शिवपुरी का इतिहास भाग 4 - जिले में कांग्रेस की स्थापना



अफ्रीका से लौटने के उपरांत महात्मा गांधी ने पूरे देश में अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन चलाए । इन आंदोलनों में भाग लैने में शिवपुरी भी पीछे नहीं रहा । यद्यपि सिंधिया व होलकर रियासतों में कांग्रेस प्रतिबंधित थी, किन्तु अंचल में उसकी गतिविधियाँ सार्वजनिक सभा के नाम से चलती रहीं। देशप्रेमियों ने विद्यार्थियों से अंग्रेजी स्कूलों के बहिष्कार का आव्हान किया तब देश के कोने-कोने में राष्ट्रीय विद्यापीठों और राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना हुई, ऐसा ही एक राष्ट्रीय विद्यालय तत्कालीन पौहरी जागीर के ग्राम भटनावर में सन् 1921 में आदर्श विद्यालय के नाम से पं. गोपाल कृष्ण जी पुराणिक ने स्थापित किया जिसमें विद्यालय के पाठ्यक्रम के अलावा राष्ट्रीय प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी जाती थी, और राष्ट्रसेवा के लिए स्वयंसेवक बनाये जाते थे। 1930 में हुए नमक सत्याग्रह के दौरान पं.गोपालकृष्ण पौराणिक ने दिल्ली जाकर सत्याग्रह आश्रम में रह कर कार्य किया । इनके साथ विद्यालय के कुछ छात्र भी थे जिनमें वैदेही चरण पाराशर भी एक थे ।

1939 में भारत को दूसरे विश्वयुद्ध में जबरदस्ती धकेल दिया गया । गांधी जी ने इस युद्ध में देश को धकेले जाने के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन किए । जिले से केवल स्व. विश्वनाथ गुप्ता को जेल जाने की अनुमति कांग्रेस हाई कमान से मिली जबकि अन्य कई लोग सत्याग्रह करके जेल जाने के इच्छुक थे । श्री गुप्ता को दो साल जेल की सजा मिली ।

1940 में शिवपुरी शहर कांग्रेस की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन गया । इसी वर्ष यहां एक सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें लगभग एक लाख लोगों ने भाग लिया । सम्मेलन की अध्यक्षता आगरा से पधारे सैनिक समाचार के संस्थापक और संपादक श्री कृष्णदत्त पालीवाल ने की । उद्घाटन सत्र को अजमेर से आये श्री हरिभानु उपाध्याय ने संबोधित किया । स्वागत भाषण श्री वैदेही चरण पाराशर ने दिया और प्रमुख वक्ता दिल्ली से आई श्रीमती विद्या राठोर रहीं । इस सम्मेलन ने जिले में कांग्रेस की जड़े जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ।

सन 1942 के भारत छोड़ो स्वतंत्रता संग्राम में शिवपुरी के गणमान्य एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर हृदय से आन्दोलन को सफल बनाने हेतु सहयोग दिया। जिनमें प्रत्यक्ष रूप से निम्न लोगों ने जेल जाकर आन्दोलन में भाग लिया।

1. वैदेही चरण पाराशर

2. रामसिंह वशिष्ठ

3. नरहरि प्रसाद शर्मा

4. श्री कृष्ण शर्मा

5. रामकिशन सिंघल

6. रामनिवास विन्दल

7. विश्वनाथ गुप्ता

8. हरदास गुप्ता

9. चिन्टूलाल वंसल

10. लाल सिंह चौहान

11. दादा लक्ष्मीचंद्र शर्मा

12. गिरधारी लाल जैन

13. महरचन्द्र

इन लोगों को शिवपुरी, मुंगावली और ग्वालियर आदि जेलों में भेजा गया । इनमें से कुछ पर टेलीफोन के तार काटने,रेल की पटरी उखाड़ने के आपराधिक मुकदमें ठोक दिए गए थे तथा प्रयास किया जाता रहा कि ये क्षमा याचना करके जेल से बाहर आयें मगर ऐसा इनमें से किसी ने भी नहीं किया ।

8 अगस्त 1942 को कांग्रेस के बम्बई (मुम्बई) अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पास होते ही, रातों रात अंग्रेज सरकार ने बड़े बड़े नेताओं को गिरफ्तार करके अज्ञात स्थानों पर भेज दिया । पूरे देश में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी । करो या मरो के संदेश के साथ अंग्रेजों भारत छोड़ेा के नारों से आकाश गूंजने लगा ।

शिवपुरी में भी स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 लगा कर कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया । धारा 144 को तोड़ने के लिए नगर के मध्य एक आम सभा की गई तब पुलिस ने सभा में भाग लेने बाले लोगों पर जम कर लाठियां बरसाईं और माईक से लेकर फर्श तक जब्त करके ले गए । आंदोलकारियों को कच्ची जेल में रख कर तरह तरह की यातनायें दी गई । पुलिस ने रामविलास विंदल, रामकिसन सिंघल, हरदास गुप्ता तथा चिंटूलाल बंसल को गिरफ्तार कर, उन पर अनेक अपराधिक मुकदमें ठोक दिए तथा उन पर क्षमायाचना का दबाब डाला गया । आन्दोलन कारियों ने तय किया कि एक साथ गिरफ्तार होने के स्थान पर प्रतिदिन सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी जाए। इसी रणनीति के तहत 2 अक्टूबर गांधी जयन्ती के दिन श्री कोठारी व लक्ष्मी चन्द्र हाथ में तिरंगा झंडा लेकर भारत माता की जय और महात्मा गांधी की जय के नारे लगाते हुए बाजार में निकले । इन्हें पुलिस गिरफ्तार करके जब ले जा रही थी तो रास्ते में फूल मालायें लेकर खड़े लाल सिंह, रामसिंह वशिष्ठ और विश्वनाथ गुप्ता को पकड़ लिया गया । पहले इन्हें स्थानीय कोतवाली में रखा गया । रात को 10 बजे पुरानी शिवपुरी कोतवाली में भेज दिया गया । 4 अक्टूबर को इन्हें मूंगावली जेल भेज दिया गया । ये सभी जून 1943 तक जेलों में बंद रहे । जब वृन्दासहाय जी गिरफ्तार होकर जेल गए तो उनसे रामसिंह वशिष्ठ के पिता ने कहा - तुम जा रहे हो तो रामसिंह को कह देना कि हम लोग सुन रहे हैं कि कई लोग माफी मांग मांग कर वापिस आ रहे हैं । यह ठीक नहीं है । या तो जाना ही नहीं चाहिए था और सत्याग्रह में गए हैं तो जिस शान से गए है उसी शान से झंडा ऊंचा रखते हुए बाहर आना । यदि राम सिंह ने कोई कमजोरी दिखाई तो मेरे घर में उसके लिए कोई जगह नहीं होगी । स्मरणीय है कि यह परिवार खांदी के उसी जागीरदार वंश का था, जिनसे १८५७ के स्वातंत्र समर में महारानी लक्ष्मीबाई व तात्याटोपे का सहयोगी मानकर जागीर छीन ली गई थी।

ग्वालियर सरकार को जून 43 में ग्वालियर राज्य कांग्रेस से समझोता करने के लिए विवश होना पड़ा और उन पर लादे गए फौजदारी मुकद्दमें वापिस लेने पडे़। इसके बाद ही ये सत्याग्रही जेलों से बाहर आये और आन्दोलनों की नई श्रंखला शुरू की -

- बैगार विरोधी

- शिकार विरोधी

- शिकार को हांके के जाने के विरुद्ध

- पौहरी तहसील में जागीर में कष्टम लगा रखा था उसके विरोध में

- जमींदारों द्वारा की जाने वाली ज्यादतियों के विरोध में और छोटे-छोटे कई आन्दोलन किये।

1938 में कांग्रेस के हीरापुर अधिवेशन में यह तय किया गया था कि रियासतों में राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए रियासत के लोग ही प्रयास करेंगे । ग्वालियर रियासत में शासन के महत्वपूर्ण निर्णय मजलिस-ए-आम और मजलिस-ए-कानून के माध्यम से लिए जाते थे । जन नेताओं के आंदोलनों के दबाब में ग्वालियर रियासत ने 1939 में सुधार कर एक दो स्तरीय विधान मंडन के गठन का निर्णय लिया । इसे प्रजा सभा और राजसभा कर दिया गया। इसी समय निर्णय लिया गया -प्रजासभा में 85 सदस्य होगें जिसमें 50 जनता के द्वारा सीधे ही निर्वाचित और शेष राजा के द्वारा मनोनीत किए जायेंगे। इसी प्रकार राजसभा के 40 सदस्यों में से 20 मनोनीत व 20 जनता के द्वारा निर्वाचित होंगे । किन्तु 1939 में दूसरा विष्व युद्ध प्रारम्भ हो जाने के कारण जून 1945 तक इन सुधारों को लागू नहीं किया गया और मजलिस-ए-आम व मजलिस-ए-कानून व्यवस्था ही चलती रही । 1945 में जब चुनाव हुए तो प्रजासभा की 50 सीटों में से 38 सीटें सार्वजनिक सभा (कांग्रेस) ने जीती । शिवपुरी से सर्वश्री वैदेही चरण पाराशर, दौलतराम पालीवाल, राधा कृष्ण शर्मा, विद्याभूषण तिवारी चुनाव जीते । श्री पाराशर को दल का उपाध्यक्ष बनाया गया । 1946 में ग्वालियर राज्य सार्वजनिक सभा का विशाल सम्मेलन शिवपुरी में आयोजित किया गया, जिसमें संस्था का नाम बदल कर ग्वालियर स्टेट कांग्रेस कर दिया गया । इस प्रकार ग्वालियर रियासत में पहली बार कांग्रेस संगठन अपने नाम पर कार्य कर सका, तब तक तो उसे सार्वजनिक सभा के छद्म नाम से ही काम करना पड़ता था। क्योंकि रियासत में कांग्रेस पर प्रतिबन्ध था। इस सम्मेलन के बाद एक साप्ताहिक “विजय” का प्रकाशन प्रारंभ हुआ और पाराशर जी ने इसके सम्पादन की जिम्मेदारी संभाली ।

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया । ग्वालियर राज्य ने प्रतिरक्षा,संचार और विदेश नीति से संबंधित विभाग भारत सरकार को इंस्टूमेंट आफ एक्षन पत्र पर हस्ताक्षर कर सोंप दिए पर आम जनता अभी भी रियासती शासन के वंधनों में थी, वह पूरी तरह भारत महादेश का हिस्सा नहीं हुई थी ।

आखिर ग्वालियर राज्य को चुनौती दी गई कि 15 जनवरी, 1948 के पूर्व राज्य का चार्ज (यानी उत्तरदायी शासन) जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को नहीं दिया तो सन् 1942 के आंदोलन के आधार पर 15 जनवरी 1948 से सीधी कार्यवाही की जायेगी और आन्दोलन युद्ध छेड़ दिया जावेगा।

शिवपुरी जिले में इस आन्दोलन के संचालनार्थ भारी तैयारी की गई थी। प्रत्येक मुकामी कमेटी को गुप्त आदेश दिये गये थे कि अधिक से अधिक स्वयं सेवकों की भर्ती की जावें। तत्कालीन जिलाध्यक्ष ने जिले में अपना दौरा कार्यक्रम बनाकर कमेटियों को भेजा था जिसमें यह निर्देश थे कि जिला अध्यक्ष के दौरे के समय प्रत्येक कमेटी की सीमा पर कम से कम 6 स्वयं सेवक वर्दी में बन्दूक के साथ मिलना चाहिये और अपनी तेयारी की पूरी जानकारी भी लाई जाये। जिन कमेटियों की इतनी तैयारी नहीं होगी, उस कमेटी में जिलाध्यक्ष नहीं जायेंगे और वापिस लौट आयेंगे। इस प्रकार की खुली तैयारी को देख कर सरकार इतनी भयभीत हो गई कि 14 जनवरी 48 की रात को ही 11.30 बजे राज्य कांग्रेस के कार्यालय में लिखित पत्र भेजकर महाराज सिंधिया की ओर से घोषणा कर दी गई कि वह अपने राज्य की बागडोर चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में सौंपना चाहते हैं। इसलिये कांग्रेस पार्टी अपने मंत्री मण्डल की सूची उनके पास भेंज दें।

इस पर से पार्टी ने 24 जनवरी 48 को मंत्रीमण्डल की सूची महाराज के पास भेज दी और 24 जनवरी 48 को ही मंत्रीमंडल के नेता लीलाधर जोशी के नेतृत्व में भेज दी और मुख्यमंत्री लीलाधर जी जोशी बने। मंत्रीमंडल में, शिवपुरी का प्रतिनिधित्व पं. वैदेहीचरण पाराशर ने किया जिसमें उन्हें स्वास्थ्य, जेल, शिक्षा तथा न्याय विभाग दिये गये।

उत्तरदायी शासन के बाद भारत में एक क्रान्ति भारत शासन के गृह मंत्री सरदार पटेल ने शुरू की जिसमें रियासतों का विलीनीकरण हुआ और ग्वालियर इन्दौर मालवा राज्यों की रियासतों का विलीनीकरण हुआ और मध्य भारत राज्य बना। उस समय मालवा की राजगढ़ नरसिंहगढ़ तथा खिलचीपुर रियासतों का कर चार्ज लेने के लिए वैदेहीचरण पाराशर जी को काम सौंपा गया और वहां का उन्हें चीफ ऐडमिनिस्टेटर नियुक्त किया गया।

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