजा परमाल के बेटे ब्रह्मा के विवाह कैसे हुए, यह जाना जाए | इन लोगों का दुष्ट मामा माहिल इन्हें हानि पहुंचाने की लगातार कोशिश करता रहा | जहाँ भी इन लोगों के विवाह की बात चलती, लोक बोलचाल की भाषा में कहें तो वो भांजी मारने यानी अडंगा लगाने पहुँच जाता | अरे ये तो राजा परमाल को जंगल में मिले थे, अतः न इनकी जात का पता, न बाप का | इनसे सम्बन्ध करना आपकी प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं है, आदि आदि | भड़के हुए राजा सम्बन्ध नहीं करना चाहते, लेकिन राजकुमारियां इन लोगों की वीरता से प्रभावित होतीं, अतः सन्देश भेजतीं कि विवाह करेंगी तो आपसे ही, अन्यथा जान दे देंगी | बस आल्हा ऊदल चढ़ दौड़ते उन राजाओं पर | खूब मारकाट होती, लेकिन जीत हमेशा इनकी ही होती और शादी हो जाती | लगभग आधा आल्ह खंड इन शादियों में हुई लड़ाईयों पर ही केन्द्रित है | सब शादियों का वर्णन तो निश्चय ही उबाऊ हो जाएगा, अतः हम आज राजा परमाल के बेटे ब्रह्मा की शादी पर ध्यान केन्द्रित करते हैं | 

दिल्लीपति महाराज प्रथ्वीराज की बेटी बेला सयानी हुई तो रानी को चिंता सताने लगी, पति को उलाहना दिया, आपको तो कुछ चिंता फिकर ही नहीं है, बेटी की शादी करना है या नहीं | प्रथ्वीराज को भी लगा बात तो सही है, सो अपने सभासदों को बुलाया, मंत्रणा की, तय हुआ कि शादी तो बराबर बालों से ही करना चाहिए, अब प्रथ्वीराज के समान पराक्रमी कैसे ढूंढा जाए, यह समस्या थी | तो उपाय तय हुआ कि पंडित मणि माणक्यों के थालों के साथ विवाह का नारियल लेकर सभी राजाओं के पास जाए, और विवाह की पाती देकर नारियल स्वीकार करने का आग्रह करे | अब आईये देखें कि विवाह की पाती में क्या लिखा गया – 

चारों नेगी ताहर बेटा, 

चोंडा ब्राह्मण संग पठाय, 

सब सामग्री तीन लाख की, 

सों टीका में दई पठाय | 

प्रथम लड़ाई है द्वारे की, 

मंडये कठिन चले तलवार, 

करन कलेवा लरका अहिये, 

तब हम लैहें शीश कटाय | 

जो मंजूर होय जाको यह, 

सो टीका को लेय चढ़ाय, 

यहि विधि पाती प्रथ्वीराज ने, 

लिखिके बंद दई करवाय | 

अब बताईये, कि द्वार पर आओगे तो स्वागत नहीं, लड़ाई होगी, वहां से आगे बढ़ पाए,तो मंडप पर तलवार चलेंगी और वहां से भी जीत गए तो कुंवर कलेऊ के समय जब लड़का अकेला होगा, उसका सिर काट लिया जाएगा | कौन भैया यह नारियल स्वीकार करेगा ? यह तो साक्षात मौत का पैगाम है | और कोई होता तो सोचा भी जाता, लेकिन प्रथ्वीराज के साथ भिड़ना, बाप रे बाप, एक के बाद एक सब राजाओं ने हाथ जोड़ लिए, किसी ने नारियल स्वीकार नहीं किया | अंत में बुझे मन से महोबा पहुंचे | वहां भी राजा परमाल और रानी मल्हना दोनों ने मना करना चाहा, लेकिन मलखान और ऊदल की जिद्द के आगे हार गये और सगाई का नारियल स्वीकार कर लिया | अब बरात पहुँची दिल्ली | मामा माहिल किसी शादी में न पहुंचे और दुष्टता न दिखाएँ, यह कैसे हो सकता है | माहिल की सलाह पर बारातियों को पहले जहरीला शरबत भेजा गया, किन्तु तभी छींक हुई तो ढेबा पंडित ने सगुन बिचारकर पहले उसे एक कुत्ते को पिलाया, जो तुरंत मर गया | स्वाभाविक ही शरबत फेंक दिया गया और यह चाल व्यर्थ हो गई | 

अब शुरू हुई दरबाजे की वह लड़ाई जिसका उल्लेख सगाई की पाती में किया गया था – 

खटखट तेगा बाजे लागे, 

बोली छपक छपक तलवार, 

पैदल भिरि गए पैदल के संग, 

ओ असवारन से असवार | 

चार घरी भर भई लड़ाई, 

ओ बहि चली रक्त की धार, 

उदन पहुँच गए लग्गी पे, 

सोने कलशा लियो उतार | 

द्वारचार तो हो गया, लेकिन अभी तो एक और रोचक किस्सा बाक़ी है, कुछ हसेंगे तो कुछ सत्य मानेंगे | वधू बेला के लिए जो गहने भेजे गए, वो उसे पसंद नहीं आये, बोली मुझे तो द्वापर वाले हस्तिनापुर के गहने चाहिए | मित्रो कथानक के अनुसार ब्रह्मा अर्जुन का और बेला द्रोपदी का अवतार थीं | गंभीर समस्या हो गई | लेकिन हार मान जाएँ तो उन्हें बनाफर कौन कहे | 

आल्हा चलि भये झारखंड को, 

खांडा बिजुलिया लियो उठाय, 

जाय पहुंचे तब मंदिर में 

अस्तुति करी बनाफर राय | 

होम कियो श्री जगदम्बा को, 

अपना शीश चढावन लाग, 

हाथ पकरि लियो तब देवी ने, 

ओ आल्हा ते लगी बतान | 

जब देवीं पधार गईं, तो फिर क्या असंभव था ? बेला को तो द्वापर वाले गहने कपडे पाकर खुश होना ही था, पर अभी तो भांवरों के समय भी लडाई होनी थी | हर फेरे के साथ प्रथ्वीराज के सातों पुत्रों ने ब्रह्मा पर वार किया, किन्तु महोबे के वीरों ने हर बार विफल कर दिया | लेकिन उसके बाद कोठरियों में छुपे हुए दो हजार सैनिक निकल पड़े, लेकिन सब परास्त हुए | 

अब सारे नेगचार हो गए, पर कुंवर कलेऊ भी तो होना था, जिसमें अकेले ब्रह्मानंद को जाना था, किन्तु अब तो शादी हो चुकी थी, अतः वर पक्ष के नियम भी चलने लगे | ऊदल ने कहा हमारे यहाँ की रीत है कि दूल्हा अकेले नहीं जाता, उसके साथ एक संगी भी जाता है | तो ब्रह्मा ऊदल दोनों गए | षडयंत्र अभी भी चल रहे थे, रंगमहल में महिला का वेश धारण कर सेनापति भी पहुँच गए और मौका देखकर ऊदल को विष युक्त कटार मार दी | ऊदल मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े | ब्रह्मा की आखों से आंसू बहने लगे | यह दृश्य देखकर बेला आगे बढी और उसने अपनी उंगली चीरकर अपना खून ऊदल के घाव पर स्पर्श कराया, और अचम्भा हो गया, ऊदल का घाव भर गया और होश भी आ गया | कायदे से तो सब नेगचार निबट गए, राजी ख़ुशी बिदा होना चाहिए, लेकिन जब तक माहिल मामा है, तब तक कैसे ? प्रथ्वीराज बोले, गौना तो साल भर बाद होगा | अब साल भर में तो बहुत कुछ हो जाएगा ना ?

आल्हा ऊदल की कहानी के शेष भाग -

आल्हा ऊदल की कहानी - अंतिम युद्ध

आल्हा ऊदल की कहानी - महोबा से निष्कासन और मलखान की मौत

पिता की मौत का बदला

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