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शिवपुरी मेडिकल कॉलेज विवाद पर डॉ. गिरीश चतुर्वेदी का बेबाक सच

 


शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में एक चिकित्सा छात्र द्वारा आत्महत्या के प्रयास की घटना के बाद जो घटनाक्रम सामने आया, वह केवल एक कॉलेज या एक दिन की घटना तक सीमित नहीं है, बल्कि आज की चिकित्सा शिक्षा, छात्र राजनीति, कॉलेज प्रबंधन और मीडिया—इन सभी के बदलते और बिगड़ते स्वरूप को उजागर करता है। इन्हीं परिस्थितियों और अनुभवों के आधार पर शिवपुरी के चर्चित एवं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गिरीश चतुर्वेदी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किए हैं, जो इस पूरे प्रकरण को गहराई से समझने में मदद करते हैं।

डॉ. गिरीश चतुर्वेदी के अनुसार जूडा कोई सामान्य छात्र संगठन नहीं है। यह प्रदेश का सबसे प्रभावशाली छात्र संगठन इसलिए माना जाता है क्योंकि जूनियर डॉक्टर्स ही वास्तव में 24 घंटे अस्पतालों की व्यवस्था संभालते हैं। वर्तमान चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था को आकार देने में जूडा की ऐतिहासिक भूमिका रही है, लेकिन 24 से 48 घंटे की लगातार ड्यूटी, अत्यंत कठिन पढ़ाई, पारिवारिक जिम्मेदारियां और सामाजिक जीवन के बीच संतुलन बनाना युवाओं पर अत्यधिक मानसिक दबाव डालता है। यह दबाव बाहर से देखने वालों को शायद नजर न आए, लेकिन भीतर ही भीतर छात्रों को तोड़ देता है।

अपने सोशल मीडिया पोस्ट में डॉ. चतुर्वेदी ने यह भी उल्लेख किया है कि वे स्वयं मध्यप्रदेश में लंबे समय तक ग्वालियर मेडिकल कॉलेज तथा प्रदेश स्तर पर जूडा के अध्यक्ष रह चुके हैं। उस दौरान मरीजों और छात्रों—दोनों के हित में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जिनमें मीडिया ने सकारात्मक और सहयोगी भूमिका निभाई। आज भी उनके और पूर्ववर्ती जूडा अध्यक्षों के कई मीडियाकर्मियों एवं मीडिया संस्थानों से घनिष्ठ संबंध हैं। ऐसे में शिवपुरी मेडिकल कॉलेज में छात्रों और मीडिया कर्मियों के बीच हुआ टकराव उन्हें अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और अप्रत्याशित प्रतीत होता है।

डॉ. गिरीश चतुर्वेदी ने अपने विचारों में साफ तौर पर लिखा है कि इस घटना के पीछे केवल एक तात्कालिक कारण नहीं है। इसके मूल में छात्रों की हताशा, कॉलेज प्रबंधन का दबाव और महाविद्यालयीन अव्यवस्थाएं हैं। सरकार द्वारा नए मेडिकल कॉलेज खोलने की जल्दबाजी में की गई फैकल्टी नियुक्तियां, प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से आए ऐसे शिक्षक जिनका आचरण मेडिकल एथिक्स के अनुरूप नहीं है, और प्रोफेसरों की भर्ती में हुआ भ्रष्टाचार—इन सबने स्थिति को और विस्फोटक बना दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि इन नियुक्तियों को लेकर माननीय उच्च न्यायालय ग्वालियर में कई मामले लंबित हैं।

डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार चिकित्सा छात्रों की पीड़ा केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है। JR और SR शिप की भर्ती में रिश्वतखोरी, बिना लेन-देन के टेन्योर न बढ़ना, पठन सामग्री के लिए तय दुकानों से खरीदारी का दबाव, यहां तक कि कैजुअल और मेडिकल लीव तक में उत्पीड़न—ये सब छात्रों को भीतर से तोड़ रहे हैं। इसी के साथ Pre-PG जैसी परीक्षाओं का दबाव, निजी जीवन और भविष्य को लेकर चिंता, और एक बेहतर कार्यस्थल की तलाश मानसिक तनाव को चरम पर पहुंचा देती है।

अपने सोशल मीडिया संदेश में डॉ. गिरीश चतुर्वेदी ने पुराने समय को याद करते हुए लिखा है कि पहले सीनियर्स और प्रोफेसर छात्रों के मार्गदर्शक होते थे। वे सख्त जरूर थे, लेकिन न्यायप्रिय, विद्वान और अनुकरणीय भी। वे प्रोफेशन की गरिमा, मरीजों के प्रति संवेदनशीलता और समाज के प्रति जिम्मेदारी सिखाते थे। आज स्थिति इसके विपरीत है, जहां वसूली के लिए क्लेरिकल और पैरामेडिकल स्टाफ को आगे कर दिया गया है और अपने ही छात्रों की दलाली तक की बातें सामने आ रही हैं।

डॉ. चतुर्वेदी ने अपने विचारों में छोटे शहरों में तेजी से खुल रहे मेडिकल कॉलेजों और गिरते पत्रकारिता स्तर पर भी चिंता जताई है। उनका कहना है कि जिस तरह अयोग्य डॉक्टर तैयार होने का खतरा बढ़ रहा है, उसी तरह बिना प्रशिक्षण और समझ के लोग पत्रकार बनकर व्यवस्था को और बिगाड़ रहे हैं। मीडिया की सीमाएं और जिम्मेदारियां तय हैं, लेकिन बहुत कम लोग उनका ईमानदारी से पालन कर रहे हैं।

उन्होंने जिला अस्पताल की मेटरनिटी विंग को शहर से बाहर शिफ्ट करने के प्रस्ताव को उदाहरण बनाते हुए सवाल उठाया है कि आखिर कितनों ने इसका जनहित में विरोध किया। डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार अव्यवस्थाओं के लिए केवल व्यवस्था ही नहीं, बल्कि समाज भी जिम्मेदार है, क्योंकि हम समय रहते आवाज नहीं उठाते और बाद में हालात बिगड़ने पर शोर मचाते हैं।

अपने सोशल मीडिया पोस्ट का समापन करते हुए डॉ. गिरीश चतुर्वेदी ने पत्रकार देवेंद्र समाधिया को एक ईमानदार और जुझारू पत्रकार बताया और उनके साथ हुई घटना को समाज के लिए नुकसानदेह करार दिया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि चिकित्सा छात्र समय रहते मीडिया का सकारात्मक उपयोग करते और अव्यवस्थाओं के प्रमाण सामने रखते, तो शायद स्थिति यहां तक नहीं पहुंचती।

राहत इंदौरी की पंक्तियों के माध्यम से डॉ. चतुर्वेदी ने चेताया—

“लगेगी आग तो आयेंगे घर कई ज़द में,

यहाँ बस अकेले हमारा मकान थोड़े ही है।”

उनके सोशल मीडिया पर व्यक्त ये विचार न सिर्फ एक डॉक्टर की पीड़ा हैं, बल्कि एक चेतावनी भी हैं कि यदि समय रहते हालात नहीं सुधारे गए, तो इसका नुकसान पूरे समाज को उठाना पड़ेगा।

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1 टिप्पणियाँ

  1. डॉ गिरीश जी का मंतव्य उल्लेखनीय होने के साथ रेखांकित किया जाने वाला है।उनकी यह निष्पक्षता सभी पक्षों के लिए समरसता का संदेश है। उन्हें आभार एवं धन्यवाद!

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