शिवपुरी का इतिहास भाग 6 - शिवपुरी जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (संकलन - हरिहर निवास शर्मा)




आजादी के बाद अनेक स्वतंत्रता संग्राम सैनानी देश के अन्य भागों से आकर भी शिवपुरी में बस गए । अतः जिले को सर्वश्री गोपाल कृष्ण पौराणिक, पंडित वैदेही चरण पारासर, रामसिंह वशिष्ठ, हरदास गुप्ता, नरहरी प्रसाद शर्मा, चिंटूलाल वंसल, राम कृष्ण सिंघल, लख्मीचन्द्र जैन, राम विलास विंदल, विश्वनाथ, गिरधारी लाल, राधाकृष्ण पांडे उर्फ पांडे बाबा, रामसहाय दलाल, आनंद सिंह जी, अवध प्रताप श्रीवास्तव, जयकिशन पंजाबी, श्रीकृष्ण शर्मा मामा, लाल सिंह चौहान, बाबा हजारा सिंह, रामसेवक, रतन चन्द्र जैन, महर चन्द्र, ब्रजबाबूलाल पाठक, प्रेमनारायण नागर, डॉ.राधेष्याम द्विवेदी, आजाद हिन्द फोज के सैनानी पद्मभूषण कर्नल गुरूबख्शसिंह ढिल्लन और उनके ही एक सैनिक श्री आर.एस.जोशी का सानिध्य मिला ।

पद्मभूषण कर्नल स्व.श्री गुरूबख्श सिंह ढिल्लन-

18 मार्च 1914 बधवार को दोपहर बाद पंजाब के एक छोटे से ग्राम अलगो में सरदार ठाकुर सिंह ढिल्लन की पत्नी श्रीमती करम कोर ढिल्लन ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम गुरुबख्श सिंह रखा गया । आजाद हिन्द सेना के इस जांबाज योद्धा कर्नल गुरू बख्श सिंह ढिल्लो के पैतृक गांव में स्कूल नहीं होने के कारण निकटवर्ती गांव चंगामंगा में भर्ती करा दिया गया । यहां से कक्षा चार की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आगे की पढाई शासकीय हाई स्कूल यूनियन जिला लाहोर, शासकीय हाई स्कूल दीपालपुर जिला मोंटगोमरी ,वरनाकूलम मिडिल स्कूल,विक्टोरिया स्कूल सोलन हिमाचलप्रदेश, डी.ए.व्ही.हाई स्कूल मोंटगोमरी के बाद कर्नल ढिल्लन ने 1931 में फेकल्टी ऑफ़ सांइस (एफ.एस.सी.) के प्रथम वर्ष में गार्डन कालेज में प्रवेश प्राप्त किया । इसी वर्ष उनके पिता शासकीय सेवा से सेवानिवृत हो गए । ढिल्लन साहब का विवाह कम आयू में ही हो गया था । पिता के सेवानिवृत होने के उपरांत पिता पर बोझ बनना उन्हें स्वीकार नहीं था । अतः वे किसी अच्छी नोकरी की तलाश में थे । इसी समय उनके पिता के एक मित्र श्रीमान टायलर ने गुरूबख्श को सेना में भर्ती होने की सलाह दी । गुरूबक्स ने पूरा मन लगा कर आई.एम.एफ. की परीक्षा की तैयारी की और सफल भी हुए। उसके उपरांत मई 1933 में 4/14 बी.पंजाब रेजीमेंट में नोकरी मिली और वे इंडियन मिलेट्री अकेडमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिये भेजे गए । मार्च 1940 में भारतीय थल सैना में इन्हें नियमित कमीशन दिया गया और वे को सेकिन्ड लेफ्टीनेंट हो गए ।

इंडियन कमीशन आई.सी.नम्बर 1/14 पंजाब रेजीमेंट के साथ 1941 में इन्हें देश के बाहर भेजा गया और वापिस लौटने पर आर्म्स सिंग्नल कोर में पदस्थ कर पुनः मलाया कैम्पेन में भेज दिया गया । इनकी टुकड़ी को भारतीय अंग्रेज फौज की तरफ से युद्ध करते हुए जापान के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा और ये सभी जापान के युद्धवंदी हो गए । नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रेरणा से 15 फरवरी 1942 को ब्रिटिश आर्मी के ये सभी भारतीय जवान आजाद हिन्द सेना में शामिल हो गए । नेताजी ने ढिल्लों को कर्नल के पद पर नियुक्त कर के चौथी गुरिल्ला रेजीमेंट की कमान सोंप कर उनकी टुकड़ी को तत्कालीन वर्मा और आज के म्यांमार के ईरावदी मोर्चे पर तैनात कर दिया। आजाद हिन्द सेना साधनहीन तो थी ही उस में शामिल सैनिकों में अधिकांश अप्रशिक्षित या अर्ध प्रशिक्षित थे। इसके बावजूद कर्नल ढिल्लो के नेतृत्व में आजाद हिन्द सेना की चौथी ब्रिगेड ने अंग्रेज जनरल सर विलियम स्लिम की ब्रिटिश फौजों का बहादुरी से मुकाबला करते हुए एक हफ्ते तक उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया। इस युद्ध में पराजय के बाद कर्नल ढिल्लो को बन्दी बना कर कोलकत्ता के युद्ध बन्दी केम्प में भेज दिया गया। बाद में कर्नल जी.एस. ढिल्लन, कर्नल प्रेम कुमार सहगल, मेजर जनरल शाहनवाज खान को दिल्ली भेज दिया गया जहां इन तीनों अफसरों पर दिल्ली के लाल किले में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में कोर्टमार्शल का मुकदमा 5 नवम्बर से 31 दिसम्बर 1945 तक चला । बचाव पक्ष की पैरवी स्वयं जवाहर लाल नेहरू ने की। इनमें से किसी को काला पानी तो किसी को सजाये मौत की सजा सुनायी गई । पर बाद में यह सजा माफ कर दी गई । 232 दिनों की जैल के बाद 3 जनवरी 1946 को कर्नल ढिल्लन को अपने तीनों साथियों के साथ रिहा कर दिया गया ।

स्वतंत्रता के बाद कर्नल ढिल्लो को उनकी उत्कृष्ट राष्ट्र सेवाओं के लिए कई जगह राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया है। 21 अक्टूबर 1995 में कर्नल ढिल्लो को आजाद हिन्द फौज एक्सपिडीशन सम्मान प्रदान किया गया। इस के साथ ही सलीम गढ़ किले में जहाँ कर्नल ढिल्लो आदि को बन्दी बना कर रखा गया था उसे राष्ट्रीय संग्रहालय बनाने की घोषणा की गई। भारत सरकार ने इन पर एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया था। कर्नल ढिल्लो को राष्ट्रपति की ओर से पद्मश्री एवं पद्मभूषण सम्मान प्रदान किया गया। 6 फरवरी 2006 में 92 वर्ष की आयु में आजाद हिन्द सेना के इस जांबाज योद्धा ने अपने यशस्वी जीवन की अन्तिम सांस ली। शिवपुरी में राजकीय सम्मान के साथ उनके फार्म हाऊस के निकट शिवपुरी के हातोद गांव में उनका अन्तिम संस्कार किया गया।

स्व.श्री एस.आर.जोशी - 02 जनवरी 1918 को जन्में श्री एस.आर.जोशी भी आजाद हिन्द फौज के ही सिपाही थे। इन्हें आजाद हिन्द फौज में तीसरी गुरिल्ला पलटन में कर्नल जगदीश सिंह की कमांड में सेकेंड लेफ्टीनेंट के रूप में वर्मा की सीमाओं पर अंग्रेजी सैना से लोहा लैने का अवसर प्राप्त हुआ। मुकाबले के दोरान आपको गिरफ्तार कर लिया गया और ताइपिंग कन्सटेशन कैम्प में 6 माह तक युद्ध बंदी के रूप में रखा गया। स्वतंत्रता के उपरांत आप होमगार्ड में सैनानी के पद भर्ती हो गए और 1976 में सेवानिवृत्त होने तक सेवा करते रहे। 1983 से 1992 तक आपने मंगलम लिम्ब सेंटर शिवपुरी को अपनी निशुल्क सेवायें प्रदान की। 14 मई 2006 को आपका आकस्मिक निधन ग्वालियर में हुआ। आपका अंतिम संस्कार शिवपुरी ला कर पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ किया गया।

स्व.श्री हरेकृष्ण पांडे उर्फ पांडे बाबा- 15 मार्च 1907 को बिहार के आरा जिले के ग्राम सिमरी खैरापट्टी में जन्मे हरे कृष्ण पांडे बाबा मूलतः क्रांतिकारी थे पर बाद में गांधीजी के सम्पर्क में आने के उपरांत आप उनके सिद्धातों से इतने प्रभावित हुए की आपने न केवल क्रांति का रास्ता ही छोड़ दिया अपितु अनेक स्थानों पर आश्रम बना कर और स्वयं भी गांधी जी की तरह ही जीवन जीने लगे और पूरा जीवन गांधीवादी विचार धारा के ही प्रचार प्रसार में व्यतीत कर दिया। आपकी प्रारम्भिक षिक्षा अपने ग्राम में ही हुई । जब आप 12 वर्ष के थे तब ग्राम विहिटा जिला आरा के स्वामी सहजानंद सरस्वती परिब्राजक आश्रम पटना में आपने कठोर अनुशासन व ब्रह्मचर्य की शिक्षा ग्रहण की। यहां पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों को ऐसा संकल्प लेना होता था कई वे राष्ट्रीयता के प्रचार प्रसार के लिये अपना पूरा जीवन समर्पित करेंगे ।

शिक्षा पूर्ण कर जब ये बनारस पहुंचे तो क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आ गए । भारतमाता के पैरों में पड़ी हुई गुलामी की जंजीरों को काटने के लिये इन्होने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अनेक कठिन योजनाओं को पूर्ण किया । अपनी अत्यधिक सक्रीयता के कारण ही शीघ्र ही अंग्रेजों की निगाह पर चढ़ गए और 1930 में सपूर्णानंद,श्रीप्रकाश,त्रियुगी नारायण सिंह और कमलापती त्रिपाठी के साथ गिरफ्तार कर लिये गये । बाद में इनमें से तीन तो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री तक रहे । पाडे बाबा को काल कोठरी नम्बर 5 में बामषक्कत कैद की सजा भोगने के लिये डाल दिया गया । जेल से जब छूटे तो भूमिगत होकर इलाहाबाद पहुंच गए । यहां मुट्ठीगंज के एक होटल में क्रातिकारियों के साथ हो लिये और चन्द्रषेखर आजाद की हत्या का बदला लैंने की योजना बनाने लगे । इस बीच योजना का भंडाफोड़ होने से इन्हें इलाहावाद छोड़ना पड़ा ।

इसी बीच पांडे बाबा कुछ गांधीवादी विचारकों के सम्पर्क में आये और फिर तो जीवन ही बदल गया। गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर हिंसा का मार्ग त्याग दिया और बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात के विभिन्न स्थानों में घूम घूम कर स्वतंत्रता के लिये प्रचार प्रसार करने लगे । आप गांधी जी की तरह ही मात्र एक धोती पहन कर रहते थे । 1935 से पांडे बाबा ने ग्वालियर व शिवपुरी को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और लगभग हर गांव की पद यात्रा की और युवाओं में स्वतंत्रता के लिये संग्राम करने का संदेश पहुंचाया। इन्होने जोरा (मुरैना) श्यामपुर, मगरोनी (शिवपुरी) में आश्रम बनाये और गांधीदर्शन का प्रचार प्रसार किया । 1946 में ग्वालियर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनाये जाने के बाद ग्वालियर में कांग्रेस की जड़े जमाने के लिये बहुत कार्य किया तो सन 1950 में भी इन्हें दुबारा ग्वालियर जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया । अपने जीवन का शेष समय इन्होंने शिवपुरी की महल कालोनी में स्थित अपने आश्रम में गुजारा । 30 जनवरी 1993 को आपका निधन ग्वालियर के जयारोग चिकित्सालय में लम्बी बीमारी के बाद हुआ ।

स्व.श्री वैदेही चरण पाराशर - 10 सितम्बर 1910 को पं. लखमीचन्द्र पाराशर के घर जन्मे पं. वैदेही चरण पाराशर शिवपुरी के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों में रहे हैं । इनका जन्म कोलारस में हुआ तथा बाद में सपरिवार कमलागंज शिवपुरी मे निवास किया । एम.ए., एल.एल.बी., साहित्य विशारद करने के बाद बकालत शुरू की, किन्तु उसे छोड़कर 1930 में दिल्ली जाकर नमक सत्याग्रह में भाग लिया तथा 1936 से लेकर 1939 तक आगरा में सक्रीय कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया । 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार होकर मुंगावली जेल में 4 अक्टूबर 1942 से 29 जून 1943 तक बंदी रहे । आजादी के बाद 1953 से 1957 तक कांग्रेस के शिवपुरी जिला अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवायें दी । मध्य भारत काल में प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री रहे तथा प्रदेश निर्वाचन समिति के सदस्य भी रहे । 1948 से 1964 तक अखिल भारतीय कांग्रेस महासमति के सदस्य रहे ।

20 वर्षों से अधिक समय तक ग्वालियर, मध्य भारत, मध्य प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी सदस्य रहे । 1948 से 1957 तक शिवपुरी नगर पालिका के सदस्य रहे । 1945 से 48 तक ग्वालियर विधान सभा के सदस्य और कांग्रेस विधायक दल के उपनेता रहे । 1957 से 1962 तक आप कोलारस विधान सभा सीट से विधायक बने और 1962 से 1967 तक आप लोक सभा के भी सदस्य रहे थे ।

ग्वालियर राज्य लोकतंत्री शासन में आपको कानून, स्वास्थ्य व शिक्षा मंत्री बनाया गया था । मध्य भारत के समय में आपको 1948 में राजगढ़,खिलचीपुर व नरसिंहगढ़ का प्रशासक बनाया गया । इसके अलावा आपने शिवपुरी केन्द्रीय सहकारी बैक मर्यादित के मैंनेजिग डायरेक्टर, मध्य भारत एपेक्स बैंक के वाइस चैयर मैन, विपणन संघ के डारेक्टर,जैसे पदों पर भी रह कर देश की सेवा की ।

आपने अनेक बार विदेश यात्रायें भी की । आप जापान, वर्मा, थाईलेंड, हांगकांग, फिलीपाइन्स, स्वीजरलेंड, पू व प.जर्मनी, स्टाकहोम चेकोस्लावाकिया, कनाडा की यात्राओं पर गए तथा आपने वहां जाकर विभिन्न प्रकार के सम्मेलनों में भारत के डेलीगेशन का प्रतिनिधित्व किया । 4 नवम्बर 1986 को आपका देहावसान हो गया ।

स्व.श्री राम कृष्ण सिंघल- जन्म 14 दिसम्बर 1923 देहावसान 07 अक्टूबर 1997 इन दो तारीखों के बीच सिमटी स्व. रामकृष्ण सिंघल जी की पूरी जिंदगी एक कर्मठ, जुझारू, ईमानदार,लगनशील और अपने सिद्धान्तों से समझोता न करने बाले व्यक्ति की जिंदगी है । आपकी जिंदगी कभी सीधी सपाट और सरल राहों से होकर नहीं गुजरी । स्वतंत्रता संग्राम सैनानी कहलाने के पूर्व न जाने कितने संग्राम जिंदगी ने कराये । जब आपकी उम्र मात्र दो वर्ष चार माह की थी तो मां का आंचल सर से छिन गया । पिता सूरजमल वैष्य की छत्रछाया में और दादी की ममता ने उन्हें पालपोश कर पांच वर्ष का कर दिया । इसके बाद उनके लालन पालन की जिम्मेदारी उनके मामाओं ने उठायी और वे रामकृष्ण जी को लेकर गुना आ गए । यही आपने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की । अस्वस्थता और अव्यवस्था के चलते मिडिल से आगे शिक्षा न हो सकी, लेकिन उस काल में यह शिक्षा भी बहुत मानी जाती थी । अपने मामाओं से शिक्षा के साथ आर्यसमाजी संस्कारों को भी आपने प्राप्त किया । मात्र 15 वर्ष की आयु में तत्कालीन भेलसा आज के विदिशा में हुई कांग्रेस की बैठक में आपने शिवपुरी जिले का प्रतिनिधित्व किया । और उसके बाद शिवपुरी में वैदेही चरण पाराशर और वृन्दसहाय सक्सैना के मार्गदर्शन में आप स्वतंत्रता संग्राम में एक सैनानी की तरह कूद पड़े । 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में अपने उत्तेजक भाषणों के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने आपको सबसे पहले पकड़ा । इनके दो साथियों हरदास गुप्ता व चिंटूलाल वंसल को पैरों में बेड़ियां डाल कर शहर में घुमाया गया ताकि आतंक का वातावरण बन सके और अन्य कोई भी इस आंदोलन को आगे चलाने की कोशिस न करे । आपको 29 जून 1946 तक मुंगावली जेल में रखा गया । सिद्धान्तों के लिये समझोता न करने की आदत ने सत्ता के व्यामोह से हमेशा दूर रखा । दल ने जो भी जिम्मेदारियां दी उन्हें मन से पूरा किया और जब लगा कि दल में सिद्धान्तों को सम्मान दैने बाला कोई नहीं बचा है तो दल को छोड़ भी दिया । आप लोहिया और जयप्रकाष नारायण के सिद्धान्तो से प्रभावित रहे । राजनीति में आयी गिरावट के कारण वे दुखी थे और अपने आप को इस वातावरण के सदा प्रतिकूल पाते रहे । वे एक उच्च कोटि के विचारक थे । उनकी स्कूली शिक्षा भले ही कम हुई हो पर वे अध्ययनशील थे । वे नगर के अनेक साहित्य,कला और समाजसेवी संगठनों से जुड़े रहे और उनके कार्यक्रमों में अपनी सक्रीय भूमिका अदा करते रहे । मितभाषी,मृदुभाषी,विनम्र और सरल व्यक्तित्व के धनी इस व्यक्ति ने एक सड़क दुर्घटना के बाद इस नश्वर संसार को अलविदा कह दिया ।

श्री राम सिंह वशिष्ठ - भूतपूर्व मध्य भारत में ग्वालियर स्टेट के जिला शिवपुरी के अंतर्गत ग्राम गोंदौली के जागीरदार राव साहब श्री हुकुमसिंह जी के परिवार में 18 मई 1918 को श्री रामसिंह वशिष्ठ का जन्म हुआ । यह परिवार नरवर राज्य के प्रमुख स्तंभ तथा प्रधानमंत्री रहे इतिहास प्रसिद्ध श्री खांडेराव नवल सिंह का वंशज हैं । वंषानुगत परम्परा के ही अनुरूप सन 1857 की क्रांति में भी आपके परदादा राव साहब श्री रघुनाथ सिंह जी तथा भाई गोविंद सिंह जी ने अमर स्वतंत्रता सैनानी वीर तात्याटोपे को सक्रिय सहयोग दिया था । परिणाम स्वरूप उस समय के ग्वालियर राज्य का कोप भाजन होना पड़ा तथा खांदी की जागीरदारी भी समाप्त कर दी गई ।

आपने शिक्षा प्राप्त करने के लिये पोहरी के राष्ट्रीय आदर्श विद्यालय में प्रवेश लिया । राष्ट्रीय भावना के वातावरण ने इनके हृदय को भी प्रभावित किया । पूज्य वापू की प्रेरणा से संचालित हरिजन उद्धार,छुआछूत निवारण,चरखा कातना,खादी धारण करना,विदेषी वस्तुओं का परित्याग आदि नीतियों को इन्होंने पूरे मन से अंगीकार किया । इसी उद्देष्य से शिवपुरी नगर को आपने अपना कार्यक्षेत्र बनाया । आप ग्वालियर राज्य में कांग्रेस के परिवर्तित राजनैतिक संस्करण सार्वजनिक सभा में सक्रिय रूप से प्रविष्ट हुए । आपने खादी भंडार का संचालन किया और लोगों को खादी पहनने के लिये प्रेरित किया । गांव गांव घूम कर कांग्रेस समितियों की स्थापना की । इस प्रकार गांधी जी के राष्ट्र उद्धार के सिद्धांत को घर घर पहुंचाने का प्रयास किया ।

आपने अपने पिता राव हुकुम सिंह जी और उनके बड़े भाई संतोष सिंह जी की प्रेरणा और आशीर्वाद से इस आंदोलन को और आगे बढ़ाने का निष्चय किया । बापू के 1942 के अंग्रेज भारत छोड़ो के नारे ने जब समूचे भारत को आंदोलित किया तो आप भी अपने राजनैतिक गुरू श्री वैदेही चरण पाराशर के नेतृत्व में इस आंदोलन में कूद पड़े । आप को गांधी जयंति के ठीक एक दिन बाद 3 अक्टूबर 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया । बिना किसी मुकदमें के शिवपुरी जिले की तात्कालिक पुलिस ने आपको मुंगावली जेल भेज दिया । जेल से आपकी मुक्ति 29 जून 1943 को ही सम्भव हो पायी ।

कांग्रेस कमेटी के सक्रिय सदस्य रह कर 1948 से 1961 तक आप कांग्रेस के जिला महामंत्री के पद पर कार्य करते रहे । 1962 से 1964 तक आप जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे । आप जिला कांग्रेस सेवा दल के जिला संयोजक रह कर प्रांतीय सेवा दल के बोर्ड के भी सदस्य रहे । इसके अलावा आप वर्षों तक मध्य भारत व मध्य प्रदेश में पी.सी.सी.के सदस्य भी रहे । आपको जिले की मंडल पंचायत का र्निविरोध सरपंच 1952 से 1956 के काल के लिये चुना गया । आप लगातार 18 साल तक मंडी कमेटी के चेयरमैन रहे तथा आपने सहकारी बैंक के उपाध्यक्ष पद को भी सुशोभित किया । मध्य प्रदेश राज्य सहकारी संघ में आपको राज्य स्तरीय कार्यकारणी का सदस्य भी बनाया गया । भूमिविकास सहकारी अधिकोष की स्थापना काल से ही आप 1970 तक अध्यक्ष पद पर कार्य करते रहे । इसके साथ ही राज्य स्तरीय भूमिविकास अधिकोष के कार्यकारणी सदस्य एवं संचालक के रूप में भी आपने 1970 तक अपनी सेवायें प्रदेश को सर्मपित कीं । सन 1971 से 1977 तक आप म.प्र.विपणन संघ के संचालक एवं कार्यकारणी सदस्य के रूप में कार्य करते रहे ।

आपको शिवपुरी जिला स्वतंत्रता संग्राम सैनानी संघ ने अपने अध्यक्ष पद पर निर्विरोध अध्यक्ष चुना । सन 1972 में स्वाधीनता की रजत जंयति पूरे देश ने बड़े ही धूमधाम से मनायी । रजतजंयति के अवसर पर आयोजित जिला स्तरीय प्रमुख कार्यक्रम में आपको मुख्य अतिथि बनाया गया और उस अवसर पर आपने पुलिस परेड के द्वारा दी गई सलामी को भी स्वीकार किया । आपको इसी वर्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के द्वारा ताम्रपत्र प्रदान कर सम्मानित भी किया गया ।

आपको अनेकों बार प्रदेश के राज्यपालों के द्वारा सम्मानित किया गया है । मुख्य मंत्रियों के द्वारा भी समय समय पर उन्हें सम्मानित किया गया है । 9 अगस्त 06 का दिन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था, जब देश के राट्रपति महामहिम ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने देश के 150 स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों साथ उनका सम्मान किया था । इस सम्मान समारोह में प्रदेश के केवल चार स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को ही सम्मानित होने का गोरव प्राप्त हुआ था, इनमें शहडोल से एक,ग्वालियर से एक व शिवपुरी से दो स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को आमंत्रित किया गया था । शिवपुरी में उनके अलावा लालसिंह भी सम्मानित हुए थे ।

स्व.श्रीनरहरी प्रसाद शर्मा - आपका जन्म 20 अक्टूबर 1916 को महूसिरसी जागीर जिला गुना में हुआ । आपके पिता का नाम पंडित कुंजविहारी शर्मा था । 1933 में आपने सर्व हितेसी विद्यालय पोहरी से मैट्रिक की परीक्षा पास की । अध्ययन पूरा करने के उपरांत सन 1943 में आपने अपनी जन्म स्थली के पास ही ग्राम मालोदा में एक विद्यालय आदर्श विद्यालय के नाम से प्रारम्भ किया । खादी का प्रचार प्रसार आप इसके पहले सन 1936 से ही करने लगे थे । आप 1937 में राजनीति में सक्रीय हुए । 1938 में जब आपने बेगार प्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया तो आपको सिरसी जागीर से निस्कासित कर दिया गया । भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हुए आपको 06 अक्टूबर 1942 से 29 सितम्बर 1943 तक सबलगढ़ और मुंगावली जेल में बंदी रखा गया । शिवपुरी कांग्रेस कमेटी और देसी राज्य परिषद के सदस्य सन 1945 - 1954 तक रहे । आपने शिवपुरी बुनकर सहकारी सभा,सर्वोदय सहकारी भंडार की स्थापना की और सन 1950 से 1967 तक सहकारी बैंक के डायरेक्टर और तीन साल तक जिला कांग्रेस कमेटी के प्रेसीडेंट रहे । 1953 से आप शिवपुरी मजदूर संघ, कत्थामील मजदूर संघ, गेंगमैन यूनियन आदि के संस्थापक रहे और अध्यक्ष के रूप में श्रमिक अधिकारों की आवाज बुलंद करते रहे । 1962 में आपको कोपरेटिव बैंक का पहला अध्यक्ष चुना गया । आपने कांग्रेस और समाज सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया । 29 अगस्त 06 को आपका निधन हो गया ।

स्व.श्री हरदास गुप्ता - भारत टाकिज झांसी के पास रहने बाले भगवान दास गुप्ता के पुत्र हरदास गुप्ता ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 10 अक्टूबर 1942 से 29 जून 1943 तक कारावास भोगा । 18 अगस्त 1973 को ताम्रपत्र भेंट कर आपका सम्मान किया गया । आपकी मृत्यू 10 मार्च 1985 को हुई ।

स्व.श्री चिन्टूलाल वंसल - हलबाई खाना सदर बाजार शिवपुरी के निवासी श्री देवी लाल के पुत्र रूप में श्री चिन्टूलाल का जन्म 27 दिसम्बर 1909 में हुआ । आपने सायमन कमीशन का विरोध किया, 1924 में सामंतशाही के विरोध में अपनी आवाज उठाई, भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और तीन माह के कारावास के साथ पांच रूपये का अर्थदंड भी भोगा । 15 अगस्त 1972 को आपको प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया । 19 मई 1995 में आपने दुनिया से विदा ली।

स्व.श्री लख्मीचंद्र जैन - 8 जनवरी 1898 को गुना जिले के ग्राम मझोला में श्री कुंज बिहारी के घर जन्मे श्री लख्मीचंद्र जैन कक्षा 8 तक ही पढ़े और 1937 में राजनीति में सक्रीय हुए । भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 4 अक्टूबर 1942 से लेकर 29 जून 1943 तक ग्वालियर की सेंट्रल जैल में कारावास की सजा भोगी । 18 अगस्त 1973 को आपकेा ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया । 15 दिसम्बर 1983 को आप ने यह संसार छोड़ दिया ।

स्व श्री राम विलास विंदल - श्री प्रहलाद दास के पुत्र रूप में 12 अप्रेल 1920 को श्री राम विलास विंदल का जन्म ग्वालियर में हुआ । आप शिवपुरी के सदर बाजार में रहा करते थे । मिडिल तक शिक्षित श्री बिंदल ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 30 सितम्बर 1942 से लेकर 29 जून 1943 तक मुंगावली उप जैल में कारावास की सजा भोगी । 12 अगस्त 1961 को आपका देहावसान हुआ ।

स्व.श्री विश्वनाथ गुप्ता - झांसी उत्तर प्रदेश में जन्मे विश्वनाथजी के पिता का नाम घनश्याम दास था। आप शिवपुरी में पुराने अस्पताल के पास रहा करते थे । आप भी मिडिल पास थे । 1939 में राजनीति में सक्रीय हुए और सत्याग्रह करके 04 अक्टूबर 1942 से लेकर 29 जून 1943 तक कारावास की सजा, 50 रूपये जुर्माने के साथ भोगी । 12 अगस्त 1961 को आपका देहावसान हुआ ।

स्व श्री गिरधारी लाल आजाद - 10 जनवरी 1924 को मेरठ उत्तर प्रदेश में जन्मे गिरधारीलाल जी के पिता का नाम माता दीन था । 1942 भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 60 दिन का कारावास भोगा । 6 नवम्बर 1982 को आपका देहावसान हुआ ।

स्व.राधाकृष्ण पांडे - पिता श्री वंशगोपाल पांडे, जन्म कस्बा लखना जिला इटावा । इटावा में गांधीवादी आंदोलनों में भाग लिया । लखनऊ में मुकदमा चला और एक साल की सजा और 100 रूपये जुर्माना हुआ । बाद में आप शिवपुरी में आ कर बस गये । 18 अगस्त 1973 को आपको ताम्रपत्र भेंट कर सम्मानित किया गया । 25 अक्टूबर 1983 को आपका निधन हुआ ।

स्व.श्री रामसहाय दलाल - पिता श्री देवी सहाय, जन्म 10 मार्च 1907 को डेरागली पंजाव प्रदेश वर्तमान में पाकिस्तान में हुआ । 7 अप्रेल 1941 से 8 मई 1942 तक लाहोर में कारावास भोगा । आप 1930 से ही सक्रीय हो गए थे । विभाजन के बाद आप शिवपुरी आकर बस गए । 18 अगस्त 1973 को ताम्रपत्र से सम्मान किया गया । 16 जनवरी 1982 को आपकी मृत्यू हुई ।

स्व.श्री आनंद सिंह – 5 मई 1920 को जन्म, पिता स्व.केवल बिहारी लाल श्रीवास्तव,भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया । एक वर्ष तक अंग्रेजी हुकूमत ने नजरवंद करके रखा और डेड़ वर्ष तक आपको जेल में रखा गया । 18 अगस्त 1973 को ताम्रपत्र भेंट कर सम्मानित किया गया । मध्य प्रदेश शासन में जिला सूचना एवं प्रकाशन अधिकारी के रूप में अपनी सेवायें दीं। 1969 गांधी जन्म शताब्दी समारोह में भारत नृत्य नाटिका का लेखन कर शिवपुरी व गुना में निर्देशन कर मंचन कराया । 18 अप्रेल व 19 अप्रेल को तात्याटोपे समारोह के आयोजन की मुख्य भूमिका में रहे । तात्याटोपे शहीद दिवस के आयोजन को दलगत राजनीति से निकाल कर शासकीय स्वरूप प्रदान करने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही । प्रातः श्रृद्धांजलि का कार्यक्रम,पुलिस बैंड के द्वारा तात्याटोपे को सलामी, 1857 के दस्तावेजों, चित्रों, शस्त्रों की शिवपुरी क्लब में प्रदर्शनी, 18 अप्रेल की रात को अखिल भारतीय कवि सम्मेलन व 19 अप्रेल की रात को मुशायरा जैसे आयोजन अपनी व्यक्तिगत कार्यकुशलता, निजी-संबंधों और प्रयासों के द्वारा कराये । तात्याटोपे के कार्यक्रमों को इतनी लगन से करते थे कि लोग उन्हें ही तात्याटोपे के नाम से पुकारने लगे थे । 13 अप्रेल 1980 को आपका देहावसान हुआ।

स्व.श्री अवध प्रसाद श्रीवास्तव प्रसून - पिता पन्ना लाल श्रीवास्तव, जन्म 17 मार्च 1910, सन 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लिया । 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर 16 माह तक कारावास की सजा भोगी । शिवपुरी में सरकिट हाउस के निकट रहने बाले श्री प्रसून का निधन 70 वर्ष की आयू में हो गया । आपको 18 अगस्त 1973 को ताम्र पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया था ।

स्व.श्री जय किशन पंजाबी - पिता स्व.श्री शरणदास खत्री, जन्म 25 फरवरी 1914 । 1935 में राजनीति में सक्रीय हुए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और मुंगावली उपजेल में सजा भोगी । 18 अगस्त 1973 को ताम्रपत्र भेंट कर सम्मानित किया गया । 12 फरवरी 1995 को आपका देहावसान हुआ ।

श्री लाल सिंह चौहान - पिता कन्हीसिंह । जन्म 1 जुलाई 1922, राजनीति में 1930 से सक्रीयता दिखाई और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया । सेंट्रल जैल ग्वालियर में 04 अक्टूबर 1942 से 29 जून 1943 तक सजा भोगी । आप की आयू जब मात्र 16 वर्ष की थी तब स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के एक प्रदर्शन में जोर जोर से नारे लगाते हुए कमलागंज क्षेत्र से आपको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था । कमलागंज निवासी श्री लालसिंह को 18 अगस्त 1973 को ताम्रपत्र भेंट कर सम्मानित किया गया । । देश के राट्रपति महामहीम श्री ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने देश के 150 स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों साथ उनका सम्मान किया था । शिवपुरी से दो स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों को आमंत्रित किया गया था । शिवपुरी में उनके अलावा रामसिंह वशिष्ठ भी सम्मानित हुए थे ।

स्व.श्री श्रीकृष्ण शर्मा (मामाजी) - आपका जन्म 17 जुलाई 1913 को अचलपुर सिटी जिला अमरावती महाराष्ट्र में हुआ । आपके पिता श्री घीसूलाल शर्मा थे । 1930 में जब आप हाई स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे तभी आप महात्मा गांधी जी के सम्पर्क में आये और आपने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेते हुए अमरावती में सात दिनों का कारावास भोगा । इसके बाद नागपुर कारावास में भी कुछ दिनों तक सजा काटी । 1932 में आप ग्वालियर रियासत के शहर शिवपुरी आ गये और गांधीजी के सिद्धान्तों के अनुरूप जन सेवा कार्यों में संलग्न हो गये । आपने यहां खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की और गांधीजी के चरखे को घर घर तक पहुंचाया । शिवपुरी में कांग्रेस के गठन में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही । 1936 में ग्वालियर राज्य सार्वजनिक सभा के रूप में कांग्रेस अस्तित्व में आई । आपने 1938 से 1940 के मध्य पं. बंगाल के सोदापुर नामक स्थान पर रह कर खादी के वस्त्र बनाने और समग्र ग्राम सेवा का प्रशिक्षण प्राप्त किया । 1941 में आप वर्धा आ गए । यहां भी आपने खादी बुनना सीखा । 1942 में आप भारत छोड़ों आंदोलन में प्राण-प्रण से जुट गये । आप को गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए मुंगावली, सबलगढ़ और ग्वालियर के केन्द्रीय कारागार में रखा गया । आपने 1943 से 1945 के मध्य शिवपुरी, इंदौर और उज्जैन के खादी भंडारों की स्थापना की । 1946 में आपको उज्जैन में पुनः गिरफ्तर कर लिया गया और इसके बाद जिला बदर कर दिया गया । 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात आप शिवपुरी ही आकर बस गए ।

आपने चुनाव भी लड़े पर उनमें आपको कभी विजय नहीं मिल सकी । 1950 में आपको पिछोर से विधान सभा सदस्य का टिकिट दिया गया पर आप 800 मतों के मामूली अंतर से अपने प्रतिद्धन्दी से पराजित हुए । 1957 में आपको पोहरी से विधानसभा सदस्यता के लिए टिकिट दिया गया पर यहां भी अपने प्रतिद्धिन्छी सरदार शीतोले से 1100 मतों के अंतर से पराजित हुए । श्री शर्मा 1967 से 1992 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे । 1962 से 1977 तक आपने म.प्र.खादी ग्रामोद्योग परिषद के संचालक सदस्य और उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया । 1962 से 1985 तक आपने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य और 1985 से 1990 तक म.प्र. 20 सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवायें अर्पित की ।

15 अगस्त 1972 को दिल्ली के लाल किले पर प्रधान-मंत्री श्रीमती इंदिरागांधी ने ताम्रपत्र भेंट कर सम्मानित किया । 9 अगस्त 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन की स्वर्णजयंति पर प्रदेश के राज्यपाल के द्वारा आपको सम्मानित किया गया । 30 मार्च 1997 को आपका देहावसान हुआ ।

स्व.श्री बाबा हजारा सिंह - जन्म 15 फरवरी 1881, पिता का नाम इंदरसिंह । आप 1921 से राजनीति में सक्रीय हुए। दो वर्ष का कारावास भोगा । आपका भी स्वर्गवास हो चुका है ।

स्व.श्री रामसेवक स्वर्णकार - पिता लल्ली राम स्वर्णकार, जन्म 5 अगस्त 1909, शिक्षा मिडिल पास,स्वतंत्रता संग्राम में भाग लैने के कारण खनियाधाना रियासत से 3 वर्ष के निष्कासन का दंड व दो वर्ष तक घर में ही नजर बंद करके रखा गया । 20 मई 1988 को आपका देहावसान हुआ ।

स्व.श्री रतन चन्द्र जैन - पिता मुन्ना लाल जैन ,जन्म 24 अक्टूबर 1919, स्वतंत्रता संग्राम में भाग लैने के कारण खनियाधाना रियासत निष्कासन का दंड व 56 दिनों तक घर में ही नजर बंद करके रखा गया । 1942 में पुनः आपको एक वर्ष के निर्वासन व 13 अक्टू. 1946 से 19 दिसम्बर 1946 तक नजरबंद रहने की सजा दी गई । 19 जून 1995 को आपका देहावसान हुआ ।

स्व.श्री मेहर चन्द्र - आपके पिता स्व.श्री शोभा चन्द्र थे । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर 20 दिन की सजा भोगी । उन्हें अंग्रेज हुकूमत ने जिस समय गिरफ्तार किया वे एक जन सभा को सम्बोधित कर रहे थे । 04 अक्टूबर 07 को 85 वर्ष की आयू में आपका निधन इंदौर में हो गया । उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ शिवपुरी मुक्तिधाम में किया गया ।

स्व.श्री बृजबाबू लाल पाठक - ग्राम वेदमऊ रन्नोद के निवासी श्री श्री चोखे लाल के पुत्र श्री बृजबाबू लाल पाठक 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रीय रहे ।

श्री कालू राम - पिछोर निवासी श्री हरिचरण गुप्ता कनकने के पुत्र श्री कालू राम ने मजदूर यूनियन के नेता के रूप में इंदोर सेंट्रल जैल मे 1942 से 1945 तक सजा भोगी । 1972 में प्रशस्ति पत्र भेंट किया गया ।

स्व.श्यामसिंह - पिता श्री अपार सिंह पंजाबी सुरवाया निवासी, 1947 से पूर्व भूमिगत रहते हुए देश की सेवा की ।

श्री प्रेम नारायण नागर- श्री प्रेमनारायण नागर का जन्म 01 अक्टूबर 1926 को गुना जिले के चांचोड़ा ग्राम में हुआ था। आपके पिता का नाम पं.चतुर्भुज नागर था । आपने साहित्य सम्मेलन इलाहावाद से साहित्य रत्न और साहित्य विषारद की उपाधियां प्राप्त की थी । आप अगस्त 1942 जब विद्यार्थी ही थे तभी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे । परिणाम स्वरूप अपने तीन साथियों सहित आपको भी गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस थाने में थानेदार महेन्द्र सिंह ने उन्हें देा दिनों तक बंद रखा और उन्हें तरह तरह की यातनायें दी । उसके बाद स्कूल से भी निस्कासित कर दिया गया । नाबालिग होने से उन्हें जेल तो नहीं भेजा गया, पर उनके पिता को जमीदारी समाप्त करने का नोटिस थमा दिया गया । बड़े भाई अध्यापक थे, उनकी भी नोकरी खतरे में पड़ गई । तब श्री नागर को भूमिगत रहते हुए देश की स्वतंत्रता के लिये कार्य करते रहने के लिए विवश होना पड़ा । आपने शाजापुर में स्वतंत्रता संग्राम सैनानी श्री शंकर गुरू के साथ भी भूमिगत रहते हुए कार्य किया । आपके दल का एक कार्य जेल गए स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के परिवारों की कुशलता के समाचार ज्ञात करना और उन्हें आर्थिक व अन्य सहायता पहुंचाना था । श्री नागर ने स्वतंत्रता संग्राम सैनानी और गांधी जी के दांडीयात्रा के साथी स्वामी नारायण दत्त के मार्गदर्शन में कार्य करना प्रारम्भ किया । आप ने हरिजन सेवक संघ और खादी ग्रामोद्योग के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया । 1945 में ग्वालियर में आपने देसी राज्य लोक परिषद अधिवेशन में कार्य किया जिसके लिये संस्था के द्वारा प्रशंसा पत्र भी दिया गया । 1946 में ग्वालियर के मामा कालेले के साथ आपको कुछ समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निकट रहने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ । राष्ट्रपिता के आदेश पर ही आप ग्रामीण क्षेत्रों में रचनात्मक कार्यों में लग गए । आपने राजस्थान के गोविंदगढ़ व ग्वालियर के भांडेर में खादी ग्रामोद्योग केन्द्रों की स्थापना की । शिवपुरी में खादी उत्पादन के साथ तेलघानी, मधुमक्खी पालन, साबुन केन्द्रों में उत्पादन के साथ बिक्री एम्पोरियम की व्यवस्थाओं का कार्य भार संभालते रहे । श्री नागर स्काउट की गतिविधियों से लगातार जुड़े रहे । पर्यावरण संरक्षण आपका प्रिय विषय रहा है । पर्यावरण परिषद के आप संयोजक भी रहे हैं । जिला भूमि विकास के भी अध्यक्ष पद का निर्वहन आपके द्वारा किया गया है । आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में 1949 से ही नई दुनियां से जुड़ कर कार्य करना प्रारम्भ किया । आपको महामहिम राष्ट्रपति श्री डॉ.शंकर दयाल शर्मा, राज्यपाल श्री भाई महावीर, मानव संसाधन मंत्री अर्जुनसिंह, मुख्यमंत्री कैलाष जोषी सम्मानित कर चुके हैं । आपको गणेषशंकर विद्यार्थी और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है । ख़ास बात यह कि आपने स्वतंत्रता संग्राम सैनानी की पेंशन कभी प्राप्त नहीं की है ।

श्री डॉ.राधेश्याम द्विवेदी - जन्म 26 फरवरी 1921 करैरा । पिता पंडित केशव प्रसाद दुबे । शिक्षा एम.ए., एल.एल.बी., पी. एच.डी. तथा जीवाजी विश्व वि. के प्रथम डी. लिट.। निवंध-शान्तिसुधा, प्रबंध काव्य-कल्याणी कैकई, खंड काव्य-युग प्रवर्तक गांधी, रावी के तट पर, गीत संग्रह-गुनगुन,अन्य-अपने गांव, विषाल भारत के अमूल्य रत्न, दिव्या मां, अभियान गीत, सहकारिता और जिला शिवपुरी, राष्ट्र रक्षक राजपूत, बेतवा के बुंदेले, छिताई चरित्र के अलावा अनेकों कानूनी पुस्तको का लेखन । 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिगत रहते हुए अपनी सेवायें राष्ट्र को अर्पित कीं ।

स्व.श्री सर्वजीत सिंह यादव - जन्म 1922 दिनारा । भूमिगत रहते हुऐ देश की सेवा की । 11 जून 2007 को आपका निधन भीषण गर्मी और लू की चपेट में आने से हुआ । पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ दिनारा के मुक्तिधाम में ही आपका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ ।

शिवपुरी जेल में बंदी बना कर रखे गये स्वतंत्रता संग्राम सैनानी

शिवपुरी जेल में जेल की दीवार पर लगे शिलालेख पर शिवपुरी में बंदी बनाये गये मुरार, ग्वालियर, लश्कर, गुना, विदिशा, उज्जैन, खाचरोद, सरदारपुर, मन्दसौर, मुरैना, पंचोली, शुजालपुर और भिंड जिले के स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के नाम अंकित है । ये स्वतंत्रता संग्राम सैनानी इस प्रकार हैं-

1.श्री श्याम लाल पाण्डवीय-मुरार, 2.श्री जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद-मुरार, 3.श्री देवलाल रूद्र-ग्वालियर, 4.श्री रामचन्द्र करकरे-लश्कर, 5.डॉ.सदानंद सक्सैना-लश्कर, 6.गोपीकृष्ण विजयवर्गीय-गुना, 7.श्री मुरलीधर धुले-गुना 8.श्री राम सहाय बकील-विदिशा, 9.श्री रामचरण लाल - विदिशा, 10.श्री राजमल जालोही- 11.श्री दसामयश्रीधर दातार 11.मोहम्मद मसूद अहमद 12.शिवशंकर रावल 13.राधे लाल व्यास 14.मन्ना बकील 15.आयाचित बकील 16 गोपाल बकील, 17.हीरालाल बंसल 18.श्री हरिदास राठी, 19.मुन्ना लाल पंचोरी, 20.श्री हरीशचन्द्र चौधरी 21.हरिदास महेश्वरी 22.श्री हरीशंकर झा 23.श्री देव करम 24.धनराज कोनरी, 25.रामजी लाल बंसल 26आर.एन. त्रिवेदी 26.रंगलाल 27.कृष्ण चन्द्र बकील, 30.हरदास गुप्ता 31 लक्ष्मी चन्द्र 32.श्री रामनंद 33.दाते 34 माधो सिंह जौनी 35 लीलाधर जोशी, 36यशवंत सिंह कुशवाह 37.शंकर लाल 38 किशोरी भाई 38.सीताराम 39.दर्शन लाल वैश्य । 


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1 टिप्पणियाँ

  1. अपेक्षित जी ने जो कार्य किया है अत्यधिक महत्वपूर्ण मैं इस कार्य को देखकर अत्यंत आश्चर्य में हूं शिवपुरी जैसे ऐतिहासिक नगर का 241 लेखन लेखक ने किया है वह वास्तव में मील का पत्थर है लेखक को बहुत-बहुत बधाई जिस किसी ने भी इस ज्ञान को इस साइट के माध्यम से प्रकाश में लाया है वह भी बहुत-बहुत बधाई का पात्र है मेरे मित्र श्री मुन्ना लाल शर्मा ने मेरी बहुत बड़ी मुश्किल आसान कर दी इसलिए उनको भी बहुत-बहुत धन्यवाद

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