महावीर वाणी - ओशो रजनीश

संलीनता -

· अमरीका के राष्ट्रपति बनने से पूर्व रूजवेल्ट गवर्नर थे | उन दिनों उनकी पत्नी इलनौर एक पागलखाने के निरीक्षण को गईं | एक आदमी ने दरवाजे पर उनका स्वागत किया | इलनौर ने उसे सुपरिंटेनडेट समझा | उसने तीन घंटे हर पागल की केस हिस्ट्री, पूरा विवरण इलनौर को बताया | चलते वक्त इलनौर ने उससे कहा, तुम आश्चर्यजनक हो | पागलपन के विषय में तुम्हारा अध्ययन, अनुभव अद्भुत है | तुम जैसे बुद्धिमान इंसान से मैं पहले कभी नहीं मिली | उस आदमी ने कहा, माफ़ कीजिये आपसे कुछ गलती हो रही है | आप मुझे यहाँ का सुपरिंटेंडेंट समझ रही हैं, किन्तु मैं तो इन पागलों में से ही एक हूँ | इलनौर ने कहा, तुम और पागल ? असंभव | तुम जैसा स्वस्थ आदमी मैंने नहीं देखा | उस आदमी ने कहा, यही तो मैं भी सात साल से इन लोगों को समझा रहा हूँ, लेकिन कोई सुनता ही नहीं | कोई पागल कहे कि वह पागल नहीं तो कौन सुनेगा | डाक्टर कहते हैं कि सब पागल यही कहते हैं कि हम पागल नहीं | इलनौर ने कहा तुम चिंता मत करो, मैं कल ही गवर्नर से कहकर तुमको यहाँ से छुट्टी दिलवा दूंगी | तुम तो असाधारण रूप से बुद्धिमान आदमी हो | अगर तुम पागल हो तो हम सब भी पागल हैं | पागल ने कहा यही तो मैं सबको समझाता हूँ किन्तु कोई नहीं मानता |

नमस्कार करके धन्यवाद देकर जैसे ही इलनौर जाने को मुडी, उस पागल ने उचककर जोर से पीठ पर लात मारी | बेचारी इलनौर सात आठ सीढ़ी नीचे आ गिरी | बहुत घबराकर उसने पूछा, तुमने यह क्या किया ? पागल ने कहा जस्ट टू रिमाईंड यू | भूल मत जाना, कल गवर्नर से कह ही देना मुझे यहाँ से छुड़वाने के लिए | 

आप समझ सकते है कि उसके तीन घंटे पर एक मिनिट में पानी फिर गया | आप भी पूरे वक्त बहुत संभलकर चलते हैं, जो आपके भीतर है उसको दवाकर चलते हैं | किन्तु हवा का कोई झोंका आता है और कपड़ा उठ जाता है | आप जो हैं वह सामने आ जाता है |

महावीर ने विश्व में पहली बार एक शब्द का प्रयोग किया, “बहुचित्तता” जो आज पश्चिमी जगत में पालिसाईकिक के नाम से बहुप्रचारित है | आदमी के भीतर एक मन नहीं बहुत मन हैं, अनंत मन हैं | मन भी केवल बहुत ही नहीं, एक दूसरे से भिन्न भी हैं, कई बार तो एक दूसरे के दुश्मन भी हैं | आप सुबह कुछ, दोपहर को कुछ और सांझ को कुछ और हो जाते हैं | आपको खुद समझ नहीं आता कि यह क्या हो रहा है | जब आप प्रेम में होते हैं तब आपका स्वरुप कुछ और होता है, किन्तु जब आप क्रोध में होते हैं तब आप दूसरे ही हो जाते हैं | जिसने आपको घृणा में देखा है, वही आपको प्रेम में देखे तो उसे भरोसा ही नहीं होगा कि आप वही व्यक्ति हैं | जब आप शांत होते हैं, तब आपका दिल भी शांत धड़कता है, खून की रफ़्तार भी कम होती है, श्वांस भी जोर से नहीं चलती | किन्तु एक अशांत व्यक्ति यदि कुर्सी पर भी बैठा हो तो अकारण पैर हिलाएगा, बैठे बैठे, लेटे, लेटे, शरीर को गति देगा | उसकी बेचैनी अकारण शरीर से रिलीज होती दिखाई देगी |

जब आप क्रोध में हों तो आईने के सामने जाकर खड़े हो जाएँ | आप पायेंगे कि आपका क्रोध छूमंतर हो रहा है | यही वह साक्षी भाव है जिसका कृष्ण ने गीता में उपदेश किया, या महावीर ने अपने संलीनता के उपदेश में कहा | महावीर ने संलीनता कहा, तल्लीनता नहीं | तल्लीन किसी और में हुआ जाता है, अध्यात्मिक रूप से कहें तो जैसे मीरा कृष्ण में और लौकिक रूप से कहें तो प्रेमी प्रेमिका में | जबकि संलीन स्वयं में हुआ जाता है | जैसे कोई शांत झील, बिना पंख हिलाए नील गगन में तिरती कोई चील, या जल में शांत बैठी कोई बदख | संलीन होने के तीन प्रयोग हैं | एक शरीर की गतिविधियों को देखना, दूसरा शरीर की गतिविधियों और मन की गतिविधियों को तोड़ना और अंतिम शरीर और मन की गतिविधियों के पार जाना | यह अनुभव करीब करीब बैसा ही होगा जैसा मृत्यु का होता है | अंतर केवल इतना है की मृत्यु परवशता है, जबकि इसमें स्वाधीनता | मृत्यु में ऊर्जा शरीर से बाहर जाती है, इसमें शरीर के भीतर प्रविष्ट होती है |

· अंतर तप – प्रायश्चित -

मुल्ला नसीरुद्दीन क्लब से बाहर निकला | देखा एक व्यक्ति कोट पहन रहा है | मुल्ला ने कहा तुम बड़े गलत आदमी हो | उस आदमी ने हैरत से पूछा, तुम ऐसा क्यों बोला रहे हो | मुल्ला ने जबाब दिया, तुम जो कोट पहिन रहे हो, वह मुल्ला नसीरुद्दीन का है | उस आदमी ने पूछा, यह मुल्ला नसीरुद्दीन कौन है ? मुल्ला ने जबाब दिया, मैं ही हूँ | उस आदमी ने तिक्तता से कहा, तो फिर यह क्यों नहीं कहते कि मैं गलत कोट पहिन रहा हूँ, ऐसा क्यों कहते हो कि मैं गलत आदमी हूँ | मुल्ला ने जबाब दिया गलत आदमी ही गलत कोट पहिनते हैं | 

जब आप कोई गलत काम करते हैं तो चाहते हैं कि लोग ज्यादा से ज्यादा यही कहें कि आपसे गलत काम हो गया | वह यह न कहें कि आप आदमी गलत हैं | जो दूसरे की गलती देखते हैं वे पश्चाताप भी नहीं करते | जो कर्म की गलती देखते हैं, वे पश्चाताप करते हैं | जो स्वयं की गलती देखते हैं वे प्रायश्चित में उतरते हैं | 

एक रात दो बजे शराबघर के मालिक की टेलीफोन की घंटी बजी | गुस्से से परेशान, नींद जो टूट गई | फोन उठाकर पूछा कौन है, जबाब आया मुल्ला नसीरुद्दीन | क्या चाहते हो दो बजे रात को, उसने कहा, बस यह पूछना चाहता हूँ कि शराबघर कब खुलेगा ? झल्लाकर मालिक ने कहा, तू रोज का ग्राहक है, यह भी कोई बात हुई, रोज सुबह दस बजे खुलता है, आज भी सुबह दस बजे ही खुलेगा | गुस्से से फोन पटककर वह सो गया | चार बजे फिर फोन की घंटी बजी | दूसरी तरफ फिर वही मुल्ला नसीरुद्दीन और वही सवाल, कितने बजे खोलोगे शराबघर | मालिक ने कहा, लगता है तुम ज्यादा पी गए हो या पागल हो गए हो | अभी तो चार ही बजे हैं, शराबघर सुबह दस बजे ही खुलेगा और तुम्हे तो अब मैं इसमें घुसने भी नहीं दूंगा | आई विल नोट एलाऊ यू इन | मुल्ला ने जबाब दिया, हू वांट्स टू कम इन, आई वांट्स टू गो आऊट | मैं तो भीतर बंद हूँ | अरे जल्दी खोलो नहीं तो पीता चला जाऊँगा | अभी तो मुझे बाहर भीतर भी पता है, फोन नंबर भी याद है और यह भी याद हैकि मैं मुल्ला नसीरुद्दीन हूँ, और ज्यादा पिया तो सब भूल जाऊंगा | जल्दी खोलो | जब तक याद है तभी तक पश्चाताप और प्रायश्चित |

दुनिया ख़तम होने की दो तरह की संभावना है | एक तो जब मैं मरूंगा, मेरे लिए दुनिया ख़त्म | और दूसरा जब दुनिया सच में ख़तम होगी |

· अंतर तप – विनय -

अगर मुझे कोहिनूर सुन्दर लगता है, तो वह कोहिनूर का गुण है, किन्तु जब मुझे सडक पर पड़े कंकड़ पत्थर भी सुन्दर लगने लगें, तब वह मेरा गुण हो जाता है | जिस दिन मुझे सबके प्रति विनय अनुभव होने लगे, उस दिन गुण मेरा है | जब तक मैं तौल तौल कर आदर देता हूँ, वह मेरा गुण नहीं विवशता है | श्रेष्ठ को आदर देने के लिए कोई प्रयास, कोई श्रम नहीं करना पड़ता | मेरे नमस्कार से सूरज की चमक नहीं बढ़ती |

जिन्होंने जीसस को सूली पर चढ़ाया वे समाज के मुअज्जिज लोग थे, जिन्होंने सुकरात को जहर पिलाया वे भी समाज मान्य बड़े लोग थे | समाज उन्हें श्रेष्ठ मानता है, जो समाज की रीति नियम से चलते हैं | जिन्होंने विद्रोह किया वे बाद में श्रेष्ठ माने गए | अब श्रेष्ठ कौन ? महावीर को मानने वाला क्या मुहम्मद को श्रेष्ठ मानेगा ? न ही मुहम्मद को मानने वाला महावीर की श्रेष्ठता स्वीकार करेगा | एक की नजर में जो व्यक्ति तलवार हाथ में लेकर खड़ा है, वह श्रेष्ठ नही हो सकता, तो दूसरे की नजर में जो बुराई के खिलाफ तलवार नहीं उठा सकता वह कायर है | मुहम्मद के हाथ की तलवार पर लिखा है, “शान्ति मेरा सन्देश है” | इस्लाम का अर्थ ही होता है शान्ति | जैन कभी नहीं सोच सकता कि तलवार और शान्ति का भी कोई साम्य हो सकता है | एक और बात कि महावीर नग्न रहे किन्तु उनके शिष्य देशभर में कपडे की दुकानें चला रहे हैं | मेरे एक नजदीकी व्यक्ति की दूकान पर बोर्ड लगा है, दिगंबर क्लोथ शॉप | 

अतः महावीर ने कभी नहीं कहा कि श्रेष्ठ को सम्मान देना | महावीर कहते हैं कि विनय अनकंडीशनल है, बिना शर्त है | सूरज शराबी को रोशनी देने से इनकार नहीं करता, हवाएं आक्सीजन देने से पहले नही पूछतीं कि कौन ईमानदार है और कौन बेईमान ? जब यह सम्पूर्ण प्रकृति तुम्हें स्वीकार करती है, तो मैं कौन तुम्हे अस्वीकार करने वाला ? तुम हो इतना पर्याप्त है | मैं तुम्हे आदर देता हूँ | जो विनय श्रेष्ठ की किन्ही धारणाओं को मानकर चलती है, वह सिर्फ अंधी होगी, परंपरागत होगी, रूढी होगी | आदर सहज होता है, पत्थर और पौधे के प्रति भी |

· अंतरतप वैयावृत्य – सेवा -

गांधी हिन्दू घर में पैदा हुए अतः यह मानने को मन करता है कि वे हिन्दू थे | लेकिन उनके सारे संस्कार नब्बे प्रतिशत जैनों से मिले थे, इसलिए मानने को मन होता हैकि वे मूलतः जैन थे | लेकिन उनके मस्तिष्क का सारा परिष्कार ईसाईयत ने किया | गांधी जब पश्चिम से आये तब यह सोचते हुए आये कि क्या उन्हें हिन्दू धर्म बदलकर ईसाई हो जाना चाहिए ? उन पर इमर्सन, थोरो व रस्किन का सर्वाधिक प्रभाव था | ईसाईयत की धारा से ही सेवा का विचार उनके अन्दर आया | ईसाईयत की सेवा धारणा ने सेवा की अन्य सब धारणाओं को डूबा दिया है | ईसाईयत की सेवा गौरव बन जाती है, जबकि महावीर कहते हैं, सेवा पूर्व कर्मों का प्रायश्चित करने के लिए करें | महावीर की सेवा धारणा में अहंकार को खड़े होने के लिए लेशमात्र भी जगह नहीं है |

अगर ईसाईयत की धारणा हम समझें तो सेवा धन में ले जाती है, प्लस में ले जाती है | आप जितनी सेवा करते हैं, आपके पास पुण्य संगृहीत होता जाता है, जिसका प्रतिफल आपको स्वर्ग में, मुक्ति में, ईश्वर के द्वारा मिलेगा | जितना आप पाप करते हैं, आपके पास ऋण इकट्ठा होता है, जिसका प्रतिफल आपको नरक में, दुःख में, पीड़ा में मिलेगा |

महावीर कहते हैंकि मोक्ष तो तब तक नहीं हो सकता, जब तक ऋण या धन कोई भी ज्यादा है | जब दोनों बराबर हो जायेंगे, शून्य हो जायेंगे, तभी आदमी मुक्त होगा | क्योंकि मुक्ति का अर्थ यही हैकि अब न मुझे कुछ लेना है और न मुझे कुछ देना है | इसको महावीर ने निर्जरा कहा है | इसलिए महावीर नहीं कहते कि दया करके सेवा करो | क्योंकि दया ही वन्धन बनेगा | कुछ भी किया हुआ बंधन बनता है | महावीर कहते हैंकि अगर तुम्हारा कोई पिछला कर्म पीछा कर रहा है तो सेवा करो और छुटकारा पा लो | इसका मतलब हुआ अपने को सेवा के लिए खुला रखो | निकलो मत झंडा लेकर सुबह से कि मैं सेवा करके लौटूंगा | ऐसा नहीं | धर्म समझो सेवा को | कहीं सेवा का अवसर हो तो हो जाने दो और चुपचाप विदा हो जाओ | तुमको स्वयं भी पता न चले कि तुमने सेवा की तो वैयावृत्य है | महावीर की दृष्टि में अगर एक आदमी दुखी और पीड़ित है और मैं उसकी सेवा करके स्वर्ग जाने की कोशिश कर रहा हूँ, तो मैं उसके दुःख का शोषण कर रहा हूँ | आप उनके दुःख पर सुख इकट्ठा कर रहे हैं | सेवा को अगर महावीर की तरह समझें तो वह दवाई की तरह है, जिससे मिलेगा कुछ नहीं केवल वीमारी कटेगी |

· अंतरतप स्वाध्याय – स्वयं का अध्ययन -

शास्त्र पढ़ना सरल है, जो भी पठित है वह पढ़ सकता है | लेकिन स्वाध्याय के लिए पठित होना काफी नहीं है | आप बहुत उलझे हुए हैं, ग्रंथियों का जाल हैं | आप एक पूरी दुनिया हैं, जिसमें हजार तरह के उपद्रव हैं | उन सबके अध्ययन का नाम स्वाध्याय है | अगर आप अपने क्रोध का अध्ययन कर रहे हैं तो स्वाध्याय कर रहे हैं | क्रोध के सम्बन्ध में शास्त्र में क्या लिखा है, उसे पढ़ना स्वाध्याय नहीं है |

शास्त्र कोई और लिखता है | वह किसी और की खबर हैकि वह आकाश में उड़ा, या उसने समुद्र में डूबकी लगाई | किनारे पर बैठकर आप कितना ही पढ़ें, आपकी डूबकी नहीं लग सकती | जो शास्त्र में डूबकी लगा लेते हैं, वे भूल ही जाते हैंकि सागर अभी बाकी है | स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं में उतरो और अध्ययन करो | स्वाध्याय से पता चलेगा कि एक ही पाप है मूर्छा और एक ही पुण्य है जागृति | जब घर का मालिक जाग रहा हो तो घर में चोर प्रवेश नहीं कर सकते | आप जगे हों और क्रोध घुस जाए यह हिम्मत क्रोध नहीं कर सकता | वह आपके उस कमजोर क्षण का उपयोग करेगा जब आप अचेत हों | 

· जब दिया बुझता है, तब हम कहते हैं, दिया निर्वाण को प्राप्त हो गया | इसी प्रकार जब आदमी के भीतर जीवेषणा की ललक, जीवेषणा की आकांक्षा, जीवेषणा की ज्योति बुझ जाए उसको बुद्ध ने कहा निर्वाण |

· आपके अच्छे और बुरे कर्म एक दूसरे को काट नहीं सकते, क्योंकि अच्छा कर्म अपने में पूरा है, बुरा कर्म अपने में पूरा है | आप यह नहीं कह सकते कि हमने एक आम का बीज बो दिया, इसलिए पहले बोये नीम के फल का कड़वा स्वाद नहीं मिलेगा | आम और नीम दोनों हमने बोये तो दोनों के मीठे और कड़वे स्वाद भी हमको चखने ही होंगे | नीम की कड़वाहट आम की मिठास को नहीं काटेगी, ना ही आम की मिठास से नीम की कड़वाहट कम होगी |

· भूल करने से डरना नहीं चाहिए | भूल करने से जो डरता है, वह भूल में ही रह जाता है | वह कभी सही तक नहीं पहुंच पाता | खूब दिल खोलकर भूल करना चाहिए, एक हूँ बात ध्यान रखना चाहिए कि एक ही भूल दुबारा न हो | हर भूल मनुष्य को इतना अनुभव दे जाए कि उस भूल को वह दोबारा न करे | तो फिर हम धन्यवाद दे सकते हैं उसको भी जिससे भूल हुई, जिसके द्वारा हुई, जिसके कारण हुई, जिसके साथ हुई, जहाँ हुई उसको भी हम धन्यवाद दे सकते हैं |

· एक ट्रेन में यात्रा करती वृद्ध महिला ने देखा के उसके पास बैठा व्यक्ति रोये चला जा रहा है | गाडी को छूटे पांच सात मिनिट ही हुए थे, वृद्धा को लगा कि संभवतः अपने प्रियजनों से विछोह के कारण यात्री रो रहा होगा, अतः वह चुपचाप रही | वह व्यक्ति अपने माथे को पैरों में झुकाए, हाथों में दवाये, रोता रहा, हिचकियाँ ले लेकर रोता रहा | रात हुई, वृद्धा सो गई | सुबह हुई, देखा सहयात्री तो अभी भी रोये चला जा रहा था | आंसू पोंछता है, हिचकियाँ भरता है, और रोने लगता है | वृद्धा ने सोचा, मैं इस व्यक्ति के लिए अजनबी हूँ, पता नहीं इस व्यक्ति में कितने दुःख भरे हैं, मेरे पूछने से कहीं दुःख और बढ़ न जाएँ | वह चुप रही | लेकिन तीसरे दिन उससे नहीं रहा गया, उसने उस सहयात्री के सर पर हाथ रखा, थपथपाया और बड़े प्रेम से उसके रोने का कारण पूछा | कहा शायद मुझे बताकर आपका दुःख कुछ हल्का हो जाए | यात्री बोला, कुछ मत पूछो, सोचकर ही मन दुखी होता है, तीन दिन हो गए और मैं गलत गाडी में सवार हूँ | मुझे जाना था गोहाटी और गलती से बैठ गया हूँ कन्याकुमारी जाने बाली गाडी में | आपको हँसी आये उस यात्री पर तो रोक लेना | जिस प्रकार वह यात्री किसी भी स्टेशन पर गलत ट्रेन से उतर कर कोई और ट्रेन पकड़कर अपने सही गंतव्य की ओर जा सकता था, उसे तीन दिन तक रोते रहने की आवश्यकता नहीं थी |

· मुल्ला नसरुद्दीन लंगडाकर चल रहा था | एक मित्र ने देखा और सलाह दी मुझे भी यही तकलीफ थी, मैंने दांत निकलवा दिए और तकलीफ दूर हो गई | मुल्ला ने सोचा क्यूं न मैं भी दांत निकलवा दूं | उसने दांत निकलवा दिए पर लंगडाहट दूर नहीं हुई | दूसरे एक मित्र ने कहा मैंने अपेंडिक्स निकलवा दिया था उससे मेरी तकलीफ दूर हो गई थी | उसकी बात मानकर मुल्ला ने सोचा अपेंडिक्स शरीर में अनावश्यक है, क्या जाता है निकलवा देता हूँ | हुआ कुछ नहीं कमर और टेढ़ी हो गई | एक अन्य ने कहा मेरी परेशानी तो टोनसिल के कारण थी, मुल्ला ने वह भी निकलवा कर देख लिया, पर समस्या का समाधान नहीं हुआ | एक दिन बिना लंगडाये मुल्ला को चलता देखकर पहले वाले मित्र ने कहा, अच्छा दांत निकलवा कर तुमको भी आराम मिल गया, लगता है | मुल्ला ने कहा दान्त से नहीं, जूते में निकली एक कील परेशान कर रही थी, उसको निकलवाने से लंगडाहट दूर हुई है |

इस अद्भुत विचार सार का प्रथम भाग भी पढ़ें -